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October 10, 2023

प्रशासन एवं प्रबन्धन के कार्य (Functions of Administration and Management)

 प्रशासन एवं प्रबन्धन के कार्य

(Functions of Administration and Management)


आज के युग में, शिक्षा के क्षेत्र में उत्तरोत्तर विकास होने के साथ-साथ शैक्षिक प्रशासन के कार्यों में भी तीव्रगति से वृद्धि हुई है। शैक्षिक प्रशासन से सम्बद्ध सभी व्यक्ति शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति को ही अपना मानकर कार्य को सम्पादित करते हैं। शिक्षा प्रशासन के माध्यम से ही समाज में संचालित विद्यालयों एवं अन्य शैक्षिक संस्थाओं के कार्यों को संचालित किया जाता है ताकि अधिक से अधिक प्रतिफल प्राप्त हो सके शैक्षिक प्रशासन के भिन्न-भिन्न कार्यों का उल्लेख भिन्न-भिन्न विद्वानों द्वारा किया गया है जो निम्न प्रकार है –

[1] मॉलमेल के अनुसार शिक्षा प्रशासन के कार्य (Functions of Administration according to Malmale)


शिक्षाविद् मॉलमेल ने शैक्षिक प्रशासन के कार्यों को दो भागों में विभक्त किया है--


(A) निर्देशात्मक कार्य (Directive Function)

(B) क्रियाशील कार्य (Active Function)

(A) निर्देशात्मक कार्य (Directive Function)—

इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं--


(1) शिक्षा के भिन्न-भिन्न प्रकारों का प्रशासन करना।

(2) शिक्षा के भिन्न-भिन्न स्तरों का शासन करना।

(3) शिक्षा की भिन्न-भिन्न शाखाओं को प्रशासन करना।

(4) शिक्षकों हेतु व्यावसायिक शिक्षाको व्यवस्था करना।

(5) श्रव्य-दृश्य प्रशिक्षण एवं सेवाओं की व्यवस्था करना। 

(6) शिक्षक कल्याण एवं छात्र-सेवा की व्यवस्था करना।

(7) शैक्षिक मूल्यांकन एवं प्रमाण-पत्र कार्यक्रम। 

(8) सेवारत शिक्षकों एवं विस्तार शिक्षा की व्यवस्था करना।

(9) निर्देशात्मक कार्यक्रमों का संगठन करना।


(B) क्रियाशील कार्य (Active Function)— 

इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कार्यों का समावेश किया गया है - 

(1) जनता, विद्यालय, महाविद्यालय एवं पुस्तकालय को सेवाएं करना।।

(2) अनुशासन एवं नियन्त्रण रखना। 

(3) शैक्षिक एवं व्यावसायिक सेवाओं की व्यवस्था करना।

(4) वैयक्तिक प्रशासन ।

(5) शिक्षकों की नियुक्ति एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।

(6) शैक्षिक वित्त योजना बनाना।

(7) शोध प्रशासन, सर्वेक्षण एवं साख्यिकी ।

(8) व्यवस्था करना।

(9) नीतियों एवं विधियों को निधारित करना।

(10) शैक्षिक योजना बनाना एवं उन्हें क्रियान्वित करना।

(11) पाठ्य-पुस्तकों का प्रकाशन करना। 

(12) पाठ्यक्रम पुनर्गठन एवं प्रशासन करना।

(13) छात्रवृत्तियों एवं अन्य अनुदानों का विवरण करना।


[ ॥] सीयर्स के अनुसार शिक्षा प्रशासन के कार्य (Functions of Educational Administration according to Seeyers)

 जे०वी० सीयर्स ने शैक्षिक प्रक्रिया की प्रकृति (The Nature of the Administration Process) नामक अपनी पुस्तक में शिक्षा प्रशासन के पाँच प्रमुख कार्यों का उल्लेख किया है-

(1) योजना बनाना (Planning) 

(2) व्यवस्था करना (Organization)

(3) निर्देशन या संचालन करना (Direction)

(4) समायोजन या समन्वय करना (Controlling and Evaluation) 

(5) नियन्त्रण या मूल्यांकन करना (Controlling and Evaluation)

उपरोक्त कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

(1) योजना बनाना (Planning)-

जे०वी० सीयर्स महोदय का मानना है कि प्रशासन का सर्वप्रथम एवं प्रमुख कार्य-योजना बनाना है। क्योंकि योजना निर्माण पर ही किसी कार्य की सफलता या असफलता नि करती है। योजना का निर्माण करते समय सर्वप्रथम उद्देश्यों का निर्धारण करना पड़ता है। कार्य के सम्बन्ध सूचनाओं का संकलन किया जाता है एवं आवश्यकताओं एवं बाधाओं को भी ध्यान में रखा जाता है।उपरोक्त्त तथ्यों का अभिप्रायः यह है कि किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व उन सभी बातों पर विश्लेषणात्मक ढंग विचार किया जाता है जिनको सम्पादित करने से कार्य में सफलता प्राप्त होती है। 


(2) व्यवस्था करना (Organization)- 

सीयर्स महोदय के अनुसार शैक्षिक प्रशासन का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य व्यवस्था करना है। व्यवस्था का अभिप्राय योजना को क्रियान्वित कराने में सहायक आवश्यक साधनों को जुटाना है। व्यवस्था के अन्तर्गत सर्वप्रथम कुछ नियमों एवं कार्य करने का ढंग का निर्धारण किया जाता है। सीयर्स के अनुसार शैक्षिक प्रशासन के अन्तर्गत दो तथ्यों पर ध्यान देना नितान्त आवश्यक है--

 (1) शिक्षण कार्य की सरलता एवं सुगमता के लिए विभिन्न उपकरणों को जुटाना ।

(ii) शैक्षिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को जुटाना। शिक्षण कार्य की सरलता एवं सुगमता के लिए विभिन्न उपकरणों के जुटाने का अभिप्राय कक्षा भवन् बैठने की कुर्सियों, मेज, श्यामपट्ट, चाक, डस्टर, सहायक सामग्री आदि से लिया जाता है जबकि शैक्षिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को जुटाने का अभिप्राय-शिक्षक, लिपिक तथा अन्य कर्मचारियों से लिया जाता है।


(3) निर्देशन या संचालन करना (Direction)—

सीयर्स महोदय के अनुसार शिक्षा प्रशासन क तीसरा महत्त्वपूर्ण कार्य निर्देशन या संचालन करना है। संचालन के सम्बन्ध में सीयर्स का कहना है कि प्रशासन के अन्तर्गत, संचालन कार्य निर्णय को प्रभावित करता है। कार्य को प्रारंभ करने का संकेत देता है। यह बताता है कि  कार्य  कब प्रारंभ किया जाए और कब खत्म किया जाए ।इस दृष्टिकोण से संचालन को गत्यात्मक कहा जा सकता है और कार्य करने हेतु उत्तरदाई व्यक्ति द्वारा संचालन को निर्देशित एवं नियंत्रित किया जा सकता है।


(4) समायोजन या समन्वय स्थापित करना (Controlling and Evaluation)-

 सीयर्स महोदय का मानना है कि शैक्षिक प्रशासन का चौथा महत्त्वपूर्ण कार्य समायोजन या समन्वय त्यापित करना है। समन्वय के सम्बन्ध में सीयर्स महोदय का कहना है कि, प्रशासन के अन्तर्गत समायोजन या समन्वय व्यक्ति, सामग्री तथा साधनों के मध्य, इस आशय से मधुर सम्बन्ध स्थापित करता है जिससे वे समस्त मिलकर किसी कार्य को प्रभावी ढंग से कर सकें।" समायोजन मानवीय एवं भौतिक साधनों को एक स्थान पर जुटाने का कार्य करता है। सीयर्स के अनुसार समायोजन का आशय है किसी कार्य की सफलता हेतु समस्त सम्बन्धित व्यक्तियों का परस्पर सहयोग एवं सद्भावनापूर्वक कार्य करना, समस्त व्यक्तियों को सामूहिक शक्ति प्रदान करना। विद्यालय के प्रबन्धक, प्रचार्य, शिक्षक, शिक्षार्थी, कर्मचारी आदि सभी को एक-दूसरे के विचारों का आदर करना चाहिए तथा एक टीम भावना के अनुसार कार्य करना चाहिए।


(5) नियन्त्रण या मूल्यांकन करना (Controlling and Evaluation ) -

सीयर्स महोदय के अनुसार शैक्षिक प्रशासन का अन्तिम महत्त्वपूर्ण कार्य नियन्त्रण या मूल्यांकन करना है। किसी भी संस्था एवं संगठन में कार्यरत व्यक्तियों की अच्छाई, बुराई और उनको कार्यक्षमता का मापन नियन्त्रण की प्रक्रिया द्वारा ही किया जाता है तथा मूल्यांकन के उपरान्त ही व्यक्तियों को निर्देशन प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति किस सीमा तक अधिकारों का प्रयोग करेगा, इसका निर्धारण, नियन्त्रण की प्रक्रिया के अभाव में सम्भव नहीं हो सकता। इस सन्दर्भ में सीयर्स महोदय ने लिखा है कि, कोई भी जब तक सम्बन्धित व्यक्तियों, वस्तुओं या लक्ष्यों पर हो सही प्रकार नियन्त्रण न कर से तब तक वह किसी क्रिया के सम्बन्ध में निर्देशन नहीं दे सकता।


शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण प्रणाली तथा शिक्षकों के कार्यों का मूल्यांकन करने के अतिरिक्त पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, पाठ्य-पुस्तकें निर्देशन सामग्री पाठ्येतर क्रियाएं आदि सभी का मूल्यांकन किया जाता है। 


[IIl] शिकागो विश्वविद्यालय की नेशनल सोसायटी फॉर दी स्टडी ऑफ एजुकेशन के अनुसार शैक्षिक प्रशासन के कार्य  (Functions of Educational Administration according to National the Study of Education of Chikago University)

 

इस सोसायटी ने शैक्षिक प्रशासन के निम्नलिखित कार्यों का उल्लेख किया है-

(1) स्थानीय नियन्त्रण को शक्ति प्रदान करना।

(2) प्रजातान्त्रिक पद्धति से युक्त कार्यक्रमों का संचालन करना।

(3) एक क्षेत्र से सम्बन्धित समस्याओं का संकलन करना। 

(4) मानवीय एवं भौतिक स्रोतों की क्षमताओं का अधिकाधिक लाभ उठाना ।

(5) सामाजिक संगठनों, संस्थाओं एवं जनता सेवकों द्वारा की गई प्रशंसा को अर्जित करना।

(6) नीतियों का निर्धारण करना एवं उन्हें लागू करना।

(7) व्यय धनराशि के बदले में अधिकाधिक लाभ प्राप्त करना ।

(8) उत्तरदायित्वों को सौंपना ।


[IV] रसेल टी० ग्रेग के अनुसार शैक्षिक प्रशासन के कार्य (Functions of Educational Administration according to Russell T. Greg)


रसेल टी० ग्रेग के अनुसार शैक्षिक प्रशासन के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) निर्णय लेना (Decision Making)

(2) योजना बनाना (Planning)

(3) व्यवस्था करना (Organizing )

(4) सम्प्रेक्षण (Communication)

(5) प्रभाव डालना (Influencing)

(6) समन्वय करना (Co-ordinating)

(7) मूल्यांकन करना (Evaluation)


[V] हेनरी फेयॉल के अनुसार शिक्षा प्रशासन के कार्य (Functions of Educational Administration according to Henry Fayol) 

हेनरी फेयॉल ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर शैक्षिक प्रशासन के निम्नलिखित कार्य बताऐ है -

(1) योजना करना (Planning)

(2) व्यवस्था करना (Organization)

(3) निर्देशन देना (Directing)

(4) समन्वय करना (Co-ordinating)

(5) नियन्त्रण करना (Controlling) 


[VI] जॉन रेम्सेयर के अनुसार शिक्षा प्रशासन सम्बन्धी कार्य ( Functions related to Educational Administration according to John Ramsey)

(1) उद्देश्यों या लक्ष्यों का निर्धारण करना 

(2) नीति निर्धारित करना ।

(3) कार्यों का निर्धारण करना ।

(4) विभिन्न कार्यों में समन्वय स्थापित करना ।

(5) शैक्षिक साधनों का समुचित प्रयोग करना ।

(6) विभिन्न मसालों पर विचार-विमर्श करना।

(7) नेतृत्व करना ।

(8) सहयोगी स्रोतों को प्राप्त करना ।

(9) प्रभाव का मूल्यांकन करना।


[VII] लूथर गुलिक के अनुसार शैक्षिक प्रशासन के कार्य( Functions of Educational Administration according to Luther Gulick)

लूथर गुलिक (Luther Gulick) ने प्रशासन के सात कार्यों को बताया है—


(1) नियोजन करना (Planning)

(2) व्यवस्था करना (Organization)

(3) कर्मचारी नियुक्तिकरण ( Staffing)

(4) संचालन (Governing)

(5) समन्वयीकरण (Co-ordination)

(6) रिपोर्ट लिखना (Reporting)

(7) बजट बनाना (Budgeting)


शिक्षा प्रशासन के प्रमुख कार्य (Main Functions of Educational Administration and Management)


1- उत्तम शैक्षिक व्यवस्था करना

2- नीतियों एवं नीतियों का निर्धारण

3- सहायक सेवाओं की व्यवस्था करना

4- सभी शैक्षणिक संस्थाओं का विधि पूर्वक संचालन करना

5-  शैक्षिक योजनाओं को बनाना

6- कर्मचारियों का प्रबंध करना

7- संचालन करना

8- शैक्षिक वित्तीय व्यवस्था करना

9- पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण करना

10- परीक्षाओं की व्यवस्था करना

11- समायोजन या समन्वय स्थापित करना

12- आलेखों का अनुरक्षण

शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Educational Management), उद्देश्य (Objectives), प्रकृति (Nature), विशेषताएँ (Characteristics)

 शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता एवं महत्व 

(Need and Importance of Educational Management)


शिक्षा का स्वरूप निर्धारण करने में किसी देश की शासन-प्रणाली की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है और यह सत्य है कि प्रचलित शैक्षिक व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था का आधार होती है। जनतन्त्र में शैक्षिक प्रणाली का सही रूप प्रस्तुत करने में शैक्षिक प्रबन्धन मुख्य होता है, इसके आधार पर ही जनतान्त्रिक मूल्यों का प्राप्त किया जा सकता है। इन तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए हम शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता एवं महत्व को निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं--


(1) शैक्षिक संस्था अथवा संगठन को सदृढ़ बनाना

आवश्यक संसाधनों की पूर्ति करके संगठन का विकास करने एवं वित्तीय स्रोतों की जानकारी प्राप्त कर निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता होती है। इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है।

(2) संस्था के हितों के अनुरूप मानवीय व भौतिक संसाधनों की व्यवस्था करना –

आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करने, साधनों का अधिकतम उपयोग करने और संसाधनों को अपव्यय से बचाने में शैक्षिक प्रबन्धन की भूमिका अति आवश्यक एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

(3) संस्था अथवा संगठन के कार्यों को आगे बढ़ाना– कर्मचारियों से अपनी नीतियों एवं रीतियों से अधिक कार्य कराने में तथा उनमें दृढ़ निश्चय, मनोबल, आत्मविश्वास एवं साहस बढ़ाने में शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता होती है। इस कार्य की पूर्ति में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

(4) शैक्षिक प्रक्रिया को व्यक्ति एवं समाज के लिए हितकारी बनाना —

 बालक के व्यक्तित्व के विकास - (शरीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि) करने तथा शिक्षा पर नियन्त्रण रखने के लिए शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता है। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।


(5) शिक्षा से सम्बन्धित योजना निर्माण कराना, उन्हें क्रियान्वित करके उनका मूल्यांकन करना –

 शिक्षा के निर्धारित मूल्य, उद्देश्य एवं आदशों को प्राप्त करने तथा लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को बनाने के लिए शैक्षिक प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।


(6) बदलती परिस्थितियों में शिक्षक, शिक्षार्थी और शिक्षा में समन्वय स्थापित करना –

सभी को समान रूप से शिक्षा उपलब्ध कराने तथा शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण अधिकारी एवं शिक्षकों, प्रचायों को उचित निर्देशन देने के लिए शैक्षिक प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अति महत्वपूर्ण है।


(7) विद्यालय में एक ऐसा वातावरण निर्मित करना जो मनोवैज्ञानिक हो –

वातावरण ताल-मेल को बढ़ावा देने वाला हो, कार्यों को सुगम और सरल बनाने वाला हो और शिक्षा के सभी स्त (प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक आदि) में समन्वय स्थापित करने वाला हो। अतः ऐसा प्रबन्धन जो की गुणवत्ता में वृद्धि करने और न्यूनतम साधनों से अधिकतम (श्रेष्ठतम परिणाम करने के लिए शैक्षिक प्रक की आवश्यकता है। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।


अतः स्पष्ट है कि शैक्षिक प्रबन्धन के द्वारा पाठ्यक्रम को उचित रूप में संचालित किया जा सकता है। नवीन शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग सरलतापूर्वक किया जा सकता है, व्यक्तिगत भिन्नता के आधार उसकी क्षमता और योग्यता का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है तथा अन्य विविध शैक्षिक कार्यों के शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता है। इस दृष्टि से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है।


शैक्षिक प्रबन्धन के उद्देश्य
(Objectives of Educational Management)


शैक्षिक प्रबन्धन किसी संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करता है। वह इसके लिए ने प्रदान करता है, परामर्श देता है और निर्देशन प्रदान करता है। प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को वाल रूप में प्रबन्धन लागू करता है। प्रबन्धन एक बड़ी सामाजिक क्रिया है इसे संगठन के प्रभावशाली और अत्या नियोजन के लिए उत्तरदायी माना जाता है। इसकी क्रियाओं में निर्णय का आयोजन, उसे लागू करना और कर्मचारियों को निर्देशन देना है। शैक्षिक विकास को ध्यान में रखकर शैक्षिक प्रबन्धन के उद्देश्यों को हम निम्नलिखित रूप समझ सकते हैं-


(1) योग्य एवं कुशल नागरिक तैयार करना

(2) बालक में निहित विभिन्न शक्तियों का विकास करना


(3) शैक्षिक कार्यक्रमों एवं अन्य गतिविधियों का संचालन करना


(4) कर्मचारियों की सेवाएँ एवं प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था करना


(5) शैक्षिक संस्थाओं का निरीक्षण, पर्यवेक्षण कराना एवं निर्देशन देना

(6) वित्त की व्यवस्था करना


(7) शैक्षिक नीतियों और योजनाओं तथा शिक्षा की प्रगति से अवगत कराना 


अतः स्पष्ट है कि शैक्षिक प्रबन्धन के उद्देश्य छात्र, शिक्षक, अभिभावक, समाज और सम्बन्धित कार्मिक उस को संस्था के विकास की दृष्टि से आवश्यकतानुसार उपयुक्त सामग्री एवं सुविधाएँ उपलब्ध करके कम-से-कम पर अधिकतम लाभ प्राप्त करना है। अतः शैक्षिक प्रबन्धन द्वारा लक्ष्यों को स्पष्ट करना चाहिए, निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को स्पष्ट करना चाहिए और उनके समाधान का भी स्पष्ट संकेत होना चाहिए। प्रबन्धन प्रक्रिया में विचार-विमर्श को भी स्थान होना चाहिए। उद्देश्य की दृष्टि से माध्यमिक शिक्षा आयोग (Secondary Education Commission 1952-53) का मत है- "भारत ने राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने बाद अपने को गणतन्त्र घोषित किया है, इसलिए भारत की शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे इस प्रकार चरित्र निर्माण हो सके तथा ऐसा व्यवहार विकसित हो सके कि प्रत्येक नागरिक अपने उत्तरदायित्व को निभा सके।"


शैक्षिक प्रबन्धन की प्रकृति
(Nature of Educational Management)


शैक्षिक प्रबन्धन की प्रकृति के विषय में हम निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं-

 (i) शैक्षिक प्रबन्धन की प्रकृति को दोनों रूपों में स्वीकार किया जाता है। यह कला भी है, विज्ञान भी है, यह न केवल कला है न केवल विज्ञान है अपितु यह कला और विज्ञान दोनों है।

 (ii) शैक्षिक प्रबन्धन एक प्रक्रिया है; उदाहरणार्थ- बच्चों की रुचि पुस्तकालय के प्रति बढ़ानी है सबसे पहले ऐसा वातावरण तैयार करना होगा उसके बाद छात्रों को नियमित अध्ययन के लिए प्रेरित करना होगा और फिर निर्देशित करने की प्रक्रिया पूर्ण करनी होगी ।

(iii) शैक्षिक प्रबन्धन को जन्मजात प्रतिभा माना जाता है, किन्तु आज इसे विद्वान अर्जित प्रतिमा रूप में स्वीकार करते हैं। 

(iv) शैक्षिक प्रबन्धन को एक सामाजिक उत्तरदायित्व माना जाता है। इसका समाज के प्रति उत्तरदायित्व है, उसे पूरा करने के पश्चात् ही इसकी उपयोगिता सिद्ध होती है।

(v) शैक्षिक प्रबन्धन को व्यावहारिक विज्ञान के रूप में माना जाता है। वर्तमान में यह एक व्यवसाय के रूप में विकसित हुआ है। 

(vi) शैक्षिक प्रबन्धन एक प्रणाली के रूप में विकसित हुआ है। अतः यह प्रणाली के अंग-अदा, प्रक्रिय और प्रदा के रूप में विकास कर रहा है। यह स्वतंत्र अनुशासन के रूप में विकसित हुआ है।

 (vii) शैक्षिक प्रबन्धन सार्वभौम है अर्थात् इसकी व्यापकता किसी एक (Secondary Education Commission 1952-53) का मत है- "भारत ने राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने बाद अपने को गणतन्त्र घोषित किया है, इसलिए भारत की शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे इस प्रकार चरित्र निर्माण हो सके तथा ऐसा व्यवहार विकसित हो सके कि प्रत्येक नागरिक अपने उत्तरदायित्व को निभा सके।


शैक्षिक प्रबन्धन की विशेषताएँ

(Characteristics of Educational Management) 


शैक्षिक प्रबन्धन की विशेषताओं को हम निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं-


(i) शैक्षिक प्रबन्धन एक सामाजिक प्रक्रिया है। समाज के अभाव में प्रक्रिया की सफलता अपन कठिन कार्य है।


(ii) शैक्षिक प्रबन्धन उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य की पूर्णता इससे सफल बनाती है।


(iii) शैक्षिक प्रबन्धन संगठन की आवश्यकता है। इसके अभाव में संगठन को सफलता संदिग्ध रहती है


(iv) शैक्षिक प्रबन्धन किसी एक व्यक्ति का प्रयास नहीं है यह तो सामूहिक प्रयासों का प्रतिफल होता है 


(v) शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता किसी एक स्तर पर ही नहीं होती बल्कि यह तो प्रत्येक पर आवश्यक होती है।


(vi) शैक्षिक प्रबन्धन न केवल कला है, न केवल विज्ञान है अपितु यह कला एवं विज्ञान दोनों है। 


(vii) शैक्षिक प्रबन्धन एक विशिष्ट प्रक्रिया है। इसके द्वारा मानवीय एवं भौतिक साधनों में समन्त स्थापित करके कम-से-कम व्यय में अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करना ही इसकी विशेषता है




प्रबन्ध का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, प्रकृति| शैक्षिक प्रबन्ध का अर्थ, शैक्षिक प्रबन्ध की अवधारणा, परिभाषाएँ, सामान्य विशेषताएँ

 प्रबन्ध का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Management) 

प्रबन्ध एक व्यापक एवं जटिल शब्द है। यह इतना व्यापक है कि इसे आधुनिक औद्योगिक जगत में कई अर्थों में प्रयोग किया जाता है। प्रबन्ध की विचारधारा इतनी जटिल है कि, प्रायः विद्वान इसे अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं और उद्देश्य के संदर्भ में काम चलाऊ आधार पर परिभाषित करते हैं। विभिन्न विद्वानों एवं लेखकों ने प्रबन्ध के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उसकी परिभाषा को अपने-अपने तरीके से स्पष्ट करने का प्रयास किया है। इसीलिए इसको कोई सर्वग्राह्म तथा सर्वमान्य परिभाषा आज तक नहीं बन पाई है। सकीर्ण अर्थ में, सर चार्ल्स रेनोल्ड के अनुसार, प्रबन्ध अन्य व्यक्तियों से कार्य कराने की युक्ति है। इस दृष्टि से प्रबन्ध का आशय समुदाय के एक अधिकरण द्वारा अन्य व्यक्तियों से कार्य करवाने से लिया गया है।


विस्तृत अर्थ में, जार्ज आर. टेरी के अनुसार, प्रबन्ध से आशय उस कला तथा विज्ञान से लिया गया है, जो कार्यकुशल तरीके से एक व्यवसाय के उद्देश्यों को प्राप्ति में योगदान करता है। इस अर्थ में, एक संस्था तथा उसमें कार्य करने वाले कर्मचारियों के संगठन, निर्देशन, नेतृत्व एवं नियन्त्रण के कार्यों को प्रबन्ध को संज्ञा दी गई है है


इसके अतिरिक्त कुछ व्यक्ति प्रबन्ध को सामाजिक प्रयासों को व्यवस्था मानते हैं। इनका कहना है कि जब संस्था में एक से अधिक व्यक्ति कार्य करते हैं तभी उनके कार्यों का नियोजन, संगठन, समन्वय एवं नियन्त्रण करना आवश्यक होता है ताकि संस्था अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके। इस प्रकार सामान्य लक्ष्यों को प्राप्ति हेतु सामूहिक प्रयासों का नियोजन संगठन, समन्वय, नियन्त्रण एवं निर्देशन हो प्रबन्ध कहलाता है।


प्रबन्ध की कतिपय प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-


प्रो. आर.सी. डेविस के शब्दों में – “प्रबन्ध कार्यकारी नेतृत्व का कार्य है, यह संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इसकी क्रियाओं के आयोजन, संगठन तथा नियन्त्रण का काम है।"


ई. एफ. एल. बेच के अनुसार –"प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत किसी उपक्रम के निर्धारित उद्देश्य अथवा कार्य को पूरा करने के हेतु क्रियाओं का प्रभावपूर्ण आयोजन एवं नियमन करने का उत्तरदायित्व सन्निहित है।""


जी. ई. मिलवर्ड के अनुसार – "प्रबन्ध प्रक्रिया और ऐजेन्सी है जिसके माध्यम से नीतियों का क्रियान्वयन नियोजन, और पर्यवेक्षण किया जाता है।"


जॉर्ज आर. टैरी ने प्रबन्ध परिभाषित करते हुए लिखा है – कि "प्रबन्ध एक विशिष्ट प्रक्रिया है, जिसमें नियोजन, संगठन, उत्प्रेरण एवं नियन्त्रण सम्मिलित हैं। इनमें से प्रत्येक में कला एवं विज्ञान दोनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनुवर्तन किया जाता है।"


