संचालन ( निर्देशन) Direction
संचालन (निर्देशन): अर्थ एवं परिभाषा
(Direction : Meaning and Definition)
संचालन (निर्देशन) का अर्थ है शक्ति का विभिन्न कार्यों में प्रयोग करना मुख्यतः दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराना संचालन है। यह संचालन वांछित दिशा में होना चाहिए। संगठन की सफलता संचालन पर निर्भर करतीै । यह कार्य करने की सूचना देता है, कार्य को किस प्रकार करना है, कब करना है, कब समाप्त करना है , यह सब संचालन पर निर्भर करता है। अतः संचालन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा योजना और व्यव संचालित होती है। साधन जुटाने के बाद विभिन्न कार्यों के सम्पादन में निर्देशन देना और उपलब्ध साधनों के कार्यान्वित करना निर्देशन का कार्य है। निर्देशन (संचालन) में प्रमुखतः तीन बातों को महत्त्व दिया जाता है प्रथम- निर्णय लेना, द्वितीय निर्णय की घोषण करना और तृतीय निर्णयों को व्यवहार में लाना। यह कार्य कराने की प्रणाली का ज्ञान श्रेष्ठ प्रशासक कराते हैं। निर्णय की सफलता ज्ञानी, योग्य, दूरदर्शी जी अनुभवी प्रशासक पर निर्भर करती है। क्योंकि विभिन्न प्रवृत्तियों और प्रकृति वाले व्यक्तियों की ठीक प्रका समझकर कार्यों का उचित विभाजन करना प्रशासक का कार्य है। अतः निर्देशन वातावरण पर कर्मचारी वर्ग पर साज-सज्जा, सम्मान, धन आदि पर निर्भर करता है और प्रशासक की इच्छा द्वारा नियन्त्रित होता एवं निर्देशित किया होता है।
मार्शल ई० डिमांक (Manshell E. Demock) के शब्दों में,
"निर्देशित प्रशासन कार्य का अंत है, जिसमें निश्चित आदेश एवं निर्देश शामिल हैं।"
"The heart of administration is the directing function which involves determining the course of giving orders and instructions providing the dynamic leadership"
कुण्ट्ज और ओडोनेल (Koontz and O'Donell) के निर्देशन को मिश्रित कार्य मानते हुए कहा "संचालन एक मिश्रित कार्य है, इसमें वे सब कार्य सम्मिलित हैं जो कार्यकर्ताओं को प्रभावपूर्ण और कुशलतापूर्वक कार्य करने हेतु उत्साहित करते हैं।"
"Direction is a complex function that includes all those action which are designed to encourage subordinates to work effectively and efficiently"
संचालन (निर्देशन) सम्बन्धी कार्य (Functions Related to Direction)
संचालन प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह निरीक्षण, पर्यवेक्षण और मूल्यांकन में सहायक है। यह एक सतत् प्रक्रिया है, इसका मुख्य उद्देश्य कार्यकर्ता को कार्य हेतु और प्रशासक को उत्तरदायित्व हेतु तैयार करना है। संचालन के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं –
(1) अधीनस्थ कर्मचारियों से सम्बन्धित कार्य -
प्रशासन अधीनस्थ कर्मचारियों को आदेश देता है, निर्देश देता है और उनके कार्यों का निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करता है। निरीक्षण और पर्यवेक्षण के द्वारा उनके अनुचित कार्यों पर नियन्त्रण रखता है। आदेश-निर्देश का अनुपालन करते हुए कर्मचारीगण निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं और वांछित विकास की गति प्रदान करते हैं।
(2) कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा उठाना –
