पाठ्यक्रम के उद्देश्य
(Objectives of Curriculum)
शिक्षा की प्रक्रिया के तीन प्रमुख घटक होते हैं-
1. शिक्षक,
2 शिक्षार्थी तथा
3. पाठ्यक्रम।
शिक्षण में शिक्षक तथा छात्र के मध्य अन्तःक्रिया (Interaction) पाठ्यक्रम के माध्यम से होती है। इस प्रकार पाठ्यक्रम शिक्षण की क्रियाओं को दिशा प्रदान करते हैं। इन तीनों घटकों की पारस्परिक अन्तःक्रिया द्वारा बालक का विकास किया जाता है। शिक्षण में तीन घटकों का विशेष महत्त्व होता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं :-
1. पाठ्यक्रम बालक के सम्पूर्ण विकास हेतु साधन प्रदान करता है, जिसकी सहायता से शिक्षण की क्रिया को सम्पादित किया जाता है।
2. पाठ्यक्रम द्वारा मानव जाति के अनुभवों को सम्मिलित रूप से स्पष्ट करके संस्कृति तथा सभ्यता का हस्तान्तरण एवं विकास करना।
3. पाठ्यक्रम द्वारा बालक में मित्रता, ईमानदारी, निष्कपटता, सहयोग, सहनशीलता, सहानुभूति एवं अनुशासन आदि गुणों को विकसित करके नैतिक चरित्र का निर्माण करना।
4. पाठ्यक्रम द्वारा बालक की चिन्तन, मनन, तर्क तथा विवेक एवं निर्णय आदि सभी मानसिक शक्तियों का विकास करना।
5. पाठ्यक्रम द्वारा बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाओं से सम्बन्धित सभी आवश्यकताओं, मनोवृत्तियों तथा क्षमताओं एवं योग्यताओं के अनुसार नाना प्रकार की सृजनात्मक तथा रचनात्मक शक्तियों का विकास करना।
6. पाठ्यक्रम द्वारा सामाजिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों एवं कलाओं तथा धर्मों के आवश्यक ज्ञान द्वारा ऐसे गतिशील तथा लचीले मस्तिष्क का निर्माण करना चाहिए, जो प्रत्येक परिस्थिति में साधनपूर्ण तथा साहसपूर्ण बनकर नवीन मूल्यों का निर्माण करना।
7. पाठ्यक्रम द्वारा ज्ञान तथा खोज की सीमाओं को बढ़ाने के लिए अन्वेषकों का सृजन करना।
8. पाठ्यक्रम द्वारा विषयों तथा क्रियाओं के बीच की खाई को पाटकर बालक के सामने ऐसी क्रियाओं को प्रस्तुत करना व उसके वर्तमान तथा भावी जीवन के लिए उपयोगी बनाना ।
9. पाठ्यक्रम द्वारा बालक में जनतन्त्रीय भावना का विकास करना।
10. पाठ्यक्रम शिक्षण क्रियाओं तथा शिक्षक तथा छात्र के मध्य अन्तःप्रक्रिया के स्वरूप निर्धारित करना।
पाठ्यक्रम के मूल तत्त्व
(Basic Elements or Determinants of Curriculum)
शिक्षा को प्रक्रिया का सम्पादन शिक्षक द्वारा किया जाता है। शिक्षक अपनी क्रियाओं का नियोजन कक्षा शिक्षण के लिए करता है। उसके प्रमुख तीन तत्त्व होते हैं—उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियाँ। 'पाठ्यक्रम विकास' में पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों को महत्त्व दिया जाता है। पाठ्यवस्तु तथा शिक्षण विधियों का नियोजन उद्देश्यों की दृष्टि से किया जाता है। एक पाठ्यवस्तु से कोई उद्देश्य प्राप्त किए जा सकते हैं। परन्तु अधिगम अवसरों एवं परिस्थितियाँ उद्देश्यों के स्वरूप को सुनिश्चित करती हैं। विशिष्ट उद्देश्यों हेतु विशिष्ट अधिगम परिस्थितियों का नियोजन किया जाता है। शिक्षण तथा अधिगम क्रियाएँ पाठ्यक्रम के ही प्रमुख तत्त्व माने जाते हैं। इस प्रकार पाठ्यक्रम के चार मूल तत्त्व माने हैं— उद्देश्य, पाठ्यवस्तु, शिक्षण विधियाँ तथा मूल्यांकन। इन तत्त्वों में गहन सम्बन्ध होता है।
1. उद्देश्य – पाठ्यवस्तु, शिक्षण विधियों तथा परीक्षणों का नियोजन उद्देश्यों की दृष्टि से किया जाता है। अधिगम परिस्थितियों के स्वरूप से इन्हें प्राप्त करते हैं।
1. उद्देश्य
2. पाठ्यवस्तु
3. शिक्षण विधि
4. मूल्यांकन
2. पाठ्यवस्तु– पाठ्यवस्तु का स्वरूप अधिक व्यापक होता है। अधिगम परिस्थितियाँ उसके स्वरूप को सुनिश्चित करती हैं।