सी. डब्ल्यू. विलसन के अनुसार –"प्रबन्ध एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मानवीय शक्तियों के प्रयोग एवं निर्देशन की प्रक्रिया है।"

जी. ई. मेकफारलैण्ड के अनुसार –"प्रबन्ध वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रबन्धक उद्देश्यपूर्ण संगठनों का व्यवस्थित, संतुलित एवं सहकारितापूर्ण मानवीय प्रयासों के द्वारा सृजन करते हैं, निर्देशन करते हैं, बनाए रखते हैं तथा संचालन करते हैं।" 

पीटर एफ. ड्रकर के शब्दों में – "प्रबन्ध एक बहुउद्देशीय तत्व है जो एक व्यवसाय का प्रबन्ध करता है, प्रबंधकों का प्रबन्ध करता है तथा कार्य करने वालों का प्रबन्ध करता है।"


प्रो. जॉन एफ. मी. के मतानुसार – "प्रबन्ध से आशय न्यूनतम प्रयासों द्वारा अधिकतम परिणाम प्राप्त करने की कला से है जिससे कि नियोक्ता एवं नियोक्ति दोनों के लिए अधिकतम समृद्धि एवं खुशहाली तथा जनता के लिए सर्वश्रेष्ठ सेवा संभव हो सके।"


प्रबन्धन की विशेषताएँ (Characteristics of Management)

(i) प्रबन्धन व्यक्तियों से कार्य कराने की कला तथा विज्ञान है।

 (ii) इसमें व्यक्तियों तथा कार्यकर्त्ताओं को समूह में संगठित रूप में कार्य कराया जाता है। सामूहिक क्रियाओं को बढ़ा दिया जाता है।

(iii) प्रबन्धन को कार्य कराने की ज्ञान की एक शाखा अथवा अनुशासन माना जाता है।

(iv) प्रबन्धन में मानवीय तथा भौतिक स्रोतों में समन्वय स्थापित करने की प्रक्रिया है।

(v) प्रबन्धन पर्यावरण को बनाये रखने तथा उसे बनाने का कार्य करता है। (vi) प्रबन्धन को मानव विकास की प्रक्रिया भी मानते हैं।

(vii) प्रबन्धन में निम्नांकित प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं—


(a) नियोजन की प्रक्रिया (Planning),

(b) उद्देश्यों का प्रतिपादन (Formulation of Objectives),

(c) व्यवस्था करना (Organization of Tasks)

(d) निर्देशन करना (Instructing the Tasks)

(e) नियुक्तियाँ करना (Appointing Workers)

(f) सम्पादन तथा समन्वय करना (Executing and Coordinating) 

(g) मूल्यांकन तथा नियन्त्रण करना (Evaluation and Controlling )

(h) कार्यकर्त्ताओं को प्रोत्साहित करना (Encouraging) |इन सभी क्रियाओं तथा प्रक्रियाओं को उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रबन्धन में सम्पादित करते हैं।


प्रबन्धन की प्रकृति (Nature of Management)


प्रबन्धन की प्रकृति बदलती रहती है। पहले 'प्रबन्धन' तथा 'स्वामित्व' को एक ही अर्थ में प्रयुक्त करते थे परन्तु आज तकनीकी एवं औद्योगिक युग में इनके अर्थ एवं प्रकृति भिन्न हैं। प्रबन्धन की प्रकृति इस प्रकार है—


(i) प्रबन्धन एक कला तथा विज्ञान है और एक अध्ययन का क्षेत्र भी है।


(ii) प्रबन्धन एक विकास का साधन तथा अधिकार तंत्र भी है।


(iii) प्रबन्धन व्यक्तियों से कार्य कराने की सार्वभौमिक प्रक्रिया है।


(iv) प्रबन्धन व्यक्तियों के संगठित समूह से कार्य कराने का एक तंत्र है।


(v) प्रबन्धन एक व्यवसाय/ पेशा है, इसकी अपनी आचार-संहिता है।


(vi) प्रबन्धन पर्यावरण की गुणवत्ता बनाये रखने का कार्य है।


शैक्षिक प्रबन्ध का अर्थ

(Meaning of Educational Management)

आज वैज्ञानिक युग में प्रबन्ध शब्द का प्रयोग प्रत्येक क्षेत्र में हो रहा है और शिक्षा के क्षेत्र में तो प्रबन्ध ने क्रांतिकारी परिवर्तन किया है।

शैक्षिक-प्रबन्ध दो शब्दों-संयुक्त है-शैक्षिक (शिक्षा) एक प्रबन्ध (व्यवस्था) अतः शैक्षिक प्रबन्ध का अर्थ हुआ शिक्षा प्रक्रिया की व्यवस्था का प्रबन्ध करना। प्रबन्ध में यह देखा जाता है शिक्षा व्यवस्था से संबंधित कार्य कैसे, कब एवं किस प्रकार से किए जाते हैं। प्रबन्ध में योजना बनाने, निर्णय लेने,व्यवस्था करने कर्मचारियों का चयन करने, उनको प्रशिक्षण देने, आवश्यक साधनों का ज्ञान करवाने नियोजन करने प्रेरणा देने, संगठनात्मक कार्य करने, कार्य का मूल्यांकन करने एवं सुधार करने आदि सभी संबंधित पक्षों का वर्णन होता है। 

"प्रबन्ध यह जानने की कला है कि क्या करना है तथा उसे करने का सर्वोत्तम तरीका क्या है?" एम. डबलू सर


शिक्षण एक व्यवसाय है इसमें शिक्षक अपने ज्ञान तथा कौशल को सेवाएं धन के बदले छात्रों को देता है। इस प्रक्रिया को सफलता उत्तम प्रबन्ध पर निर्भर करती है। विद्यालयी प्रबन्ध में मानव (शिक्षक छात्र) मशीन (विद्यालयी साधन उपकरण) माल (शैक्षिक प्रक्रिया) निष्पत्ति, मुद्रा बाजार (शुल्क) अर्थव्यवस्था तथा मानव शक्ति है।


नियोजक तथा संगठन (प्रबन्धक, प्रधानाचार्य, शिक्षक, छात्र, कर्मचारी, अभिभावक इन सबको गतिशील बनाए रखता है। शैक्षिक प्रबन्ध के प्राचीन एवं आधुनिक अर्थ को समझने के लिए दोनों कालों को शिक्षण व्यवस्थाओं को समझना आवश्यक है।


वैदिक काल में विद्यार्थी गुरुकुलों व आश्रमों में गुरुओं से शिक्षा पाठ करते थे उस समय के शिक्षक वेतनभोगी नहीं होते थे क्योंकि उनका लक्ष्य सेवा एवं स्थान का था। अ उस समय की शिक्षा-व्यवस्था एवं संस्था को शिक्षक व्यक्तिगत रूप से शिक्षा प्राप्त कर स्वयं चलाते थे।


बौद्ध काल में शिक्षा के केन्द्रों की स्थापना हुई तथा शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था का सारा व्यय राजाओं द्वारा किया जाता था।


मध्यकाल में शिक्षण संस्थाओं का स्वरूप धार्मिक बना रहा और इस समय शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था स्थानीय समुदाय एवं धार्मिक संस्थाएं तथा राजाओं के हाथ में थ समय नियम, सिद्धान्त, व्यवस्था एवं शिक्षण-प्रक्रिया उस समय के राजाओं के पति के अनुसार हो बनाते थे।


आधुनिक समय में शिक्षण संस्थाओं का बड़ी तेजी से हुआ है और शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक प्रबन्ध की संकल्पना शुरू हुई। शैक्षिक शिक्षा के क्षेत्र में वांछित शासकीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए की जाने वाली प्रकिया है


शैक्षिक प्रबन्ध की अवधारणा
(Concept of Educational of Management)


मानव द्वारा की जाने वाली प्रत्येक क्रिया किसी न किसी प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होती है। यह प्रक्रिया इतनी व्यवस्थित होती है कि यदि इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन किया जाए। तो उसके परिणामों में परिवर्तन आ जाता है।


वर्तमान शिक्षा की अवधारणा में दो प्रकार के परिवर्तन हुए हैं- (1) शिक्षा, मानव विकास की सशक्त प्रक्रिया के साथ-साथ राष्ट्र विकास एवं जनशक्ति नियोजन का आधार बन गई है। 

(2) यह एक मानवीय व्यवसाय के रूप में विकसित हो रही है। यह व्यवसाय अन्य व्यवसायों से भिन्न है। इसमें शिक्षक, शिक्षा के द्वारा मानव विकास के लिए किए गए श्रम का मूल्य लेता है। यह व्यवसाय, एक मिशन (सेवा कार्य) के रूप में है जिसका सम्पूर्ण लाभ समाज तथा राष्ट्र को मिलता है। शिक्षण व्यवसाय में प्रबन्ध का विशेष महत्व है।


हेने के अनुसार शिक्षा एक व्यवसाय है इसमें शिक्षक अपने ज्ञान तथा कौशल की सेवाएं, धन के बदले छात्रों को देता है। छात्र, शिक्षक द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान तथा कौशल का उपयोग करके अपनी क्षमताओं का विकास करते हैं। शिक्षा एक प्रबन्ध है शिक्षा यद्यपि  जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया की सफलता उत्तम प्रबन्ध पर निर्भर करती है।


शिक्षा के क्षेत्र में की गई व्यवस्था ही शैक्षिक प्रबन्ध है शैक्षिक प्रबन्ध एक विशेष क्रिया है। मानव समूह तथा संस्थाओं के संचालन के लिए अर्थात् विद्यालय के कर्मियों तथा विद्यालयी संस्था के संचालन के लिए शैक्षिक प्रबन्ध का होना अत्यन्त आवश्यक है। उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में व्यवस्था की यह प्रक्रिया "प्रबन्ध" कहलाती है और शिक्षा के क्षेत्र में यह प्रक्रिया “ प्रशासन" कहलाती है। प्रशासन में व्यक्ति अपने पद के अनुसार अपनी भूमिका का निर्वाह करता है। प्रचलित अवस्था में "प्रबन्ध" शब्द उद्योग तथा व्यवसाय के क्षेत्र में उपयोग किया जाता है। 

में शिक्षा के केन्द्रों की स्थापना हुई तथा शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था का सारा व्यय राजाओं द्वारा किया जाता था।


मध्यकाल में शिक्षण संस्थाओं का स्वरूप धार्मिक बना रहा और इस समय शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था स्थानीय समुदाय एवं धार्मिक संस्थाएं तथा राजाओं के हाथ में थ समय नियम, सिद्धान्त, व्यवस्था एवं शिक्षण-प्रक्रिया उस समय के राजाओं के पति के अनुसार हो बनाते थे।


आधुनिक समय में शिक्षण संस्थाओं का बड़ी तेजी से हुआ है और शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक प्रबन्ध की संकल्पना शुरू हुई। शैक्षिक शिक्षा के क्षेत्र में वांछित शासकीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए की जाने वाली प्रकिया है 

शैक्षिक प्रबन्धन की परिभाषाएँ
(Definitions of Educational Management)


शैक्षिक प्रबन्ध के विषय में अनेक विद्वानों ने अपनी-अपनी राय दी है, कुछ विद्वानों के कथनों को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है-


गैंड तथा शर्मा - (Gande and Sharma ) - " शैक्षिक व्यवस्थापन एक बहुत व्यापक अर्थ वाला विषय है। यद्यपि विद्यालय व्यवस्था शैक्षिक व्यवस्थापन के अन्तर्गत ही एक विषय है परन्तु आमतौर पर शैक्षिक व्यवस्थापन से हम शिक्षा की नीतियों का निर्धारण, उनका संचालन और उनका मूल्यांकन आदि विषयों का ही बोध पाते हैं। शिक्षा व्यवस्थापन के अन्तर्गत शिक्षा की योजना बनाना, उसके लिए उचित व्यवस्था करना, उसका संचालन करना, नीति और साधनों का समायोजन करना तथा नियंत्रण एवं मूल्यांकन करना ये पांच तत्व आते हैं। यद्यपि ये पांचों तत्व एक दूसरे से बंधे हुए हैं तथापि उनका कुछ अंश तक पृथक-पृथक क्षेत्र है।"


कोठारी शिक्षा आयोग (1964-66) के अनुसार – "भारत का भविष्य उसकी कक्षाओं के निर्मित हो रहा है।" उक्त शब्दों में गणतंत्र के लिए योग्य नागरिक तैयार करने में शिक्षण संस्थाओं के कुशल प्रबन्ध का महत्व स्वीकार किया है जिसके द्वारा विद्यालयों में अनुकूल वातावरण निर्मित कर 'शैक्षिक उद्देश्यों की सम्प्राति' करने में सहायता मिलती है। किसी विद्यालय की सफलता उसके 'प्रबन्ध' और 'व्यवस्था' पर निर्भर है। अतः लाभकारी एवं प्रभावपूर्ण शिक्षा के लिए 'विद्यालय प्रबन्ध' या संगठन अपना आवश्यक है।"


किम्बाल एवं किम्बाल— "प्रबन्धन उस कला को कहते हैं जिसके द्वारा किसी उद्योग में मनुष्य में और माल को नियन्त्रित करने के लिये चालू आर्थिक सिद्धान्त को प्रयोग में लाया जाता है।"


कुन्दज- 'औपचारिक समूहों में संगठित लोगों से काम कराने की कला का नाम से है।"


