शिक्षा : अर्थ, स्वरूप एवं प्रकार (EDUCATION : MEANING, NATURE AND MODES )

शिक्षा : अर्थ, स्वरूप एवं प्रकार 

(EDUCATION : MEANING, NATURE AND MODES )


       शिक्षा का अर्थ 
(Meaning of Education)

'शिक्षा' शब्द संस्कृत भाषा की 'शिक्ष' धातु में प्रत्यय लगाने से बना है। 'शिक्ष' का अर्थ है सीखना और सिखाना । अतः 'शिक्ष' शब्द का शाब्दिक अर्थ हुआ-सीखने व सिखाने की क्रिया'शिक्षा' शब्द के लिए अंग्रेजी में 'ऐजुकेशन' (Education) शब्द का प्रयोग किया जाता है। ऐजुकेशन शब्द लैटिन भाषा के 'ऐजुकेटम' (Educatum) शब्द से विकसित हुआ है तथा 'ऐजुकेटम' शब्द इसी भाषा के ए (E) तथा इयूको (Duco) शब्दों से मिलकर बना है। (E) का अर्थ है— अंदर से, जबकि इयूको (Duco) का अर्थ है-आगे बढ़ाना। अतः 'ऐजुकेशन' शब्द का अर्थ है—अंदर से आगे बढ़ाना | प्रश्न यह उठता है कि अंदर से आगे बढ़ाने से क्या तात्पर्य है? वास्तव में प्रत्येक बालक के अंदर जन्म के समय कुछ जन्मजात शक्तियाँ बीज रूप में विद्यमान रहती हैं। उचित वातावरण के सम्पर्क में आने पर ये शक्तियाँ विकसित हो जाती हैं, जबकि उचित वातावरण के अभाव में ये शक्तियाँ या तो पूर्णरूपेण विकसित नहीं हो पाती है अथवा अवांछित रूप ले लेती हैं। शिक्षा के द्वारा व्यक्ति की जन्मजात शक्तियों को अंदर से बाहर की ओर उचित दिशा में विकसित करने का प्रयास किया जाता है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि 'ऐजुकेशन' शब्द का प्रयोग व्यक्ति या बालक की आन्तरिक शक्तियों को बाहर की ओर प्रकट करने अथवा विकसित करने की क्रिया के लिए किया जाता है। लेटिन के 'ऐजुकेयर' (Educare) तथा 'ऐजुशियर' (Educere) शब्दों को भी 'ऐजुकेशन' शब्द के मूल के रूप में स्वीकार किया जाता है। इन दोनों शब्दों का अर्थ भी आगे बढ़ाना (To Bring Up), बाहर निकालना (To Lead Out) अथवा विकसित करना (To Raise) है। स्पष्ट है कि शिक्षा तथा इसके अंग्रेजी पर्यायवाची 'ऐजूकशन' (Education) दोनों ही शब्दों का शाब्दिक अर्थ मनुष्य की आन्तरिक शक्तियों को आगे बढ़ाने वाली, विकसित करने वाली अथवा इनका वाह्य प्रस्फुटन करने वाली प्रक्रिया है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि शिक्षा शब्द का अर्थ जन्मजात शक्तियों का सर्वागीण विकास करने की प्रक्रिया से है।

शिक्षा के शब्द के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों के द्वारा शिक्षा के अर्थ के सम्बन्ध में प्रकट किए गए विचारों का अवलोकन करना आवश्यक होगा।

स्वामी विवेकानन्द मनुष्य को जन्म से पूर्ण (Perfect स्वीकार करते थे तथा उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य उसकी पूर्णता को प्रस्फुटित करना था। उनके शब्दों में- "मनुष्य की पूर्वनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना शिक्षा है।" 
"Education is manifestation of perfection already present in man."
                                                                                                -Swami Vivekanand


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शिक्षा को व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यामिक विकास                       की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट किया। उनके शब्दों में - "शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा मनुष्य,शरीर, मस्तिष्क तथा आत्मा के सर्वागीण सर्वोत्तम विकास से है। "

