शैक्षिक (शिक्षा) प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Educational Administration
शैक्षिक प्रशासन के अन्तर्गत मानवीय और भौतिक दोनों तत्वों को सम्मिलित किया जाता है। मानवीय तत्वों में शिक्षक, शिक्षार्थी, अभिभावक, प्रशासन, निरीक्षक आदि की गतिविधियों को सम्मिलित किया जाता है तथा भौतिक तत्वों में विद्यालय भवन, वित्त, सामग्री, उपकरण, फर्नीचर, तथा अन्य साज-सज्जा का समावेश किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा सम्बन्धी सभी तथ्य, योजनाएँ, नियन्त्रण, प्रतिवेदन, निर्देशन, निरीक्षण, बजट आदि सभी शैक्षिक प्रशासन की सामग्री है। आज शैक्षिक प्रशासन का विस्तार दूर-दूर तक हो गया है। फलस्वरूप - शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत हो गया है।
प्रशासन को शिक्षा से सम्बन्धित करके आर्डवे टीड ने इस प्रकार विभाजित किया है –
ये पाँच क्षेत्र निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किए जा सकते हैं-
(1) उत्पादन
(2) सामुदायिक उपयोग में विश्वास
(3) वित्त एवं लेखांकन
(4) कार्मिक
(5) समन्वय ।
प्रशासन को शिक्षा से सम्बन्धित करके जे० बी० सीयर्स महोदय ने इस प्रकार विभाजित किया है—
(i) शैक्षिक लक्ष्यों की स्थापना।
(ii) शिक्षा कार्मिकों का विकास करने हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
(iii) अधिकार के प्रयोग की प्रक्रिया एवं प्रकृति की परिभाषा देना (शैक्षिक प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना)।
(iv) उद्देश्यों एवं प्रक्रियाओं की प्रकृति तय करना और
(v) संरचना तय करना अर्थात् शक्ति एवं सत्ता के प्रयोग हेतु प्रशासनिक तन्त्र का प्रयोग करना ।
इस प्रकार शैक्षिक प्रशासन में अनेक गतिविधियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। इसलिए शैक्षिक प्रशासन के विस्तार को देखते हुए इसे निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है—
शैक्षिक प्रशासन के विस्तार को देखते हुए इसे निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है—
(1) कानून नियम व व्यवस्था (वैधानिक संरचना) — इसके अन्तर्गत शिक्षा के अभिकरण के अधिकार व कर्त्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों को निर्धारित किया जाता है और प्रबन्ध का विकेन्द्रीकरण किया जाता है। इस प्रकार प्रशासन से सम्बन्धित नियम, कानून, शर्ते, व्यवस्थाएं आदि को शैक्षिक प्रशासन में सम्मिलित किया जाता है।
(2) बाल-केन्द्रित व्यवस्था (बालक) — आधुनिक शिक्षा में बालक पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसलिए आज की शिक्षा बाल-केन्द्रित शिक्षा कहलाती है। बाल केन्द्रित से अभिप्राय बालक के विकास के लिए की जाने वाली प्रक्रिया से है, अर्थात् बालक के व्यक्तिगत और सामूहिक विकास के उद्देश्य निर्धारित करना और बालक की रुचि, क्षमता, समाज की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा की प्रक्रिया निर्धारित करना और प्रवेश उन्नति, अनुशासन आदि के नियम बनाना व लागू करना शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र है।
(3) कर्मचारी वर्ग (कार्मिक) – शैक्षिक व्यवस्था की सफलता अच्छे प्रशासन पर निर्भर करती है और अच्छे प्रशासन में कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। कर्मचारी ही मानवीय व भौतिक संसाधनों को ध्यान में रखते हैं और उद्देश्य प्राप्ति की ओर बढ़ते हैं। इसलिए योग्य कर्मचारी की नियुक्ति, सेवा शर्तों का निर्धारण, प्रशिक्षण की व्यवस्था, वेतन, कल्याणकारी योजनाएं, सेवामुक्ति सम्बन्धी लाभ उत्पादन को बढ़ाने हेतु अतिरिक्त बोनस देना आदि की व्यवस्था आवश्यक होती है, तभी शैक्षिक प्रशासन अच्छा शासन प्रदान कर सकता है। अतः सेवाकालीन प्रशिक्षण आदि प्रभावकारी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।
