संगठन ( Organization): अर्थ एवं परिभाषा, कार्य (FUNCTIONS), सावधानियाँ (Cautions)

 संगठन ( Organization)

संगठन : अर्थ एवं परिभाषा
(Organization : Meaning and Definition)


संगठन से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जो प्रशासन द्वारा भौतिक और मानवीय साधनों को जुटाने के लिए की जाती है। संगठन प्रशासन का द्वितीय आधारभूत कार्य है। यह कार्य दो रूपों में किया जाता है, प्रथम ‐ मानवीय संगठन द्वितीय भौतिक संगठन। प्रथम मानवीय संगठन में शिक्षक, कर्मचारीगण, समितियाँ, छात्रगण तथा अन्य सम्बन्धित मानवीय तत्त्व सम्मिलित रहते हैं और द्वितीय भौतिक संगठन में भवन, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं खेल का मैदान तथा अन्य शैक्षिक सहायक सामग्री सम्मिलित हैं। संगठन इस प्रकार दोनों तत्त्वों में समन्वय स्थापित करता है और इन्हें इस प्रकार व्यवस्थित करता है कि उद्देश्य प्राप्ति में कोई असुविधा न हो। यह व्यवस्था औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूप में संभव है। औपचारिक व्यवस्था में कार्यकर्ताओं का एक पदानुक्रम होता है, इनमें कार्य वरिष्ठ अथवा अधीनस्थ के रूप में बॅटे होते है तथा इनमें संगठनात्मक सम्बन्ध आदेशों और सूचनाओं के आदान-प्रदान से होता है, जबकि अनौपचारिक व्यवस्था में सम्बन्ध व्यक्तिगत अभिवृत्ति, रुचि, विश्वास, मान्यता, विचार और कार्य के आधार बनते हैं। संगठन के दोनों रूपों में समन्वय के अभाव में लक्ष्य प्राप्ति असम्भव है। इसलिए संगठन एक यन्त्र के रूप में कार्य करता है। संगठन को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है—


1- मैफारलेण्ड के अनुसार, "मनुष्यों का एक पहचान समूह जो अपने प्रयत्नों को उद्देश्य प्राप्ति में लगता है संगठन कहलाता है।

 "An identifiable group of people contributing their effets towards the attainment of goals is called organization" - Mefarland

2- प्रो० एल०एच० हैनी के शब्दों में, "संगठन एक विशिष्ट भाग का सुसंगत समायोजन है जो कुछ सामान्य उद्देश्यों को सम्पादित करता है।"

"Organization is a harmonious adjustment of specialised part for the accomplishment of some common purpose or purposes"  -L. H. HANEY

3- डॉ० एस०एन० मुखर्जी (Dr. S. N. Mukherji) के अनुसार, संगठन कार्य करने की मशीन है।इसका मुख्य उद्देश्य व्यवस्था करने से सम्बन्धित है ताकि समग्र कार्यक्रम का संचालन किया जा सके।"

4- जॉन डब्ल्यू० वाल्टन (John. W. Waslten) के अनुसार, "संगठन कार्यरत व्यक्तियों का एक समूह है जो समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साथ-साथ मिलकर कार्य करते हैं।" 

 अतः स्पष्ट है कि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपलब्ध समस्त भौतिक एवं मानवीय तत्त्वों की समुचित व्यवस्था करना ही संगठन है और इसका सम्बन्ध संरचना और मानव सम्बन्ध दोनों से है और इसे संचालित करके लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है।


संगठन सम्बन्धी कार्य (FUNCTIONS RELATED TO ORGANIZATION)


प्रशासन का द्वितीय आधारभूत कार्य संगठन है। संगठन एक व्यवस्था है जिससे मानवीय और द्वितीय भौतिक संगठनभौतिक साधनों में समन्वय स्थापित किया जाता है। इस दृष्टि से प्रशासन के संगठन सम्बन्धी विविध कार्यों को हम निम्नलिखित रूप से समझ सकते हैं-


(1) कार्य को सरल और लाभप्रद बनाना- कुशल संगठन प्रशासनिक कार्यों को सरल बना देताहै। इसके फलस्वरूप प्रशासन और प्रबन्ध की क्षमता में वृद्धि होती है। इस प्रकार अच्छा संगठन कार्यकर्ताओं की योग्यता एवं अनुभव का लाभ उठाता है जबकि अयोग्य उद्देश्यपूर्ति में सहायक नहीं हो पाता है और उद्देश्यहीन कार्यों में समय की बर्बादी करता है।