"By Education I mean an all round drawing out of the best in child and man-body, mind and spirit."       -Mahatma Gandhi

प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक सुकरात के अनुसार - "शिक्षा का अर्थ उन सर्वमान्य विचारो को         विकसित करना है जो प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में विलुप्त है।" 

"Education means the bringing out of the ideas of universal validity which are learnt in the mind of everyman."            -Socrates

अरस्तू ने शारीरिक तथा मानसिक विकास पर बल देते हुए कहा था कि - "स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करना ही शिक्षा है।" 

"Education is the creation of a sound mind in a sound body."        -Aristotle

हरबर्ट स्पेन्सर ने मनुष्य जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से तालमेल बैठाने पर बल देते हुए कहा कि - "शिक्षा से तात्पर्य अन्तर्निहित शक्तियों तथा बाह्य जगत के मध्य समन्वय स्थापित करने से है।" 

"Education means establishment of co-ordination between the inherent powers and the outer world."             -Herbert Spencer

जॉन डयूवी के शब्दों में- "शिक्षा, व्यक्ति की उन समस्त क्षमताओं का विकास करना है जो उसे अपने वातावरण को नियंत्रित करने तथा अपनी सम्भावनाओं को पूरा करने योग्य बनाएगी।" 

"Education is the development of all those capacities in the individuals which will enable him to control his environment and fulfill his possiblities."      -John Dewey

जर्मन शिक्षाशास्त्री पेस्टालॉजी ने जन्मजात शक्तियों के विकास के रूप में शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा है कि- "शिक्षा व्यक्ति की समस्त जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक, समरस तथा प्रगतिशील विकास है।"

 "Education is a natural, harmonious and progressive development of man's innate powers."                                                                                                                                    -Pestalozzi

प्लेटो—“शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास की प्लेटो—“शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास की प्रक्रिया ही शिक्षा है।"

 "Education is a process of physical, mental & intellectual development."         -Plato

ट्रो- शिक्षा, नियंत्रित वातावरण में मानव विकास की प्रक्रिया है।"
"Education is human development in a controlled environment."               -Trow

पेस्तालॉजी के शिष्य फ्रोबेल ने शिक्षा को निम्न शब्दों में पारिभाषित किया है - "शिक्षा वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बालक अपनी आन्तरिक शक्तियों को   वाह्य  शक्तियों का रूप देता है।" 

"Education is a process by which the child makes its internal external."      -Froebel

मेकेन्जी के शब्दों में - "व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन-पर्यन्त है तथा जो जीवन के प्रत्येक अनुभव से संबंधित होती है।" 

"In wider sense, it is a process that goes on throughout life and is promoted by almost every experience in life."      -S. S. Mackenzi



भारतीय संप्रत्यय  (Indian Concept)


“शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य निर्वाण है।"        - उपनिषद्
   
"Education is that whose end product is salvation."     -Upnishads

“शिक्षा स्वयं की अनुभूति है।"         - शंकराचार्य

"Education is the realization of the self."       -Shankracharya


आधुनिक संप्रत्यय   (Modern Concept) 

"शिक्षा अन्तर्निहित ज्योति की उपलब्धि के लिये विकासशील आत्मा की प्रेरणादायिनी शक्ति है।"- अरविन्द घोष

"Education is helping the growing soul to draw out that is in itself."     -Aurobindo Ghosh


"शिक्षा का अर्थ बालक को इस योग्य बनाना है कि वह शाश्वत सत्य की खोज कर सके, उसे अपना बना सके, और उसकी अभिव्यक्ति कर सके।"             - टैगोर

"Education means to enable the child to find out the ultimate truth...... making truth its own and giving expression to it."     -R.N. Tagore 


"शिक्षा चैतन्य रूप में एक नियंत्रित प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाये जाते हैं और व्यक्ति के द्वारा समूह में।"        - ब्राउन


"Education is the consciously controlled process whereby changes in behaviour are produced in the person and through the person within the group."       -Brown 


शिक्षा की विशेषताएँ
(Characteristics of Education)


"Plants are developed by cultivation and man by Education."     -Locke 

शिक्षा की उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर शिक्षा की अधोलिखित विशेषताएं कही जा सकती हैं-

1. शिक्षा केवल विद्यालयों में प्रदत्त ज्ञान तक ही सीमित नहीं है। 
   (Education is not limited to knowledge imparted in schools)

2. शिक्षा एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।
   (Education is a life-long process).