शिक्षा प्रबन्धन की सामान्य विशेषताएँ
(Characteristics of Educational Management


शैक्षिक प्रबन्ध की विशेषताएं या आयाम इस प्रकार हैं-


(1 ) नियोजन व्यवस्था- शैक्षिक प्रबन्ध की सबसे प्रमुख विशेषता नियोजित व्यवस्था है। विद्यालय में सम्पूर्ण व्यवस्था पूर्ण नियोजित होती है अन्य शब्दों में सारे कार्य क्रमबद्ध एवं नियोजित तरीके से किए जाते हैं। यह शैक्षिक प्रबन्ध की ही नहीं बल्कि सभी प्रबन्धों की महत्वपूर्ण विशेषता मानी जाती है।


(2) Educational management is a coordinating resource-

शैक्षिक प्रबन्ध, शिक्षा के विभिन्न साधनों में समन्वय करता है तथा एकीकरण के द्वारा वह शिक्षा की प्रक्रिया को सफल बनाता है। इसमें छात्र-छात्राएं, शिक्षकों आदि से संबंधित व्यवस्थाएं होती हैं।


(3) शैक्षिक प्रबन्ध एक समूहवाचक संज्ञा है - इसमें एक व्यक्ति या संस्था निहित नहीं होते हैं। शैक्षिक प्रबन्ध में समूह निहित होते हैं, जो अपनी-अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। प्रबन्ध एक जटिल अर्थ वाली प्रक्रिया है, इसका सम्बन्ध अधिकारियों से है। यह एक विज्ञान है और साथ ही एक प्रक्रिया भी है, प्रबन्ध में अधीनस्थों से काम कराया जाता है।


(4) प्रबन्ध एक सामाजिक क्रिया है-लारेन्स एप्पले के अनुसार-प्रबन्ध, व्यक्तियों का विकास है न कि वस्तुओं का निर्देशन, प्रबन्ध वास्तव में कर्मचारी प्रशासन हैं, विद्यालयों में इसीलिए अनेक व्यक्ति अनेक प्रकार के कार्य करते हैं जो विद्यालय में शैक्षिक वातावरण का सृजन करते हैं।


(5) शैक्षिक प्रबन्ध एक अदृश्य कौशल है यह कोई दिखाई देने वाला तत्व नहीं है। यह तो ऐसा कौशल है, जिसे उसके परिणाम से जाना जाता है। किसी विद्यालय में लोग अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए इसलिए लालायित रहते हैं कि वहाँ का परिणाम उत्तम रहता है। परिणाम का उत्तम रहना, उत्तम प्रबन्ध कौशल पर निर्भर करता है ।

(6)  मूलरूप से किया है-शैक्षिक प्रबन्ध मूलरूप से यह क्रिया है, जो कार्य को सम्पादन कराती है। इसका सम्बन्ध मानवीय सम्बन्ध, भौतिक संसाधन तथा पति से होता है।


(7) एक सार्वभौमिक क्रिया है- शैक्षिक प्रबन्ध किसी भी कार्य को दिशा देने में सदा सहयोगी रहा है और यह सार्वभौम है। नियोजन, संगठन, नियंत्रण तथा निर्देशन आदि सभी सार्वभौमिक प्रकृति के कार्य है। प्रबन्ध का कार्य प्रबन्धक को करना पड़ता है।


(ङ) प्रबन्ध एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है-शैक्षिक प्रबन्ध किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। बच्चों को शिक्षा देने के उद्देश्यों से स्थान, सामान, कर्मचारियों, उपकरणों की व्यवस्था की जाती है। इनका सबका (सबका उद्देश्य लक्ष्य प्राप्त करना है।


( 9 ) प्रबन्ध का दीचि काम कराना है- यह स्वयं कार्य न करके कार्य कराता है। प्रधानाचार्य स्वयं बहुत कम पढ़ाते हैं किन्तु प्रत्येक शिक्षक से कार्य लेते हैं, और गैर- शैक्षिक कर्मचारियों द्वारा शैक्षिक सुविधाएं जुटाने एवं वातावरण का निर्माण कराने में सहयोग लेते हैं।


(10) अनवरत् चलने वाली प्रक्रिया- इसकी एक अन्य विशेषता यह है कि यह अनवरत रूप से चलती रहती है। इसमें योजना, निर्णय करने, संगठन, निर्देशन, समन्वय आदि के बारे में निरन्तर कार्य किए जाते रहते हैं। उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त शैक्षिक प्रबन्ध की अन्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-


(12) इसका सम्बन्ध प्रबंधक या प्रशासक की नीतियों को क्रियान्वित करने से है। यह संगठन का पृथक अंग है। इसमें वे सभी व्यक्ति तथा कार्य आते हैं जो उद्देश्य प्राप्ति के लिए क्रियाशील होते हैं।


इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रबंध वह शक्ति है, जो संगठन में उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नेतृत्व प्रदान करती है तथा सभी का मार्गदर्शन करती है।

July 16, 2023

शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Educational Administration)

शैक्षिक (शिक्षा) प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Educational Administration


शैक्षिक प्रशासन के अन्तर्गत मानवीय और भौतिक दोनों तत्वों को सम्मिलित किया जाता है। मानवीय तत्वों में शिक्षक, शिक्षार्थी, अभिभावक, प्रशासन, निरीक्षक आदि की गतिविधियों को सम्मिलित किया जाता है तथा भौतिक तत्वों में विद्यालय भवन, वित्त, सामग्री, उपकरण, फर्नीचर, तथा अन्य साज-सज्जा का समावेश किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा सम्बन्धी सभी तथ्य, योजनाएँ, नियन्त्रण, प्रतिवेदन, निर्देशन, निरीक्षण, बजट आदि सभी शैक्षिक प्रशासन की सामग्री है। आज शैक्षिक प्रशासन का विस्तार दूर-दूर तक हो गया है। फलस्वरूप - शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत हो गया है।

प्रशासन को शिक्षा से सम्बन्धित करके आर्डवे  टीड ने इस प्रकार विभाजित किया है –

ये पाँच क्षेत्र निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किए जा सकते हैं-

(1) उत्पादन

 (2) सामुदायिक उपयोग में विश्वास

 (3) वित्त एवं लेखांकन

 (4) कार्मिक 

 (5) समन्वय । 

प्रशासन को शिक्षा से सम्बन्धित करके जे० बी० सीयर्स महोदय ने इस प्रकार विभाजित किया है—

(i) शैक्षिक लक्ष्यों की स्थापना।

 (ii) शिक्षा कार्मिकों का विकास करने हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।

(iii) अधिकार के प्रयोग की प्रक्रिया एवं प्रकृति की परिभाषा देना (शैक्षिक प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना)।

(iv) उद्देश्यों एवं प्रक्रियाओं की प्रकृति तय करना और

(v) संरचना तय करना अर्थात् शक्ति एवं सत्ता के प्रयोग हेतु प्रशासनिक तन्त्र का प्रयोग करना ।

इस प्रकार शैक्षिक प्रशासन में अनेक गतिविधियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। इसलिए शैक्षिक प्रशासन के विस्तार को देखते हुए इसे निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है—

 शैक्षिक प्रशासन के विस्तार को देखते हुए इसे निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है—


(1) कानून नियम व व्यवस्था (वैधानिक संरचना) — इसके अन्तर्गत शिक्षा के अभिकरण के अधिकार व कर्त्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों को निर्धारित किया जाता है और प्रबन्ध का विकेन्द्रीकरण किया जाता है। इस प्रकार  प्रशासन से सम्बन्धित नियम, कानून, शर्ते, व्यवस्थाएं आदि को शैक्षिक प्रशासन में सम्मिलित किया जाता है।


(2) बाल-केन्द्रित व्यवस्था (बालक) — आधुनिक शिक्षा में बालक पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसलिए आज की शिक्षा बाल-केन्द्रित शिक्षा कहलाती है। बाल केन्द्रित से अभिप्राय बालक के विकास के लिए की जाने वाली प्रक्रिया से है, अर्थात् बालक के व्यक्तिगत और सामूहिक विकास के उद्देश्य निर्धारित करना और बालक  की रुचि, क्षमता, समाज की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा की प्रक्रिया निर्धारित करना और प्रवेश उन्नति, अनुशासन आदि के नियम बनाना व लागू करना शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र है।


(3) कर्मचारी वर्ग (कार्मिक) – शैक्षिक व्यवस्था की सफलता अच्छे प्रशासन पर निर्भर करती है और अच्छे प्रशासन में कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। कर्मचारी ही मानवीय व भौतिक संसाधनों को ध्यान में रखते हैं और उद्देश्य प्राप्ति की ओर बढ़ते हैं। इसलिए योग्य कर्मचारी की नियुक्ति, सेवा शर्तों का निर्धारण, प्रशिक्षण की व्यवस्था, वेतन, कल्याणकारी योजनाएं, सेवामुक्ति सम्बन्धी लाभ उत्पादन को बढ़ाने हेतु अतिरिक्त बोनस देना आदि की व्यवस्था आवश्यक होती है, तभी शैक्षिक प्रशासन अच्छा शासन प्रदान कर सकता है। अतः सेवाकालीन प्रशिक्षण आदि प्रभावकारी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।


(4) वित्तीय नियोजन – इसके अन्तर्गत शिक्षा से सम्बन्धित नीतियाँ तथा विविध कार्यक्रम बनाए जाते हैं। इस हेतु संख्या सम्बन्धी आँकड़े एकत्र करना, भवन-निर्माण की योजना बनाना, आय-व्यय का लेखा-जोखा, अंकेक्षण प्रतिवेदन तैयार करना आदि कार्य आवश्यक है। शैक्षिक गतिविधि हेतु वित्त की व्यवस्था, स्टॉफ का व्यय, भवन-निर्माण, मेण्टीनेन्स, बीमा, बजट बनाना आदि की व्यवस्था अच्छी होनी आवश्यक है। व्यवस्था अच्छी है तो कार्यक्रम भी अच्छे होंगे। अतः शैक्षिक प्रशासन वित्तीय साधनों का पता लगाता है और शैक्षिक लक्ष्यों की शर्तें हेतु उनका दोहन करता है।


(5) भौतिक व शारीरिक सुविधाएँ— भौतिक सुविधाए— विद्यालय भवन, उपकरण, रख-रखाव और भौतिक सुविधाओं को व्यवस्था शैक्षिक प्रशासन के द्वारा की जाती है। इसके साथ ही बालक के सर्वांगीण विकास हेतु खेलकूद सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती है; जैसे—खेल का मैदान, खेल-सामग्री, निर्देशन, स्वास्थ्य की जाँच कराना प्रशासन का दायित्व है।


(6) पाठय़क्रम – शिक्षा  के लक्ष्यों को प्राप्त करने का माध्यम पाठ्यक्रम होता है और पाठ्यक्रम शैक्षिक प्रशासन से सीधा सम्बन्ध रखता है। शैक्षिक प्रशासन पाठ्यक्रम का निर्माण, आयोजन और परिवर्तन करता है। परिवर्तन के लिए वैज्ञानिक तकनीकी एवं सामाजिक परिवर्तनों को ध्यान में रखा जाता है और शैक्षिक कार्यक्रमों का मूल्यांकन करके इसमें सुधार की व्यवस्था भी शैक्षिक प्रशासन द्वारा की जाती है। शैक्षिक प्रशासन द्वारा ही विषय-वस्तु की तैयारी, पुस्तकों का वितरण तथा अन्य साहयक सामग्री पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके अतिरिक्त भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, निर्देशन, पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएं आदि का आयोजन भी शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र में ही निहित है।


(7) व्यापक जनसम्पर्क - शैक्षिक कार्यक्रमों के संचालन में अध्यापक, छात्र और अभिभावक मूल आधार है, इनके सहयोग के बिना कार्यक्रम संचालन सम्भव नहीं हो पाता है। इसलिए व्यवस्था को दृढ़ता प्रदान करने हेतु व्यापक जनसम्पर्क की आवश्यकता होती है। इसके लिए सूचना माध्यमों का सहारा लिया जाता है और विविध समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं, टी०वी० आदि के द्वारा जानकारी प्राप्त की जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि प्रशासन और समुदाय के मध्य दूरियाँ कम हो जाती हैं और और निकटता बढ़ती है। परिणामस्वरूप सामुदायिक संसाधनों का उपयोग विभिन्न महत्त्वपूर्ण सेवाओं में किया जा सकता है।


(8) समन्वय स्थापित करना – शैक्षिक प्रशासन उपलब्ध साधनों और कर्मचारियों के मध्य समन्वय स्थापित करता है। समन्वय से ही व्यवस्था को सुचारू रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है और सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया की सफलता समन्वय पर ही आधारित होती है, क्योंकि समन्वय से ही सम्बन्धित समस्याओं का ज्ञान और समाधान सम्भव होता है। इसके साथ ही शिक्षा का स्वरूप तैयार करना और समय-समय पर मूल्यांकर करना समन्वय द्वारा सुगमतापूर्वक किया जा सकता है, इससे व्यक्ति और समाज दोनों के लिए शैक्षिक प्रशासन लाभकारी सिद्ध हो सकता है।


(10) उद्देश्य एवं मूल्यों का निर्धारण करना – शैक्षिक प्रशासन व्यक्ति और समाज के हित को दृषि में रखकर उद्देश्यों, आदर्श मूल्यों और सिद्धान्तों का निर्धारण करता है। वह सभी शिक्षार्थियों के लिए शैक्षिक कार्यक्रम की योजना बनाता है और उन्हे क्रियान्वित भी करता है।

शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है I इसमें वित्तीय नियोजन, जनसम्पर्क, पाठ्यक्रम, भौतिक सुविधाओं आदि विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया जाता है। 