3. शिक्षण विधियाँ- उपर्युक्त शब्द शिक्षण का चयन उद्देश्यों की प्राप्ति से किया जाता है। शिक्षण विधियों का सम्बन्ध पाठ्यवस्तु से होता है। शिक्षण आव्यूह-परिस्थितियों को उत्पन्न करती है, जिससे छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन किए जाते हैं जो पाठ्यवस्तु के स्वरूप को सुनिश्चित करते हैं।
4. मूल्यांकन- परीक्षा द्वारा पाठ्यवस्तु तथा शिक्षण विधियों की उपादेयता के सम्बन्ध में जानकारी होती है और जो पाठ्यवस्तु को सुनिश्चित करते हैं।
पाठ्यक्रम का शैक्षिक तत्त्वों से सम्बन्ध
(Relationship of Curriculum to Education Elements)
पाठ्यक्रम का शैक्षिक तत्त्वों से गहन सम्बन्ध होता है। शिक्षा प्रक्रिया के अन्तर्गत चार प्रमुख तत्त्व होते हैं—शिक्षण, अधिगम, पाठ्यक्रम तथा शैक्षिक नियोजन। शिक्षण तथा अधिगम में सम्बन्ध होता है क्योंकि शिक्षण क्रियाओं से अधिगम परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं जिनमें छात्र अनुभव करता है। जिससे अनेक अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाया जाता है। शिक्षण क्रियाओं का सम्पादन पाठ्यवस्तु के आधार पर किया जाता है, जिसका स्वरूप पाठ्यक्रम निर्धारित करता है, विद्यालय में शैक्षिक आयोजन (Educational Organization) के अन्तर्गत शिक्षण अधिगम के अतिरिक्त अन्य पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का नियोजन किया जाता है जिससे शैक्षिक परिस्थितियाँ आयोजित की जाती हैं। इस प्रकार के चारों तत्त्वों के आपसी संबंध का विवेचन एवं प्रस्तुतीकरण 'हासफोर्ड' ने अपनी पुस्तक (Theory and Instruction) के अन्तर्गत किया है। इन्होंने शिक्षा के चार तत्वों को महत्त्व दिया है
(अ) अधिगम (छात्र)
(ब) शिक्षण (शिक्षक)
(स) पाठ्यक्रम
(द) शैक्षिक नियोजन
(अ) अधिगम वह प्रक्रिया है जो व्यवहार में परिवर्तन लाती है।
(ब) शिक्षण वह प्रक्रिया है जो अधिगम में सुगमता प्रदान करती है।
(स) पाठ्यक्रम में विद्यालयों द्वारा नियोजित अनुभवों को सम्मिलित किया जाता है।
(द) शैक्षिक नियोजन में समस्त शैक्षिक अनुभवों की क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है, जो विद्यालय में तथा विद्यालय से बाहर की जाती हैं।
इन चारों पक्षों की अन्तःप्रक्रिया में घटकों (Factors) का विवरण इस प्रकार है
शिक्षण के चारों पक्षों में अन्तः प्रक्रिया का स्वरूप
1. इसमें पाठ्यक्रम के उस पक्ष को शैक्षिक नियोजन में सम्मिलित किया जाता है जिसमें शिक्षक
की आवश्यकता नहीं होती है।
2. इसमें शिक्षक, छात्र तथा पाठ्यक्रम तीनों के मध्य अन्तःप्रक्रिया होती है।
3. छात्र शैक्षिक नियोजन में बिना पाठ्यक्रम तथा शिक्षक के अन्तःक्रिया होती है।
4 छात्र तथा शिक्षक में पास के बिना शैक्षिक आयोजन से अन्तःप्रक्रिया होती है।
5. शिक्षक तथा पाठ्यक्रम के मध्य शैक्षिक आयोजन के अन्तर्गत अन्तःप्रक्रिया होती है।
6. शिक्षक तथा शैक्षिक आयोजन के मध्य बिना पाठ्यक्रम के अन्त प्रक्रिया होती है।
7. शिक्षक तथा छात्र के मध्य बिना पाठ्यक्रम तथा शैक्षिक नियोजन के अन्तर्गत अन्तःप्रक्रिया होती. है।
8. शिक्षक का व्यवहार बिना पाठ्यक्रम तथा शैक्षिक आयोजन के होता है।
9. पाठ्यक्रम तथा शैक्षिक आयोजन की अन्तः प्रक्रिया जो छात्र तक नहीं पहुंचती है।
10. पाठ्यक्रम तथा शैक्षिक आयोजन में प्रयोग न किया जाए और न छात्रों तक पहुंच सके।
11 शैक्षिक आयोजन का वह कार्यक्रम जिसे प्रयुक्त ने किया जा सके।
12. छात्र का समस्त अधिगम शैक्षिक-आयोजन, शिक्षण तथा पाठ्यक्रम के द्वारा ही नहीं होता है। इसमें छात्र का वह अधिगम सम्मिलित किया जाता है जो अन्य माध्यमों से होता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम तत्त्व की भूमिका शिक्षा परिस्थितियों के नियोजन के लिए अहम होती है।
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