3. शिक्षा बच्चे की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास करती है। 
   (Education Develops the inherent powers of a child.)

4. शिक्षा एक गत्यात्मक प्रक्रिया है। 
    ( Education is a dynamic process.)

5. शिक्षा एक द्विध्रुवीय  प्रक्रिया है। 
    (Education is a Bi-polar process.)

6. शिक्षा एक त्रिचुची प्रक्रिया है।
   (Education is a Tri-polar process.)

7. शिक्षा व्यवहार में सुधार तथा चरित्र-निर्माण की प्रक्रिया है। 
   (Education is a process of modifying behaviour and character formation.)

8. शिक्षा एक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार की प्रक्रिया है।
   (Education is a Direct and Indirect process both.) 

9. अनुभवों में संवर्धन में सहायक।
   (Enrichment of Experiences.)

10. व्यक्ति के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक। 
   (All round development of the individual.)

11. वातावरण से समायोजन की प्रक्रिया। 
   (A process of adjustment with the environment.)


द्विध्रुवीय प्रक्रिया के रूप में शिक्षा 
(Education as a Bi-polar Process)


जैसा कि पहले बताया गया है, शिक्षा एक प्रक्रिया है, न कि एक आदेश (prescription)। इस प्रक्रिया में दो व्यक्ति सम्मिलित होते हैं—शिक्षक और शिक्षार्थी। दोनों के मध्य पारस्परिक क्रिया होती है, उनके प्रयत्नों का परिणाम शिक्षा होती है। इस प्रकार शिक्षा एक 'सहभागी गतिविधि या अनुभवों का साझा करना बन जाती है। एडम्स (Adams) इसे द्विध्रुवीय प्रक्रिया कहते हैं। "इस प्रक्रिया में शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य निरंतर पारस्परिक क्रिया होती रहती है और दो ध्रुवों की पारस्परिक क्रिया की भाँति दो व्यक्तियों का परस्पर प्रभाव होता है। इस प्रकार शिक्षा एक संचेतन (conscious) और सोची-समझी प्रक्रिया बन जाती है जिसमें सम्प्रेषण (communication) और ज्ञान के परिचालन (manipulation) द्वारा एक व्यक्तित्त्व दूसरे व्यक्तित्त्व के विकास में परिवर्तन लाने के लिए उस पर कार्य करता है। एक बालक भी शिक्षण और अधिगम प्रक्रिया में एक सक्रिय सहभागी होता है। Ross लिखते हैं, “एक चुम्बक की भाँति शिक्षा के अवश्य ही दो ध्रुव होने चाहिएं।" (Like magnet education must have two poles).

शिक्षा की दो-ध्रुवीय प्रकृति के बारे में विवेचन करते हुए एडम्स (Adams) शिक्षा की प्रक्रिया के दो पक्षों, व्यक्तिनिष्ठ (subjective) और विषयपरक (objective) के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उनके विचार में, शिक्षा तब व्यक्तिनिष्ठ बन जाती है जब शिक्षार्थी शिक्षक की सत्ता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता है और सीधे उसके द्वारा दिए गए उद्दीपनों (stimuli) के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। सामान्यतः ऐसा ही होता है। दूसरी ओर शिक्षा तब विषयपरक (objective) बन जाती है जब शिक्षार्थी शिक्षक के प्रयोजनों को समझता है और कभी-कभी अपने विवेक का प्रयोग कर उसे चुनौती देता है या उसका विरोध भी करता है। ऐसा कभी कभार ही होता है। इसलिए एडम्स कहते हैं, "अधिकतर विद्यार्थियों के अनुभव में शिक्षा व्यक्तिनिष्ठ और विषयपरक, दोनों क्षेत्रों में पूरे समय दो-ध्रुवीय रहती है।"