जाता है और निष्कर्ष निकाला जाता है। इस प्रकार उपलब्ध जानकारी का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है और समस्याओं के समाधान हेतु प्रशासनिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है। 


July 15, 2023

नियन्त्रण (Controlling): अर्थ एवं परिभाषा,कार्य,नियन्त्रण में सावधानियाँ

 नियन्त्रण: अर्थ एवं परिभाषा


नियन्त्रण: अर्थ एवं परिभाषा (Controlling : Meaning and Definition)


नियन्त्रण से अभिप्राय उस शक्ति से है जो प्रशासन सम्बन्धी कार्य-प्रणालियों, गतिविधियों, कार्य तथा योजनाओं को अपने वश में रखती है।

प्रशासन यह जानने का प्रयत्न करता है कि संगठन का कार्य योजना के अनुसार हो रहा है या नहीं और यदि नहीं हो रहा है तो क्यों नहीं हो रहा है, इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? नियन्त्रण शक्ति के बिना सबका हित सम्भव नहीं है और कार्य सफलता भी संदिग्ध रहती है। नियन्त्रण है द्वारा ही कीमतें कम रहती हैं, उत्पादन में वृद्धि होती है, कार्यकर्त्ताओं का विकास होता है और गुणात्मकता को बनाए रखने में सफलता मिलती है। शैक्षिक क्षेत्र में मानवीय और भौतिक दोनों प्रकार के साधनों के नियन्त्रण के अभाव में शिक्षा दिशाहीन हो सकती है, लक्ष्यहीन हो सकती है। इस प्रकार किसी संस्था की गतिविधियाँ, उन्नति हेतु कार्य और कार्यकर्त्ताओं की कार्यक्षमता का मापन नियन्त्रण की प्रक्रिया द्वारा ही सम्भव है। नियन्त्रण द्वारा किसी भी व्यक्ति के अनुचित व्यवहार को रोका जा सकता है। नियन्त्रण को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है-


मैरी कशिंग नील्स (Marry Cushing Niles) के अनुसार- "नियन्त्रण संगठन की निर्देशित क्रियान्वयन, निश्चित उद्देश्यों अथवा एक समूह के प्रति एक सन्तुलन बनाना है।" Council is to make balance toward directed activities of the organization toward a definite aim or a group of them."

कुण्टज और ओ'डोनेल ( Koontz and O'Donell ) के अनुसार- "नियन्त्रण का प्रबन्धकीय कार्य कार्यकर्त्ताओं के निष्पादन का मापन और उसमें सुधार करना है और यह सुनिश्चित करना है कि लक्ष्य और योजना इसकी प्राप्ति में पूर्ण है।" "The managerial function of control is the measurement and correction of the performance of subordinates in order to make sure that the objective and plan devised to attain them are accomplished."

जे०बी० सीयर्स का मत है— कोई भी जब तक सम्बन्धित व्यक्तियों, वस्तुओं अथवा लक्ष्यों पर भली प्रकार नियन्त्रण न कर ले तब तक यह किसी क्रिया के सम्बन्ध में निर्देशन नहीं दे सकता।"


नियन्त्रण सम्बन्धी कार्य (Functions Related to Controlling)


नियन्त्रण प्रशासन का प्रमुख कार्य है। नियन्त्रण के अभाव में कार्ययोजना के अनुरूप कार्य नहीं चल पाता है, अनुशासनहीनता बढ़ जाती है, गुणात्मकता में कमी आ जाती है और उत्पादन का स्तर गिर जाता है। इस प्रकार संगठन के विभिन्न भागों, कार्यों एवं कर्मचारियों को नियन्त्रित करना आवश्यक है। प्रशासन के नियन्त्रण सम्बन्धी कार्यों को हम निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं-


अनुशासनात्मक कार्य- प्रगति का आधार अनुशासन है। अनुशासन ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जिसमें रहकर कार्यकर्त्ता उत्साहित होता है और उद्देश्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। अतः अनुशासन बनाए रखने के लिए नियन्त्रण आवश्यक है। किसी भी संस्था में अनुशासन सथापना हेतु नियन्त्रण की आवश्यकता होती है। नियन्त्रण से ईमानदारी को बढ़ावा मिलता है, बेईमानी में कमी आती है और अनुचित व्यवहार को रोका जा सकता है। 


(2) समन्वय सम्बन्धी कार्य - समन्वय का आधार नियन्त्रण है। नियन्त्रण से संगठन के विभिन्न कार्यों में विभिन्न क्रियाओं में समन्वय स्थापित होता है। समन्वय से प्रेम, सहयोग, निष्ठा और आपसी ताल-मेल में वृद्ध वृद्धि होती है और आपस में बढ़ने वाले हर प्रकार के तनाव को कम करके उत्पादन को एक नई दिशा मिलती है।


(3) उत्तरदायित्व वितरण का सही ज्ञान - संगठन में कार्य और उत्तरदायित्व का वितरण सही है अथवा न ही इसका ज्ञान नियन्त्रण द्वारा सुगमता से हो जाता है। अधिकृतियों द्वारा निर्धारित उत्तरदायित्व का भली प्रकार वितरण और प्रशासन (Execution) का उचित ज्ञान नियन्त्रण प्रक्रिया द्वारा सम्भव है। इसके साथ से कार्यकर्त्ता आपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किस प्रकार करता है, कितना करता है, कितनी निष्ठा से करता है, यह सब जानकारी सफल नियन्त्रण से सम्भव है। इस ज्ञान से कार्यकर्त्ता की कमी ही दूर करने में सहायता मिलती है और उसमें समय रहते सुधार किया जा सकता है।


(4) सन्तुलन सम्बन्धी कार्य- नियन्त्रण का कार्य सन्तुलन स्थापित करना है। यह सन्तुलन विभिन्न क्रिया-कलाप और उद्देश्यों के प्रति निश्चित करना होता है। मानवीय साधनों में संतुलन की स्थापना नियन्त्रण द्वारा सम्भव है और वह सन्तुलन उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रेरणास्रोत बनता है। अतः प्रत्येक कार्य को चैक (Check) करके जोखिम से सुरक्षा प्रदान करना नियन्त्रण का कार्य है।


(5) भावी योजना निर्माण सम्बन्धी कार्य - नियन्त्रण भविष्य के लिए बनने वाली योजनाओं के लिए आधार प्रदान करता है। संगठन की सूचनाएँ और तथ्यों के संग्रह में नियन्त्रण द्वारा सहायता मिलती है। इन सूचनाओं के आधार पर नई योजना का निर्माण, भविष्य के लिए लाभप्रद हो सकता है। अतः भावी योजना निर्माण में नियन्त्रण महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।


(6) निष्पादन मापन एवं उसमें सुधार सम्बन्धी कार्य - नियन्त्रण का महत्त्वपूर्ण कार्य कार्यकर्ताओं क निष्पादन (Achievement) का मापन करना है और उसमें आवश्यकता के अनुरूप सुधार भी करना है। नियन्त्रण के अभाव में कार्यकर्त्ता निष्ठापूर्वक कार्य सम्पादन नहीं करता है। फलस्वरूप उद्देश्य की प्राप्ति में कठिनाई आती है। अतः उद्देश्य प्राप्ति हेतु नियन्त्रण द्वारा उपलब्धि का माप किया जाता है और कमी होने पर उसे इस योग्य बनाया जाता है कि यह निष्ठापूर्वक कार्य कर सके।


(7) अपादन में वृद्धि सम्बन्धी कार्य - नियन्त्रण उत्पादन में वृद्धि में सहायता करता है। नियन्त्र को पक्रिया द्वारा कोई भी व्यक्ति गलत कार्य नहीं कर पाता है और किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं पनप पा है। फलस्वरूप कम कीमत पर अधिक उत्पादन सम्भव हो पाता है। नियन्त्रण कार्यकर्त्ताओं की कार्यक्षमता है और कीमतों को काबू में रखता है। अतः उत्पादन वृद्धि के साथ वस्तु की गुणात्मकता भी बनी रहती है।


इस प्रकार नियन्त्रण विविध कार्यों के माध्यम से संगठन को मजबूत बनाता है और संगठन में आने वाली कठिनाई को दूर करता है। नियन्त्रण से कार्यकर्ताओं का विकास होता है और यह पता चलता है कि निर्धारित उद्देश्यों और निर्धारित योजनानुसार कार्य सम्पन्न हो रहा है या नहीं। अतः नियन्त्रण प्रशासन का एक ऐसा शस्त्र है तो संगठन को व्यवस्थित रखता है, कार्यकर्त्ताओं पर नियन्त्रण रखता है और उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि करता है जिससे उत्पादन वृद्धि की ओर अग्रसर होता है।

नियन्त्रण में सावधानियाँ (Carefulness in Controlling)


नियन्त्रण प्रशासन का महत्त्वपूर्ण कार्य है, अतः नियन्त्रण करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना चाहिए-

 (i) शैक्षिक प्रशासन में प्रत्यक्ष नियन्त्रण हेतु कार्य-विधियों, कार्यकर्त्ताओं और वातावरण आदि पर निरन्तर निरीक्षण और पर्यवेक्षण करते रहना चाहिए।

(ii) मूल्यांकन विधियों में सुधार करके प्रशासन में अप्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रण रखना चाहिए। 

(iii) प्रशासन में नियन्त्रण रखने के लिए पुरस्कार और दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए।

 (iv) शैक्षिक विकास को दृष्टिगत रखते हुए नियन्त्रण सम्बन्धी नियम, नीतियाँ, विधियाँ, रीतियाँ निर्धारित की जानी चाहिए।

(v) नियन्त्रण के लक्ष्य पूर्वनिर्धारित होने चाहिए और उनमें आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तन किए  जाने चाहिए।

(vi) योजना की क्रियान्विति के प्रारम्भ और अन्त में नियन्त्रण शक्ति का कठोरता से पालन होना चाहिए। 

(vii) योजना के पूर्ण होने तक किसी भी प्रकार का ढीलापन नहीं आना चाहिए।


इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रशासन के मूलभूत कार्य-नियोजन, संगठन, संचालन और नियन्त्रण हैं, इनमें योजना की सफलता उपलब्ध साधन स्रोतों का अधिकतम उपयोग है। संगठन विविध कार्यों द्वारा संसाधनों का उपयोग करता है, उनका समन्वय करता है और तकनीकी विकास का अधिकतम अधिकतम लाभ प्राप्त करता है, इससे नियन्त्रण में सुविधा रहती है। संचालन सम्पूर्ण तन्त्र को शक्ति देता है, गति देता है, अनुशासन देता है और उत्पादन देता है तथा बिना पूर्वग्रह के निष्ठापूर्वक कार्य किया जाता है। नियन्त्रण संगठन को मजबूत बनाता है, आने वाले बाधाओं को दूर करता है और निर्धारित समय पर कार्य सफलता की सूचना देता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रशासन अपने मूलभूत कार्यों के माध्यम से उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ वस्तु गुणात्मकता को भी बनाए रखता है।


संचालन (निर्देशन): अर्थ एवं परिभाषा (Direction : Meaning and Definition), कार्य (Functions), सावधानियाँ (Cautions)

संचालन ( निर्देशन) Direction 


 संचालन (निर्देशन): अर्थ एवं परिभाषा
(Direction : Meaning and Definition)


 संचालन (निर्देशन) का अर्थ है शक्ति का विभिन्न कार्यों में प्रयोग करना मुख्यतः दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराना संचालन है। यह संचालन वांछित दिशा में होना चाहिए। संगठन की सफलता संचालन पर निर्भर करतीै । यह कार्य करने की सूचना देता है, कार्य को किस प्रकार करना है, कब करना है, कब समाप्त करना है , यह सब संचालन पर निर्भर करता है। अतः संचालन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा योजना और व्यव संचालित होती है। साधन जुटाने के बाद विभिन्न कार्यों के सम्पादन में निर्देशन देना और उपलब्ध साधनों के कार्यान्वित करना निर्देशन का कार्य है। निर्देशन (संचालन) में प्रमुखतः तीन बातों को महत्त्व दिया जाता है प्रथम- निर्णय लेना, द्वितीय निर्णय की घोषण करना और तृतीय निर्णयों को व्यवहार में लाना। यह कार्य कराने की प्रणाली का ज्ञान श्रेष्ठ प्रशासक कराते हैं। निर्णय की सफलता ज्ञानी, योग्य, दूरदर्शी जी अनुभवी प्रशासक पर निर्भर करती है। क्योंकि विभिन्न प्रवृत्तियों और प्रकृति वाले व्यक्तियों की ठीक प्रका समझकर कार्यों का उचित विभाजन करना प्रशासक का कार्य है। अतः निर्देशन वातावरण पर कर्मचारी वर्ग पर साज-सज्जा, सम्मान, धन आदि पर निर्भर करता है और प्रशासक की इच्छा द्वारा नियन्त्रित होता एवं निर्देशित किया होता है।


मार्शल ई० डिमांक (Manshell E. Demock) के शब्दों में,

"निर्देशित प्रशासन कार्य का अंत है, जिसमें निश्चित आदेश एवं निर्देश शामिल हैं।"

"The heart of administration is the directing function which involves determining the course of giving orders and instructions providing the dynamic leadership"


कुण्ट्ज और ओडोनेल (Koontz and O'Donell) के निर्देशन को मिश्रित कार्य मानते हुए कहा "संचालन एक मिश्रित कार्य है, इसमें वे सब कार्य सम्मिलित हैं जो कार्यकर्ताओं को प्रभावपूर्ण और कुशलतापूर्वक कार्य करने हेतु उत्साहित करते हैं।"

"Direction is a complex function that includes all those action which are designed to encourage subordinates to work effectively and efficiently"