(2) मूल्यवान, चरित्रवान कार्यकर्त्ता तैयार करना -  कुशल संगठन ईमानदार, परिश्रमी, समर्पित, उच्च मूल्य और नैतिक चरित्र से युक्त कार्यकर्ताओं का निर्माण करता है। संगठन की आवश्यकता के अनुसार व्यक्तियों को तैयार करता है। उनका नैतिक विकास करके भ्रष्टाचार को रोकता है। इस प्रकार अच्छा संगठन कार्यकर्ता को मूल्यों से युक्त करता है और उसमें विविध चारित्रिक मूल्यों का विकास करके संगठन को प्रभावशाली बनाता है।


(3) सृजनात्मकता का विकास करना- कुशल संगठन कार्य की महत्ता को स्वीकार करता है, उसे सद्ध करता है और संगठन की प्राथमिकता के आधार पर कार्य का विवरण और व्यवस्था करता है। इस प्रकार कार्य विभाजन से कार्यकर्त्ता में सृजनात्मकता का विकास होता है और यह कम समय और कम व्यय में अधिक और अच्छा उत्पादन सम्भव बनाता है।


(4) स्वाभाविक विकास को बढ़ावा देना- कुशल संगठन इस प्रकार का ढाँचा (Structure) तैयार करता है जिसमें विकास क्रम स्वाभाविक रूप से चलता रहता है। इसे स्वविकास तो होता ही है साथ ही क्रियाकलापों का विस्तार भी होता है। इस प्रकार इन विकसित क्रियाकलापों के द्वारा प्रगति  शीघ्रतापूर्वक होती है। 


(5) विभिन्न कार्यों एवं साधनों में समन्वय स्थापित करना - संगठन विशिष्टीकरण वर्गीकरण के कार्यों में समन्वय स्थापित करता है और मानवीय एवं भौतिक साधनों को इस प्रकार समन्वित करता है। ताकि कम-से-कम व्यय कर अधिक-से-अधिक सके इससे विकास की दर में तेजी आती है और प्रशासनिक विकास में सहायता मिलती है।


(6) संसाधनों का समुचित एवं तकनीकी का अधिकतम उपयोग करना - कुशल संगठन संसाधनों को इस प्रकार व्यवस्थित करता है, जिससे इन साधनों का समुचित उपयोग हो सके और साथ ही तकनीकी का अधिकतम उपयोग करके उत्पादन में वृद्धि की जा सके। इस प्रकार यह कम-से-कम प्रयत्न से अधिक उत्पाद सम्भव बनाता है।


(7) विकास की गति को तीव्रता प्रदान करना - कुशल संगठन कार्यकर्त्ताओं के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। प्रशिक्षित व्यक्तियों को प्रशासन में विभिन्न पदों पर नियुक्ति प्रदान करता है और उनकी कुशलता तथा योग्यता का अधिकतम लाभ प्राप्त कर संगठन के विकास को तीव्रगति प्रदान करता है।


संगठन की सावधानियाँ
(Carefulness in Organization)

संगठन का निर्धारण करते समय हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(i) निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न तत्त्वों को संगठित किया जाना चाहिए।

 (ii) मानवीय और भौतिक तत्वों के अतिरिक्त अन्य विचार, धारणाएँ, नियम, सिद्धान्त, आदर्श आदि का भी कार्य निर्धारण के समय ध्यान रखना चाहिए।

(iii) संगठन के नियम और निर्णय आदि सभी व्यक्तियों के लिये लाभकारी होने चाहिए।

(iv) संगठन का स्वरूप छोटा या बड़ा हो सकता है। यह शिक्षा योजना के अनुसार अल्पकालिक और पूर्णकालिक हो सकता है। किसी भी रूप में संगठन प्रशासनिक कार्य में असुविधा उत्पन्न करनेवाला नहीं होना चाहिए। 

(v) संगठन का आधार प्रजातान्त्रिक होना चाहिए, तभी शिक्षा कार्य सफल हो सकेगा।

(vi) संगठन को पक्षपात, राजनीति, जातिवाद तथा अन्य विरोधी एवं दूषित तत्वों से दूर रखना चाहिए 

(vii) संगठन का स्वरूप योजना के अनुरूप निर्धारित करना चाहिए और सम्प्रेषण की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।



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