अध्यापक- ध्रुव    →  एक व्यक्तित्त्व दूसरे व्यक्ति के विकास को परिवर्तित करने के लिए उस पर क्रिया करता है। 


शिक्षा दो ध्रुवीय   →  प्रक्रिया सचेतन (conscious) और सोची-समझी भी होती है।
 होती है।


छात्र-ध्रुव          →    शिक्षक  के व्यक्तित्त्व और ज्ञान के इस्तेमाल का सीधा प्रभाव अध्यापक से छात्र की ओर प्रवाहित ज्ञान दोनों को जोड़ता है। इसका साधन परस्पर परिचर्चा है।  



त्रि- ध्रुवीय प्रक्रिया के रूप में शिक्षा 
(Education as a Tri-Polar Process)


शिक्षा के आधुनिक मत को 'तीन-आयामी' कहा जाता है। यह बताया जाता है कि सम्पूर्ण शिक्षा समाज में और सामाजिक व्यवस्था में घटती है। J.E. Adamson ने शिक्षा के तीन-ध्रुवीय सिद्धान्त को प्रस्तुत किया। उनके अनुसार शिक्षा का सार बालक व बालक के संसार के मध्य समायोजन है। समायोजन की प्रक्रिया सक्रिय और निष्क्रिय, दोनों प्रकार की होती है। बालक अपने वातावरण द्वारा प्रभावित होता है और साथ ही  वह वातावरण को प्रभावित करता है और उसे आकार देता है। 


शिक्षा के प्रकार 
(Forms of Education)


शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। यह औपचारिक, अनौपचारिक तथा निरोपचारिक के रूप में जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। यह एक व्यापक संप्रत्यय है जिसमें विभिन्न स्रोतों जैसे रेडियो, समाचारपत्र, टेलीविजन, शिक्षा संस्थाओं आदि से प्राप्त ज्ञान को सम्मिलित किया जाता है। एक सामान्य व्यक्ति इसे शिक्षा संस्थाओं में प्राप्त शिक्षा के रूप में ही समझता है जो निश्चित रूप से अन्य स्रोतों से प्राप्त शिक्षा से सर्वथा भिन्न है। शिक्षा शास्त्रियों ने शिक्षा के निम्नलिखित प्रकारों का वर्णन किया है-

1. सामान्य शिक्षा (General Education ) — शिक्षा का प्रमुख कार्य माध्यमिक स्तर तक बालक को सामान्य शिक्षा प्रदान करना है और यही हम शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य भी मानते हैं। यह शिक्षा का निम्नतम स्तर है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए आवश्यक होता है। यह बालक को उचित व्यवहार करने के योग्य बनाती है। इसका उद्देश्य बालक की सामान्य योग्यताओं का विकास करना है ताकि उसके व्यक्तित्व का विकास हो सके तथा वह वातावरण में समायोजन के योग्य बन सके। भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् सर्व शिक्षा को मुक्त तथा आवश्यक बना दिया गया है।

2. विशिष्ट शिक्षा (Specific Education) - वर्तमान युग विशिष्टीकरण का युग है। एक व्यक्ति सभी क्षेत्रों में विशिष्ट नहीं हो सकता। यदि बालक को उसके जन्मजात गुणों, योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुरूप विशिष्ट शिक्षा प्रदान की जाए तो उसे अपनी योग्यताओं के विकास के लिए उत्तम अवसर प्राप्त होंगे। इसका उद्देश्य एक व्यक्ति को किसी एक विशेष कौशल में कुशल में कुशल बनाना है। यह समाज के प्रत्येक क्षेत्र में विशिष्ट प्रशिक्षित व्यक्ति प्रदान करती है। इस प्रकार यह राष्ट्र के विकास के साथ-साथ उसके कल्याण में भी सहायक होती है। यह विशिष्ट संस्थाओं में जैसे मेडिकल महाविद्यालयों, इंजीनियरिंग महाविद्यालय, तकनीकी संस्थाओं, प्रबन्धन संस्थाओं, कम्प्यूटर केन्द्रों आदि में प्रदान की जाती है।