कुशल निर्देशन (संचालन) द्वारा प्रशासन कार्यकर्ताओं के मनोबल को ऊँचा रखता है, उन्हें प्रेरित करता है और यह भावना भरता है कि कम-से-कम व्यय में अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त किया जा सकता है। ऊँचा मनोबल ही उत्पादन वृद्धि में सहायक होता है और विकास की गति को तीव्र करता है।
(3) कार्यों के मध्य सामंजस्य (समन्वय) स्थापित करना - प्रशासन को मानवीय और भौतिक साधनों में समन्वय स्थापित करना होता है। समन्वय स्थापना से कार्य निर्वाध रूप से आगे बढ़ता रहता है और निरन्तर विकास की ओर गतिशील रहता है। विभिन्न कार्यों के मध्य समन्वय ही वह आधार है जो वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करता है।
(4) प्रशिक्षण से सम्बन्धित कार्य –
समय-समय पर कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी होती है। इसके परिणामस्वरूप कार्यकर्त्ता की कुशलता में वृद्धि होती है। इस कुशलता का प्रभाव उत्पादन को प्रभावित करता है। अतः उचित निर्देशन द्वारा कार्यकर्ता उचित कार्य करने में सक्षम हो जाता है।
(5) नीतियों को प्रभावपूर्ण बनाना-
निर्देशन प्रशासनिक नीतियों को प्रभावी बनाता है। प्रभावी नीतियाँ कार्यकर्ता को आगे बढ़ने, निष्ठापूर्वक कार्य करने की प्रेरणा देती है। निर्देशन के द्वारा यह पता चलता है कि कौन-सा कार्य कब करना है, कैसे करना है और कब समाप्त करना है। अतः निर्देशन नीतियों को प्रभावपूर्ण बनाकर कम लागत में अधिक उत्पादन को सम्भव बनाता है।
(6) नेतृत्व प्रदान करना एवं प्रोत्साहित करना-
निर्देशन का कार्य नेतृत्व प्रदान करना है और साथ ही कार्यकर्त्ता को प्रोत्साहित भी करना है। कुशल निर्देशन ही कुशल नेतृत्व प्रदान करता है और कुशल नेतृत्व उत्पादन वृद्धि में सहायक होता है। इस प्रकार कुशल निर्देशन से सहायकों पर नियन्त्रण रहता है और कार्यकर्ता वांछित देशों में विकास की ओर अग्रसर होता है।
(7) नियन्त्रण को प्रभावी बनाना –
प्रशासन का प्रमुख कार्य निर्देशन है। निर्देशन के द्वारा संगठन पर नियन्त्रण से उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा अलाभकारी कार्यों में कमी आती है। अतः नियन्त्रण के प्रभाव में अनुशासनशीलता बढ़ती है।
अतः स्पष्ट है कि संचालन (निर्देशन) सम्पूर्ण तन्त्र को शक्ति देता है, गति देता है, अनुशासन देता है और उत्पादन देता है। व्यक्ति निष्ठापूर्वक कार्य करते हैं और बिना किसी पूर्वाग्रह के कार्यरत रहते हैं।
निर्देशन (संचालन) में सावधानियाँ
(Carefulness in Direction)
संचालन प्रक्रिया के अन्तर्गत हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(1) निर्देशन हेतु अनुभवी और लोकप्रिय प्रशासन नियुक्त करना चाहिए।
(2) मानवीय सम्बन्धों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।
(3) प्रजातान्त्रिक सम्बन्धों और सिद्धान्तों के आधार पर प्रशासन का संचालन करना चाहिए।
(4) पारस्परिक निर्णयों, विचारों, भावनाओं का सद्भावना के साथ सम्मान करना चाहिए।
(5) निर्देशन में गतिशीलता बनी रहनी चाहिए, उसमें किसी प्रकार की शिथिलता नहीं आनी चाहिए। जे० बी० सीयर्स का मत है "संचालन वह भाग है जो निर्णय को प्रभावित करता है, कार्य करने की सूचना देता है और यह संकेत देता है कि कार्य किस प्रकार करना है तथा कब प्रारम्भ या समाप्त करना है।"
(6) संचालन की सफलता पास्परिक सम्बन्ध स्थापित करने में है।
(7) अच्छे और कुशल नेतृत्व के लिए अपने साथियों से परामर्श लेकर अपने विषय का निर्णय लेना चाहिए।
No comments:
Post a Comment