(4) वित्तीय नियोजन – इसके अन्तर्गत शिक्षा से सम्बन्धित नीतियाँ तथा विविध कार्यक्रम बनाए जाते हैं। इस हेतु संख्या सम्बन्धी आँकड़े एकत्र करना, भवन-निर्माण की योजना बनाना, आय-व्यय का लेखा-जोखा, अंकेक्षण प्रतिवेदन तैयार करना आदि कार्य आवश्यक है। शैक्षिक गतिविधि हेतु वित्त की व्यवस्था, स्टॉफ का व्यय, भवन-निर्माण, मेण्टीनेन्स, बीमा, बजट बनाना आदि की व्यवस्था अच्छी होनी आवश्यक है। व्यवस्था अच्छी है तो कार्यक्रम भी अच्छे होंगे। अतः शैक्षिक प्रशासन वित्तीय साधनों का पता लगाता है और शैक्षिक लक्ष्यों की शर्तें हेतु उनका दोहन करता है।
(5) भौतिक व शारीरिक सुविधाएँ— भौतिक सुविधाए— विद्यालय भवन, उपकरण, रख-रखाव और भौतिक सुविधाओं को व्यवस्था शैक्षिक प्रशासन के द्वारा की जाती है। इसके साथ ही बालक के सर्वांगीण विकास हेतु खेलकूद सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती है; जैसे—खेल का मैदान, खेल-सामग्री, निर्देशन, स्वास्थ्य की जाँच कराना प्रशासन का दायित्व है।
(6) पाठय़क्रम – शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने का माध्यम पाठ्यक्रम होता है और पाठ्यक्रम शैक्षिक प्रशासन से सीधा सम्बन्ध रखता है। शैक्षिक प्रशासन पाठ्यक्रम का निर्माण, आयोजन और परिवर्तन करता है। परिवर्तन के लिए वैज्ञानिक तकनीकी एवं सामाजिक परिवर्तनों को ध्यान में रखा जाता है और शैक्षिक कार्यक्रमों का मूल्यांकन करके इसमें सुधार की व्यवस्था भी शैक्षिक प्रशासन द्वारा की जाती है। शैक्षिक प्रशासन द्वारा ही विषय-वस्तु की तैयारी, पुस्तकों का वितरण तथा अन्य साहयक सामग्री पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके अतिरिक्त भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, निर्देशन, पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएं आदि का आयोजन भी शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र में ही निहित है।
(7) व्यापक जनसम्पर्क - शैक्षिक कार्यक्रमों के संचालन में अध्यापक, छात्र और अभिभावक मूल आधार है, इनके सहयोग के बिना कार्यक्रम संचालन सम्भव नहीं हो पाता है। इसलिए व्यवस्था को दृढ़ता प्रदान करने हेतु व्यापक जनसम्पर्क की आवश्यकता होती है। इसके लिए सूचना माध्यमों का सहारा लिया जाता है और विविध समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं, टी०वी० आदि के द्वारा जानकारी प्राप्त की जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि प्रशासन और समुदाय के मध्य दूरियाँ कम हो जाती हैं और और निकटता बढ़ती है। परिणामस्वरूप सामुदायिक संसाधनों का उपयोग विभिन्न महत्त्वपूर्ण सेवाओं में किया जा सकता है।
(8) समन्वय स्थापित करना – शैक्षिक प्रशासन उपलब्ध साधनों और कर्मचारियों के मध्य समन्वय स्थापित करता है। समन्वय से ही व्यवस्था को सुचारू रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है और सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया की सफलता समन्वय पर ही आधारित होती है, क्योंकि समन्वय से ही सम्बन्धित समस्याओं का ज्ञान और समाधान सम्भव होता है। इसके साथ ही शिक्षा का स्वरूप तैयार करना और समय-समय पर मूल्यांकर करना समन्वय द्वारा सुगमतापूर्वक किया जा सकता है, इससे व्यक्ति और समाज दोनों के लिए शैक्षिक प्रशासन लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
(10) उद्देश्य एवं मूल्यों का निर्धारण करना – शैक्षिक प्रशासन व्यक्ति और समाज के हित को दृषि में रखकर उद्देश्यों, आदर्श मूल्यों और सिद्धान्तों का निर्धारण करता है। वह सभी शिक्षार्थियों के लिए शैक्षिक कार्यक्रम की योजना बनाता है और उन्हे क्रियान्वित भी करता है।
शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है I इसमें वित्तीय नियोजन, जनसम्पर्क, पाठ्यक्रम, भौतिक सुविधाओं आदि विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया जाता है।
जाता है और निष्कर्ष निकाला जाता है। इस प्रकार उपलब्ध जानकारी का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है और समस्याओं के समाधान हेतु प्रशासनिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है।
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