3. प्रत्यक्ष शिक्षा (Direct Education ) - इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षक तथा शिक्षार्थी में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। शिक्षक के व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष प्रभाव विद्यार्थी पर पड़ता है। जहाँ विद्यार्थियों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है वहाँ यह शिक्षा सम्भव नहीं होती क्योंकि ऐसी कक्षा में अध्यापक के लिए प्रत्येक विद्यार्थी के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए रखना कठिन हो जाता है। यही कारण है कि आज के समय में कक्षा के आकार को छोटा रखने पर बल दिया जाता है।

4. अप्रत्यक्ष शिक्षा (Indirect Education) — वर्तमान युग में अप्रत्यक्ष शिक्षा अस्तित्व में आई क्योंकि जन संचार के विकास के कारण महान शिक्षाशास्त्रियों के विचारों को उन लोगों तक पहुँचाना सम्भव हो गया है जो इन लोगों के प्रत्यक्ष सम्बन्ध में कभी नहीं आए। इंदिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय पूरे विश्व में विभिन्न क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष शिक्षा प्रदान कर रहा है। बहुत से अन्य विश्वविद्यालय भी दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम चला रहे हैं। उच्च स्तर पर रेडियो, टेलीविजन आदि शिक्षण के लिए अधिक प्रसिद्ध हो रहे हैं। आज के समय में कोई भी व्यक्ति यदि इंटरनेट की सहायता से सूचना प्राप्त करना चाहता है, कर सकता है। इस प्रकार की शिक्षा पश्चिम में अधिक प्रसिद्ध होती जा रही है।

5. व्यक्तिगत शिक्षा (Individual Education)- मनोवैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि सभी व्यक्ति एक जैसे नहीं होते हैं, इसलिए इस बात पर बल दिया जा रहा है कि शिक्षक को व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक बालक का ध्यान रखना चाहिए। रवीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा शान्तिनिकेतन में किया गया प्रयोग सफल सिद्ध हुआ है, परन्तु यदि इसे बड़े पैमाने पर शिक्षा विधि के रूप में अपनाया जाए तो यह पूर्ण रूप से अव्यावहारिक होगी। प्राथमिक स्तर पर किन्डरगार्डन पद्धति, मॉन्टेसरी पद्धति बच्चे पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने की उच्च पद्धतियों है।

6. सामूहिक शिक्षा (Collective Education) - जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि यह शिक्षा एक स्थान पर सामूहिक रूप से इकट्ठे हुए व्यक्तियों को दी जाने वाली शिक्षा है। एक अध्यापक जब एक से समय पर एक बहुत बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को शिक्षा देता है तो ऐसी शिक्षा समय तथा धन के क्षेत्र में मितव्ययी बन जाती है। भारत की जनसंख्या जिस गति से बढ़ती जा रही है ऐसी परिस्थितियों में यही शिक्षा उपयुक्त मानी जाती है।

7. संकुचित शिक्षा (Narrow Education)—यह विद्यालय तथा विश्वविद्यालय शिक्षा तक सीमित है। जब बालक शिक्षा संस्था में प्रवेश लेता है, तब से यह आरम्भ होती है तथा शिक्षा संस्था छोड़ने पर समाप्त हो जाती है। यह आकस्मिक न होकर नियोजित होती है। इसमें अध्यापक तथा विद्यार्थी में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। इस प्रकार की शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त संकुचित होता है।

8. व्यापक शिक्षा (Wider Education ) - यह एक जीवन पर्यन्त चलने वाली शिक्षा है। यह जन्म से प्रारम्भ होकर जीवन भर चलती रहती है। इसमें शिक्षा के सभी अभिकरणों औपचारिक, अनीपचारिक तथा निरोपचारिक से प्राप्त अनुभव सम्मिलित होते हैं। समाज का प्रत्येक सदस्य एक समय में अध्यापक के रूप में तथा दूसरे समय में विद्यार्थी के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार की शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है।