संचालन (निर्देशन) सम्बन्धी कार्य (Functions Related to Direction)


संचालन प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह निरीक्षण, पर्यवेक्षण और मूल्यांकन में सहायक है। यह एक सतत् प्रक्रिया है, इसका मुख्य उद्देश्य कार्यकर्ता को कार्य हेतु और प्रशासक को उत्तरदायित्व हेतु तैयार करना है। संचालन के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं – 

(1) अधीनस्थ कर्मचारियों से सम्बन्धित कार्य -

 प्रशासन अधीनस्थ कर्मचारियों को आदेश देता है, निर्देश देता है और उनके कार्यों का निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करता है। निरीक्षण और पर्यवेक्षण के द्वारा उनके अनुचित कार्यों पर नियन्त्रण रखता है। आदेश-निर्देश का अनुपालन करते हुए कर्मचारीगण निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं और वांछित विकास की गति प्रदान करते हैं।


(2) कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा उठाना –

 कुशल निर्देशन (संचालन) द्वारा प्रशासन कार्यकर्ताओं के मनोबल को ऊँचा रखता है, उन्हें प्रेरित करता है और यह भावना भरता है कि कम-से-कम व्यय में अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त किया जा सकता है। ऊँचा मनोबल ही उत्पादन वृद्धि में सहायक होता है और विकास की गति को तीव्र करता है।


(3) कार्यों के मध्य सामंजस्य (समन्वय) स्थापित करना - प्रशासन को मानवीय और भौतिक साधनों में समन्वय स्थापित करना होता है। समन्वय स्थापना से कार्य निर्वाध रूप से आगे बढ़ता रहता है और निरन्तर विकास की ओर गतिशील रहता है। विभिन्न कार्यों के मध्य समन्वय ही वह आधार है जो वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करता है।


(4) प्रशिक्षण से सम्बन्धित कार्य –

 समय-समय पर कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी होती है। इसके परिणामस्वरूप कार्यकर्त्ता की कुशलता में वृद्धि होती है। इस कुशलता का प्रभाव उत्पादन को प्रभावित करता है। अतः उचित निर्देशन द्वारा कार्यकर्ता उचित कार्य करने में सक्षम हो जाता है।

(5) नीतियों को प्रभावपूर्ण बनाना-

निर्देशन प्रशासनिक नीतियों को प्रभावी बनाता है। प्रभावी नीतियाँ कार्यकर्ता को आगे बढ़ने, निष्ठापूर्वक कार्य करने की प्रेरणा देती है। निर्देशन के द्वारा यह पता चलता है कि कौन-सा कार्य कब करना है, कैसे करना है और कब समाप्त करना है। अतः निर्देशन नीतियों को प्रभावपूर्ण बनाकर कम लागत में अधिक उत्पादन को सम्भव बनाता है।

(6) नेतृत्व प्रदान करना एवं प्रोत्साहित करना-

निर्देशन का कार्य नेतृत्व प्रदान करना है और साथ ही कार्यकर्त्ता को प्रोत्साहित भी करना है। कुशल निर्देशन ही कुशल नेतृत्व प्रदान करता है और कुशल नेतृत्व उत्पादन वृद्धि में सहायक होता है। इस प्रकार कुशल निर्देशन से सहायकों पर नियन्त्रण रहता है और कार्यकर्ता वांछित देशों में विकास की ओर अग्रसर होता है।

(7) नियन्त्रण को प्रभावी बनाना – 

प्रशासन का प्रमुख कार्य निर्देशन है। निर्देशन के द्वारा संगठन पर नियन्त्रण से उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा अलाभकारी कार्यों में कमी आती है। अतः नियन्त्रण के प्रभाव में अनुशासनशीलता बढ़ती है।


अतः स्पष्ट है कि संचालन (निर्देशन) सम्पूर्ण तन्त्र को शक्ति देता है, गति देता है, अनुशासन देता है और उत्पादन देता है। व्यक्ति निष्ठापूर्वक कार्य करते हैं और बिना किसी पूर्वाग्रह के कार्यरत रहते हैं।


निर्देशन (संचालन) में सावधानियाँ

(Carefulness in Direction)


संचालन प्रक्रिया के अन्तर्गत हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-


(1) निर्देशन हेतु अनुभवी और लोकप्रिय प्रशासन नियुक्त करना चाहिए।


(2) मानवीय सम्बन्धों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।


(3) प्रजातान्त्रिक सम्बन्धों और सिद्धान्तों के आधार पर प्रशासन का संचालन करना चाहिए।


(4) पारस्परिक निर्णयों, विचारों, भावनाओं का सद्भावना के साथ सम्मान करना चाहिए।


(5) निर्देशन में गतिशीलता बनी रहनी चाहिए, उसमें किसी प्रकार की शिथिलता नहीं आनी चाहिए। जे० बी० सीयर्स का मत है "संचालन वह भाग है जो निर्णय को प्रभावित करता है, कार्य करने की सूचना देता है और यह संकेत देता है कि कार्य किस प्रकार करना है तथा कब प्रारम्भ या  समाप्त करना है।"


(6) संचालन की सफलता पास्परिक सम्बन्ध स्थापित करने में है।

(7) अच्छे और कुशल नेतृत्व के लिए अपने साथियों से परामर्श लेकर अपने विषय का निर्णय लेना चाहिए।



संगठन ( Organization): अर्थ एवं परिभाषा, कार्य (FUNCTIONS), सावधानियाँ (Cautions)

 संगठन ( Organization)

संगठन : अर्थ एवं परिभाषा
(Organization : Meaning and Definition)


संगठन से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जो प्रशासन द्वारा भौतिक और मानवीय साधनों को जुटाने के लिए की जाती है। संगठन प्रशासन का द्वितीय आधारभूत कार्य है। यह कार्य दो रूपों में किया जाता है, प्रथम ‐ मानवीय संगठन द्वितीय भौतिक संगठन। प्रथम मानवीय संगठन में शिक्षक, कर्मचारीगण, समितियाँ, छात्रगण तथा अन्य सम्बन्धित मानवीय तत्त्व सम्मिलित रहते हैं और द्वितीय भौतिक संगठन में भवन, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं खेल का मैदान तथा अन्य शैक्षिक सहायक सामग्री सम्मिलित हैं। संगठन इस प्रकार दोनों तत्त्वों में समन्वय स्थापित करता है और इन्हें इस प्रकार व्यवस्थित करता है कि उद्देश्य प्राप्ति में कोई असुविधा न हो। यह व्यवस्था औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूप में संभव है। औपचारिक व्यवस्था में कार्यकर्ताओं का एक पदानुक्रम होता है, इनमें कार्य वरिष्ठ अथवा अधीनस्थ के रूप में बॅटे होते है तथा इनमें संगठनात्मक सम्बन्ध आदेशों और सूचनाओं के आदान-प्रदान से होता है, जबकि अनौपचारिक व्यवस्था में सम्बन्ध व्यक्तिगत अभिवृत्ति, रुचि, विश्वास, मान्यता, विचार और कार्य के आधार बनते हैं। संगठन के दोनों रूपों में समन्वय के अभाव में लक्ष्य प्राप्ति असम्भव है। इसलिए संगठन एक यन्त्र के रूप में कार्य करता है। संगठन को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है—


1- मैफारलेण्ड के अनुसार, "मनुष्यों का एक पहचान समूह जो अपने प्रयत्नों को उद्देश्य प्राप्ति में लगता है संगठन कहलाता है।

 "An identifiable group of people contributing their effets towards the attainment of goals is called organization" - Mefarland

2- प्रो० एल०एच० हैनी के शब्दों में, "संगठन एक विशिष्ट भाग का सुसंगत समायोजन है जो कुछ सामान्य उद्देश्यों को सम्पादित करता है।"

"Organization is a harmonious adjustment of specialised part for the accomplishment of some common purpose or purposes"  -L. H. HANEY

3- डॉ० एस०एन० मुखर्जी (Dr. S. N. Mukherji) के अनुसार, संगठन कार्य करने की मशीन है।इसका मुख्य उद्देश्य व्यवस्था करने से सम्बन्धित है ताकि समग्र कार्यक्रम का संचालन किया जा सके।"

4- जॉन डब्ल्यू० वाल्टन (John. W. Waslten) के अनुसार, "संगठन कार्यरत व्यक्तियों का एक समूह है जो समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साथ-साथ मिलकर कार्य करते हैं।" 

 अतः स्पष्ट है कि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपलब्ध समस्त भौतिक एवं मानवीय तत्त्वों की समुचित व्यवस्था करना ही संगठन है और इसका सम्बन्ध संरचना और मानव सम्बन्ध दोनों से है और इसे संचालित करके लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है।


संगठन सम्बन्धी कार्य (FUNCTIONS RELATED TO ORGANIZATION)


प्रशासन का द्वितीय आधारभूत कार्य संगठन है। संगठन एक व्यवस्था है जिससे मानवीय और द्वितीय भौतिक संगठनभौतिक साधनों में समन्वय स्थापित किया जाता है। इस दृष्टि से प्रशासन के संगठन सम्बन्धी विविध कार्यों को हम निम्नलिखित रूप से समझ सकते हैं-


(1) कार्य को सरल और लाभप्रद बनाना- कुशल संगठन प्रशासनिक कार्यों को सरल बना देताहै। इसके फलस्वरूप प्रशासन और प्रबन्ध की क्षमता में वृद्धि होती है। इस प्रकार अच्छा संगठन कार्यकर्ताओं की योग्यता एवं अनुभव का लाभ उठाता है जबकि अयोग्य उद्देश्यपूर्ति में सहायक नहीं हो पाता है और उद्देश्यहीन कार्यों में समय की बर्बादी करता है।


(2) मूल्यवान, चरित्रवान कार्यकर्त्ता तैयार करना -  कुशल संगठन ईमानदार, परिश्रमी, समर्पित, उच्च मूल्य और नैतिक चरित्र से युक्त कार्यकर्ताओं का निर्माण करता है। संगठन की आवश्यकता के अनुसार व्यक्तियों को तैयार करता है। उनका नैतिक विकास करके भ्रष्टाचार को रोकता है। इस प्रकार अच्छा संगठन कार्यकर्ता को मूल्यों से युक्त करता है और उसमें विविध चारित्रिक मूल्यों का विकास करके संगठन को प्रभावशाली बनाता है।


(3) सृजनात्मकता का विकास करना- कुशल संगठन कार्य की महत्ता को स्वीकार करता है, उसे सद्ध करता है और संगठन की प्राथमिकता के आधार पर कार्य का विवरण और व्यवस्था करता है। इस प्रकार कार्य विभाजन से कार्यकर्त्ता में सृजनात्मकता का विकास होता है और यह कम समय और कम व्यय में अधिक और अच्छा उत्पादन सम्भव बनाता है।


(4) स्वाभाविक विकास को बढ़ावा देना- कुशल संगठन इस प्रकार का ढाँचा (Structure) तैयार करता है जिसमें विकास क्रम स्वाभाविक रूप से चलता रहता है। इसे स्वविकास तो होता ही है साथ ही क्रियाकलापों का विस्तार भी होता है। इस प्रकार इन विकसित क्रियाकलापों के द्वारा प्रगति  शीघ्रतापूर्वक होती है। 


(5) विभिन्न कार्यों एवं साधनों में समन्वय स्थापित करना - संगठन विशिष्टीकरण वर्गीकरण के कार्यों में समन्वय स्थापित करता है और मानवीय एवं भौतिक साधनों को इस प्रकार समन्वित करता है। ताकि कम-से-कम व्यय कर अधिक-से-अधिक सके इससे विकास की दर में तेजी आती है और प्रशासनिक विकास में सहायता मिलती है।


(6) संसाधनों का समुचित एवं तकनीकी का अधिकतम उपयोग करना - कुशल संगठन संसाधनों को इस प्रकार व्यवस्थित करता है, जिससे इन साधनों का समुचित उपयोग हो सके और साथ ही तकनीकी का अधिकतम उपयोग करके उत्पादन में वृद्धि की जा सके। इस प्रकार यह कम-से-कम प्रयत्न से अधिक उत्पाद सम्भव बनाता है।


(7) विकास की गति को तीव्रता प्रदान करना - कुशल संगठन कार्यकर्त्ताओं के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। प्रशिक्षित व्यक्तियों को प्रशासन में विभिन्न पदों पर नियुक्ति प्रदान करता है और उनकी कुशलता तथा योग्यता का अधिकतम लाभ प्राप्त कर संगठन के विकास को तीव्रगति प्रदान करता है।


संगठन की सावधानियाँ
(Carefulness in Organization)

संगठन का निर्धारण करते समय हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(i) निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न तत्त्वों को संगठित किया जाना चाहिए।

 (ii) मानवीय और भौतिक तत्वों के अतिरिक्त अन्य विचार, धारणाएँ, नियम, सिद्धान्त, आदर्श आदि का भी कार्य निर्धारण के समय ध्यान रखना चाहिए।

(iii) संगठन के नियम और निर्णय आदि सभी व्यक्तियों के लिये लाभकारी होने चाहिए।

(iv) संगठन का स्वरूप छोटा या बड़ा हो सकता है। यह शिक्षा योजना के अनुसार अल्पकालिक और पूर्णकालिक हो सकता है। किसी भी रूप में संगठन प्रशासनिक कार्य में असुविधा उत्पन्न करनेवाला नहीं होना चाहिए। 

(v) संगठन का आधार प्रजातान्त्रिक होना चाहिए, तभी शिक्षा कार्य सफल हो सकेगा।

(vi) संगठन को पक्षपात, राजनीति, जातिवाद तथा अन्य विरोधी एवं दूषित तत्वों से दूर रखना चाहिए 

(vii) संगठन का स्वरूप योजना के अनुरूप निर्धारित करना चाहिए और सम्प्रेषण की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।



नियोजन (Planning): अर्थ एवं परिभाषा, कार्य (Functions), सावधानियां (Cautions)

 नियोजन (Planning)

नियोजन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Planning)


नियोजन से अभिप्राय एक ऐसी सुनिश्चित योजना रूपरेखा बनाने से है, जिसके द्वारा उददेशयो की  प्राप्ति की जा सके, कार्यप्रणाली को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ाया जा सके, सहयोगी व्यक्तियों एवं परिस्थितियों का लाभ उठाया जा सके तथा सहायक सामग्री और उपलब्ध वस्तुओं का समुचित उपयोग किया जा सके। इस प्रकार योजना का अर्थ विभिन्न विकल्पों में से सबसे अच्छे को चुनना है। ये विकल्प उद्देश्य, प्रक्रिया, नीतियाँ  और कार्यक्रम आदि हो सकते हैं। यह प्रगतिशील प्रक्रिया है जो वर्तमान के साथ भविष्य को भी देखती है। भविष्य के वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास नई खोजें एवं सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तन को दृष्टिगत रखते हुए योजना का निर्माण लचीला होना चाहिए। नियोजन को विभिन्न विद्वानों ने परिभाषित किया है।

1- कुण्ट्ज और ओ'डोनेल – "नियोजन एक मानसिक क्रिया है। यह एक विशेष तरीके से कार्य करने का सचेतन निश्चयात्मक प्रयास है।" 

"Planning is a mental activity, it is a concious determination of doing work in particular way. - Koontz and O'Donnel 

2- जेम्स एल० लुण्डी – "नियोजन का अर्थ है कि क्या करना है, कहाँ करना है, कैसेकरना है, कौन करेगा और इसके परिणाम का मूल्यांकन कैसे होगा?"