9. औपचारिक शिक्षा (Formal Education ) - औपचारिक शिक्षा वह शिक्षा है जो कुछ निश्चित उद्देश्यों तथा आदशों के अनुरूप संगठित होती है। यह एक विशेष समय अवधि के लिए, विशेष समय पर, निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार बालक को औपचारिक ढंग से प्रदान की जाती है। शिक्षा देने का कार्य विशेष क्षेत्र में विशिष्ट व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है। इस क्षेत्र में बालक को सामान्य, विशिष्ट एक व् तथा प्रत्यक्ष शिक्षा प्रदान की जाती है। इस प्रकार की शिक्षा विद्यार्थी औपचारिक संस्थाओं में प्राप्त करता है। शिक्षा क्रमबद्ध रूप से प्रदान की जाती है। इस प्रकार की शिक्षा समाज तथा व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रदान की जाती है। इस प्रकार की शिक्षा एक ही समय में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों शिक्षा को वैज्ञानिक ढंग से तथा सतत् प्रदान की जा सकती है।


10. अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)—यह औपचारिक शिक्षा की पूरक है जिसके बिना शिक्षा अपूर्ण है। यह प्राकृतिक तथा आकस्मिक होती है। इसके परिणामस्वरूप बिना किसी साथ समझे प्रयास के व्यवहार में अचानक तथा आवश्यक रूप से परिवर्तन आता है। यह एक जीवन पर्यन्त प्रक्रिया है जिसमें सभी अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के योग्य हैं। इसके लिए कोई आयु निश्चित नहीं होती। इसमें स्थान तथा समय निश्चित नहीं होता। इस प्रकार की शिक्षा में कोई पूर्व निश्चित पाठ्यक्रम तथा उद्देश्य नहीं होते। चालक अनुभवों से सीखता है तथा इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान औपचारिक शिक्षा की अपेक्षा अधिक स्थायी रहता है। ऐसी शिक्षा किसी संगठित अभिकरण के द्वारा प्रदान नहीं की जाती। इसको बनाने के लिए वित्तीय साधनों की आवश्यकता नहीं होती।

11. निरोपचारिक शिक्षा (Non-formal Education)- औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनो यह औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के बीच की कड़ी है। इसका मुख्य केन्द्र बिन्दु विद्यालय से बाहर की दुनिया है तथा इसके कार्यों में जन शिक्षा, कौशलों, तकनीकों तथा जीवन शैली में सुधार के लिए शिक्षा सम्मिलित की जाती है। वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास के फलस्वरूप ज्ञान में विस्फोट के कारण इस संप्रत्यय का विकास शिक्षा के विकास पर अन्तर्राष्ट्रीय समिति की रिपोर्ट 'लर्निंग टू बी' के प्रकाशन के पश्चात् हुआ। इस समिति के द्वारा यह महसूस किया गया कि शिक्षा पर इतने वित्तीय साधनों के खर्च करने के पश्चात् भी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग शिक्षा से वंचित रह जाता है। वे जीविका कमाने में व्यस्त रहते हैं, इसीलिए वे निश्चित समय में औपचारिक शिक्षा संस्थाओं में प्राप्त नहीं कर सकते। इसीलिए समिति के द्वारा यह सुझाव दिया गया कि ऐसे लोगों के लिए, जो शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक हैं, अवकाश के समय में उचित शिक्षा का प्रबन्ध किया जाना चाहिए।

भारत में इस प्रकार की शिक्षा अत्यावश्यक है। परिणामस्वरूप बहुत से कार्यक्रम जैसे-प्रौढ़ शिक्षा, पत्राचार शिक्षा, मुक्त विश्वविद्यालय से शिक्षा आदि प्रारम्भ किए गए हैं। उनके उद्देश्य समाज के प्रत्येक वर्ग का सामाजिक तथा आर्थिक विकास करना है। यह जीवन केन्द्रित तथा वातावरण आधारित है तथा व्यक्तियों को भविष्य में परिवर्तन के लिए तैयार करती है।

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