"The meaning of planning is to determine what is to be done, where is to be done, how is to be done, who is to do it and how the results are to be evaluated" - James L Lundi

 3- जे० बी० सीयर्स –  "नियोजन में प्रशासन का सीधा- सादा अर्थ हैं किसी काम को करने के लिए या किसी समस्या को हल करने के लिए निर्णय लेने हेतु तैयार हो जाओ।"

अतः किसी भी कार्य को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिये सुनिश्चित योजना बनाना आवश्यक है। 


जॉन मिलर (John D. Miller) के शब्दों में, "नियोजन यानि किसी काम को करने के लिए बुद्धिपूर्वक तैयारी अर्थात् कार्य को कब और कैसे सम्पादित किया जाए।


नियोजन सम्बन्धी कार्य
(Functions Related to Planning)


नियोजन प्रशासन का प्रथम आधारभूत कार्य है। नियोजन के अभाव में उद्देश्य प्राप्ति कठिन कार्य है और उपलब्ध साधानों का अधिकतम उपयोग भी योजना निर्माण करके ही प्राप्त किया जा सकता है। अतः प्रशासन योजना निर्माण और उसकी क्रियान्वित के माध्यम से निम्नलिखित कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर सकता है---


(1) समन्वय स्थापित करना— योजना निर्माण करके प्रशासन विभिन्न कार्यों में समन्वय स्थापित सकता है और उन पर नियन्त्रण सुगमतापूर्वक कर सकता है। इससे प्रबन्धकीय कार्य क्षमता में वृद्धि होगी।


 (2) उद्देश्य प्राप्त करना— शैक्षिक नियोजन का निर्माण करके प्रशासन निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकता है और उपलब्ध साधन व सामग्री का अधिकतम उपयोग कर सकता है। इससे प्रत्येक कार्यकर्ता को उसकी योग्यता व क्षमता के अनुरूप कार्य मिलने से प्रशासन आसानी से कार्य कर सकेगा।


(3) आवश्यकता की पूर्ति करना — योजना छोटी हो या बड़ी इसके निर्माण से आवश्यकता और लक्ष्य दोनों की पूर्ति होती है। अतः प्रशासन को इसके निर्माण में वर्तमान, भूत और भविष्य का ध्यान रखना चाहिए ताकि छोटी योजना को भी आवश्यकतानुसार बड़ा बनाया जा सके।


(4) विभिन्न अनुभवों का ज्ञान – योजना निर्माण से प्रशासन को विभिन्न परिस्थितियों, कार्यो कार्य-विधियों, कार्यकर्ता और उसकी योग्यता एवं अनुभवों का पता चलता है। इसका उपयोग वह कुशलता पूर्व करके लाभान्वित हो सकता है। इससे प्रभावी नियन्त्रण की स्थापना सम्भव होगी।


(5) जोखिम कम करना – योजना निर्माण से प्रशासन उस अनिश्चितता और जोखिम को ककम रता है, जो उसके निर्माण के बिना होती है। बिना योजना के कार्य अस्पष्टता बनी रहती है।


(6) प्रशासन को प्रेरित करना – योजना निर्माण प्रशासन के उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रेरित कर है। यह भविष्य की सम्भावनाओं को बल प्रदान करता है और अधिकरियों को अपने कर्तव्य व उत्तरदायित्व का ज्ञान भी कराता है।


(7) अतार्किक निर्णय पर रोक – योजना निर्माण में उन निर्णयों पर रोक लगती है जो अतार्किक,  अलाभप्रद और अत्यधिक खर्चीले हैं। अत यह कार्य को निश्चितता प्रदान करती है, उचित दिशा प्रदान करती है और उद्देश्यों का सही ज्ञान देकर समन्वय और समानता की ओर अग्रसर करती है।


नियोजन में सावधानियां (Carefulness in Planning)


नियोजन करते समय प्रशासन को कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। 

 (i) योजना का निर्माण प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों पर होना चाहिए। सभी को अपने विचार रखने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए और सभी को समान रूप से भाग लेने की छूट होनी चाहिए। 

(ii) शिक्षा के लक्ष्य प्रत्येक स्तर पर स्थिर और निश्चित होने चाहिए योजना का उद्देश्य कम-से-कम समय और कम-से-कम व्यय में उत्तम कार्य होना चाहिए।

(iii) योजना का निर्माण शैक्षिक उन्नति के लिए होना चाहिए और इनमें वस्तुनिष्ठता तथा निष्पक्षता होनी चाहिए। 

(iv) कार्यकर्ताओं को प्रत्येक स्तर पर उनकी क्षमता एवं योग्यता के अनुसार कार्य का विभाजन होना चाहिए और इन योजनाओं का सम्बन्ध वर्तमान तथा भविष्य की योजनाओं से होना चाहिए।

(v) योजना की क्रियान्वित सफलतापूर्वक होनी चाहिए और इसके लिए सम्बन्धित कार्य-प्रणाली, विधि-विधान, सभी साधन स्रोतों का निर्धारण एवं योगदान होना चाहिए।

 (vi) योजना निर्माण के समय ध्यान रखना चाहिए कि सभी व्यक्तियों का सहयोग सक्रिय रूप से मिले।

 (vii) योजना में स्वाभाविक रूप से लचीलापन होना चाहिए ताकि समय और आवश्यकतानुसार उसने परिवर्तन और परिवर्द्धन किया जा सके।


अतः स्पष्ट है कि प्रशासन के आधारभूत कार्यों में प्रथम नियोजन अर्थात् योजना निर्माण एवं उसका क्रियान्वयन महत्त्वपूर्ण कार्य है। योजना की सफलता उपलब्ध साधन स्रोतों का अधिकतम उपयोग है। इस सन्दर्भ में इलियट एवं मॉसियर का मत है, "योजना निर्माण के समय शैक्षिक आवश्यकताओं और उपलब्ध सपनों के सन्दर्भ में उद्देश्यों का निर्धारण होना चाहिए और समुदाय विशेष की अपेक्षाओं तथा शिक्षों के आवश्यकता को ध्यान में रखकर विशिष्ट कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन करने हेतु कार्य इकाइयों का निर्माण किया जाना चाहिए।"



प्रशासन एवं शैक्षिक प्रशासन

प्रशासन एवं शैक्षिक प्रशासन 

Administration and Educational Administration 


अवधारणा (concept)


"शैक्षिक प्रबन्ध एक ऐसी सेवा करने वाली गतिविधि है, जिसके माध्यम से शैक्षिक प्रक्रिया के लक्ष्य प्रभावकारी ढंग से प्राप्त किए जा सकते हैं।"(Educational Management is a Service activity through with the objective of educational process effectively realised.)


प्रशासन से अभिप्राय (Meaning of Administration)


'प्रशासन' मूल रूप में संस्कृत का शब्द है। यह 'प्र'  उपसर्ग शास् धातु से आप बना है। इसका अर्थ है प्रकृष्ट या उत्कृष्ट रीति से शासन करना। आजकल शासन का अभिप्राय 'सरकार' से समझा जाता है, किन्तु इसका वास्तविक पुराना अर्थ निर्दश  देना, पथ-प्रदर्शन करना, आदेश या आज्ञा देना है। वैदिक युग में प्रशासन का प्रयोग इसी अर्थ में होता था। उस समय सोमादि यज्ञों में मुख्य पुरोहित अन्य सहायक पुरोहितों को यक्ष को सामग्री तथा अन्य कार्यों के बारे में आवश्यक निर्देश एवं आदेश देने का कार्य किया करते थे, उसे प्रशास्ता कहा जाता था। बाद में यह शासन कार्य में निर्देश देने वाले संचालक और राजा के लिए प्रयुक्त होने लगा।


'प्रशासन' की भाँति इसके लिए अंग्रेजी में 'एडमिनिस्ट्रेशन' (Administration) शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह मूलतः 'एड' (Ad) उपसर्गपूर्वक सेवा करने का अर्थ देने वाली लेटिन की धातु 'Ministrere' से बना है। इसका मूल अभिप्राय एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के हित की दृष्टि से उसको सेवा का कोई कार्य करना है, जैसे पादरी द्वारा किसी व्यक्ति को धार्मिक लाभ पहुंचाने के लिए धार्मिक संस्कार करना, न्यायाधीश द्वारा न्याय करना, डॉक्टर द्वारा बीमार को दवाई देना।  शब्दकोष के अनुसार 'प्रशासन' शब्द का अर्थ है 'कार्यों का प्रबन्ध करना अथवा लोगों की देखभाल करना।' एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में प्रशासन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गयी है कि "यह कार्यों के प्रबन्ध अथवा उनको पूर्ण करने की एक क्रिया है।"

प्रशासन' का अर्थ प्रकृष्ट रीति से शासित अथवा अनुशासित करता है। इसका यह अभिप्राय है कि इस क्रिया में अनेक व्यक्तियों को विशिष्ट अनुशासन में रखते हुए उनसे एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य कराया जाता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रशासन एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सहयोगी ढंग से किया जाने वाला कार्य है। प्रशासन के लिए अनेक व्यक्तियों का सहयोग, संगठन और सामाजिक हित का उद्देश्य अवश्य होना चाहिए।


साइमन के अनुसार, "अपने व्यापक रूप से प्रशासन की व्याख्या उन समस्त सामूहिक क्रियाओं से की जा सकती है जो सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहयोगात्मक रूप में प्रस्तुत की जाती है।"


मार्क्स के अनुसार, “प्रशासन चैतन्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निश्चयात्मक क्रिया है। यह उन वस्तुओं के एक संगठित प्रयत्न तथा साधनों का निश्चित प्रयोग है जिसको कि हम कार्यान्वित करवाना चाहते हैं।"

ब्रिटेनिका ऐनसाइक्लोपीडिया (Britainica Encyclopedia) के अनुसार- "Administration = Ad+ Minister अर्थात् कार्यों का निष्पादन एवं प्रबंधन करना।"


सी०वी० गुड (C.V. Good) के शब्दों में- “प्रशासन का तात्पर्य उन सभी तकनीकों एवं प्रक्रियाओंसे है जो निर्धारित नीतियों के अनुरूप किसी वैज्ञानिक संगठन के संचालन में प्रयुक्त की जाती हैं।"


रायबर्न (Rayburn) के अनुसार — “प्रशासन केवल व्यवस्थाओं, समय-तालिकाओं, कार्य-योजना, भवन का प्रकार, अभिलेखों आदि से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि यह हमारे कार्य करने के दृष्टिकोण और बच्चों (जिनके साथ हम कार्य करते हैं) से सम्बन्धित है "


निगरों के अनुसार- "प्रशासन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य तथा सामग्री दोनों का संगठन है।"


व्हाइट के अनुसार, "प्रशासन किसी विशिष्ट उद्देश्य अथवा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत से व्यक्तियों के सम्बन्ध में निर्देश, नियन्त्रण तथा समन्वयीकरण की कला है। "

 लुथर गुलिक के अनुसार, "प्रशासन का सम्बन्ध कार्यों को सम्पन्न कराने से है जिससे कि निर्धारित लक्ष्य पूरा हो सके।"


शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Education Administration)


शैक्षिक प्रशासन का अर्थ- शैक्षिक (विद्यालय) प्रशासन एक मानवीय प्रक्रिया है। शिक्षा का समुचित प्रबन्ध करना ही विद्यालय प्रशासन या शैक्षिक प्रशासन कहलाता है।


शिक्षा प्रशासन का अभिप्राय शिक्षा के प्रशासन से ही है। आधुनिक युग में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक हो गया है। शिक्षा पर सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास का उत्तरदायित्व है। शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है और इसका सम्बन्ध मानव विकास के लिए किये जाने वाले मानवीय प्रयासों से होता है। अतः शिक्षा का प्रसार तथा उससे मिलने वाला लाभ शिक्षा प्रशासन के अभिकरणों को कुशलता तथा गतिशीलता पर निर्भर करता है। विश्व में प्रजातांत्रिक तथा एकतान्त्रिक शासन प्रचलित है। जैसी इन शासनों की प्रकृति है, वैसे ही शैक्षिक प्रशासन की प्रकृति भी होती है। शिक्षा के समस्त पक्ष ऐसे ही मूल आधारों से प्रभावित होते हैं। शैक्षिक प्रशासन को आज केवल शिक्षा की व्यवस्था करना ही नहीं समझा जाता अपितु शिक्षा के सम्बन्ध में योजना बनाना, संगठन पर ध्यान देना, निर्देशन तथा पर्यवेक्षण आदि अनेक कार्यों से गहरा सम्बन्ध है। वास्तव में शैक्षिक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति करना है।


शैक्षिक प्रशासन के अन्तर्गत विद्यालय के विधिवत संचालन के थे सभी कार्य समाविष्ट होते हैं जिनमें प्रबन्ध, नियन्त्रण, व्यवस्था, पर्यवेक्षण एवं निर्देशन आदि आते हैं। इसमें योजना बनाना, प्रशासकीय कार्यवाही को निश्चित करना, सम्बन्धित कार्यकर्त्ताओं तथा विद्यार्थियों को आवश्यक सुविधाएँ एवं प्रोत्साहित उपलब्ध कराना, आवश्यक अभिलेख रखना, विद्यार्थी स्वशासन का संचालन करना, योग्यता के अनुसार कार्य का विभाजन करना, उनके कार्य आदि का समायोजन करना, विद्यालय और समाज के मध्य सहयोगपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना आदि प्रवृत्तियों का समावेश होता है। अतः विद्यालय प्रशासन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-


"शैक्षिक प्रशासन यह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शैक्षिक कार्य में लगे कार्यकत्ताओं के प्रयासों में समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित किया जाता है। उपयुक्त साज-सज्जा का इस प्रकार उपयोग किया जाता है कि जिससे मानवोचित गुणों का प्रभावशाली ढंग से विकास हो सके, ताकि वे राष्ट्र की आकांक्षा एवं आशा के योग्य बन सकें।"

 शैक्षिक प्रशासन की या शिक्षा प्रशासन की परिभाषाएँ-

पाल आर मोर्ट- "शिक्षा प्रशासन वह प्रभाव है, जो वांछित लक्ष्यों के सन्दर्भ में छात्रों को प्रभावित करता है, इसमें वह अन्य मानव समुदाय का उपयोग करता है, और शिक्षक इस कार्य में अभिकर्ता होता है। तीसरे समूह यानि जनता के लिये वह विभिन्न लक्ष्यों की पूर्ति हेतु कार्य करता है।"


केन्डल के शब्दो मे -"मूल रूप से शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य यही है तथा छात्रों को ऐसी परिस्थिति में एक साथ लाया जाए जिससे अधिकतम रूप से सफलतापूर्वक शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।"


एडम्स बुक के अनुसार, " प्रशासन वह क्षमता है जो अनेक प्रकार की संघर्षमयो सामाजिक शक्ति को एक संगठन में इस प्रकार सुन्दर ढंग से व्यवस्थित करता है जिससे वह एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में क्रियाशील हो।"


ग्रेशम कैकूर के शब्दों में, "शिक्षा प्रशासन वह राजनीति सत्ता है जब दीर्घकालीन नीतियों तथा लक्ष्यों को निर्धारित कर दिये गये नीति नियमों के अनुकूल प्रशासन के मार्गदर्शन में दिन-प्रतिदिन लक्ष्य प्राप्ति हेतु समस्या को हल किया जाता है।"


ग्राहम वालफोर के अनुसार, "शिक्षा प्रशासन सही छात्रों को, सही शिक्षा, सही शिक्षकों से प्राप्त करने योग्य बनाता है। यह कार्य वह राज्य के साधनों की क्षमता के अनुसार करता है और छात्र इसका लाभ अपने प्रशिक्षण के दौरान उठाता है।"

जे. बी. सीयर्स के मतानुसार, "शिक्षा में प्रशासन शब्द सरकार से सम्बन्धित है। इससे सम्बन्धित शब्द अधीक्षक, पर्यवेक्षण, नियोजन, अनावधान, दिशा संगठन, नियन्त्रण, मार्गदर्शन एवं नियमन है।"


इन सभी परिभाषाओं से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा प्रशासन, शिक्षा संस्थाओं के कुशल संचालन का तंत्र है। इस तंत्र में नीति नियमों के अनुपालन द्वारा वांछित लक्ष्य प्राप्त किये जाते हैं। उक्त परिभाषाओं का निष्कर्ष इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-


(1) शिक्षा से सम्बन्धित सभी क्रियाओं एवं साधनों के सम्पूर्ण उपयोग, संगठन आदेश, जन सहयोग के द्वारा वांछित लक्ष्य प्राप्त करने में शिक्षा प्रशासन सहयोग देता है।

(2) शिक्षा विकास के पथ पर ले जाती है।

(3) शिक्षा प्रशासन, शिक्षा सम्बन्धी सभी प्रयासों एवं संस्थाओं को संगठित करने का प्रयास है। 

(4) शिक्षा प्रशासन का सम्बन्ध विभिन्न व्यक्तियों, शिक्षकों छात्रों, अभिभावकों, जनता के प्रयासों को समन्वित करने से है।

(5) शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में शिक्षा प्रशासन सहायक है।


शैक्षिक प्रशासन के लक्ष्य या उद्देश्य

(Aim of Education or Administration) 


उद्देश्य या लक्ष्य के विषय में लिखते हुए जॉन डीवी ने कहा है, कि "उद्देश्य के अन्तर्गत व्यवस्थापूर्ण गतिशीलता होती है, जिसे क्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसके लिये हम क्रियाशील होते हैं।"

 इस सम्बन्ध एनसर्ट ने कहा है, "उद्देश्य वह बिन्दु है, जिसकी दिशा में कार्य किया जाता है। लक्ष्य या उद्देश्य को क्रिया द्वारा प्राप्त व्यवस्थित परिवर्तन भी कहते हैं।"

 इस दृष्टि से उद्देश्यों को रचना इसलिये की जाती है- 

(1) कार्य के दिशा निर्धारण हेतु, 

(2) कार्य में निश्चितता तथा सार्थकता हेतु, 

(3) समयबद्धता हेतु, 

(4) संभाव्य कठिनाइयों के निवारण हेतु, 

(5) वांछित परिणाम हेतु ।

 शैक्षिक प्रशासन का मुख्य लक्ष्य उन उद्देश्यों का निर्माण एवं प्राप्ति के प्रयास करना है, जो अच्छे नागरिक होने के लिये आवश्यक है। प्रशासन के उद्देश्यों का निर्धारण किसी प्रयोजन के लिये किया जाता है।

(1) बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए उचित वातावरण तैयार करना—शैक्षिक प्रशासन शिक्षा सम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न कराता है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों की सहायता करता है। इन सब के साथ-साथ शैक्षिक प्रशासन बच्चों के लिए ऐसा वातावरण तैयार करता है, जिसमें बालक का सम्पूर्ण विकास सम्भव हो सके। इस सन्दर्भ में कॅण्डल (Kandal) महोदय का मत है- "मूलतः शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य यह है कि अध्यापकों तथा छात्रों को ऐसी परिस्थितियों में एक-साथ लाया जाए जिससे की शिक्षा के उद्देश्य अधिक सफलतापूर्वक प्राप्त हो सकें।" "Fundamentally the purpose of educational administration is to bring pupils and teachers under such conditions as will more successfully promote the end of education."इस प्रकार आवश्यक साधन और सामग्री एकत्र करके उचित वातावरण बनाना शैक्षिक प्रशासन का प्रमुख उद्देश्य है।


(2) शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य है कि शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को उनके उत्तरदायित्व का ज्ञान कराया जाए, बालक के व्यक्तित्व का विकास किया जाए और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुरूप कार्य करने के अवसर उपलब्ध कराए जाएं। इस दृष्टि से शैक्षिक प्रशासन प्रत्येक स्तर पर शैक्षिक कार्यक्रम, क्रियाकलाप और अन्य गतिविधियों का सुचारु रूप से संचालन करता है और कर्मचारियों की नियुक्ति, सेवा शर्ते तथा उनके प्रशिक्षण का निर्धारण करता है ताकि शिक्षा की सही दिशा में प्रगति हो सके। सही शिक्षा के सन्दर्भ में ग्राहम बैलफोर महोदय (Sir Graham Balfour) का मत है- "शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य सही बालकों को सही शिक्षकों द्वारा राज्य के सीमित साधनों के अन्तर्गत उपलब्ध व्यय से सही शिक्षा ले।


(3) शिक्षा को उत्पादन का साधन बनाना- शैक्षिक प्रशासन शिक्षा को उत्पादन का साधन बनाने में सहायता करता है। फलस्वरूप किसी संस्था के छात्रों की  संख्या में  वृद्धि होती है।

(4) शिक्षा को सुनिश्चित योजना और सुनियोजित रूप प्रदान करना—शैक्षिक प्रशासन शिक्षा को सुनियोजित रूप प्रदान करने में सहायता करता है। यह सुनिश्चित योजना का निर्माण करता है ताकि शिक्षा समाज के अनुरूप संचालित हो सके और राज्य एवं सरकार की शिक्षा नीतियों का क्रियान्वयन सही रूप में हो सके। सुनियोजन के सन्दर्भ में आर्थर वी० मोहिल्मन (Arthur B. Mohilman) का कथन है— "शिक्षा का कार्य निश्चित संगठन अथवा सुनिश्चित योजना, विधियों, व्यक्तियों तथा आर्थिक साधनों के माध्यम से चलना चाहिए।" "Education must function through a definite organization or structure of plans,procedures, personnel, material, plant and finance. "


(5) शिक्षा की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्णय लेना एवं शिक्षा सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण तथा क्रियान्वयन करना— शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य है कि  महोदय सीयर्स ( B. Seares) का कथन है- "प्रत्येक प्रशासनिक निर्णय तथा प्रत्येक कार्य शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप लेना अत्यन्त आवश्यक है।""

(6) प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण विकसित करना—शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य छात्रों एवं कर्मचारियों क में श्रेष्ठ नागरिकता, धर्म-निरपेक्षता एवं समानता की भावना का विकास करना है। यह भावना प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण का विकास करती है तथा शिक्षण संस्थाओं के व्यक्तियों में पारम्परिक सहयोग और स्वशासन क प्रशिक्षण प्रदान करती है। शिक्षा के नवीन उद्देश्यों, मूल्यों, मान्यताओं, सिद्धान्तों आदि के साथ सामंजस्य स्थापित की करती है। इस प्रकार यह दृष्टिकोण शिक्षा सम्बन्धी नवीन उत्तरदायित्वों को स्वीकार करना तथा उनका उचित निर्वाह करने के लिए तैयार करता है ताकि जनतन्त्रीय व्यवस्था सफल हो सके। प्रजातन्त्र के सन्दर्भ में के०जी० सैयदेन महोदय का मत है— आज के युग में विद्यालय को प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार चलाया जाना चाहिए। यदि यह सिद्धान्त ही ओझल हो गया तो प्रशासन तथा निरीक्षण का महत्त्व ही समाप्त हो जाता है।"


(7) छात्रों की रुचियों एवं अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाना - शैक्षिक प्रशासन का कार्य केवल समय प विभाग चक्र बनाना ही नहीं है अपितु छात्रों की अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाना भी है। इस सन्दर्भ में पी०सी० रेन (P. C. Ren) महोदय का कथन है- "शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य छात्रों के लाभ हेतु विद्यालय बनाने, उनकी अन्तर्निहित है क्षमताओं को प्रशिक्षित करने, उनका मानसिक विकास एवं दृष्टिकोण व्यापक बनाना है। यह छात्रों को स्वयं के प्रति है समुदाय और राज्य के प्रति कर्तव्यपरायण बनाता है और वारित्रिक विकास कर स्वास्थ्य एवं शक्ति प्रदान करता है।"



April 14, 2023

विस्मृति (Forgetting) - विस्मृति का अर्थ व परिभाषा, विस्मृति के प्रकार, विस्मृति के कारण, विस्मृति कम करने के उपाय, शिक्षा में विस्मृति का महत्त्व

विस्मृति (Forgetting)

जब हम कोई नई बात सीखते हैं या नया अनुभव प्राप्त करते हैं, तब हमारे मस्तिष्क में उसका चित्र अंकित हो जाता है। हम अपनी स्मृति की सहायता से उस अनुभव को अपनी चेतना में फिर लाकर उसका स्मरण कर सकते हैं। पर कभी-कभी, हम ऐसा करने में सफल नहीं होते हैं। हमारी यही क्रिया- 'विस्मृति' है। दूसरे शब्दों में, “भूतकाल के किसी अनुभव को वर्तमान चेतना में लाने की असफलता को 'विस्मृति' कहते हैं।"

विस्मृति का अर्थ व परिभाषा (Meaning & Definition of Forgetting)

हम 'विस्मृति' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं-

1.मन के अनुसार –"सीखी हुई बात को स्मरण रखने या पुनः स्मरण करने की असफलता को विस्मृति कहते हैं।"

2. ड्रेवर के अनुसार–"विस्मृति का अर्थ है-किसी समय प्रयास करने पर भी किसी पूर्व अनुभव का स्मरण करने या पहले सीखे हुए किसी कार्य को करने में असफलता।"

विस्मृति के प्रकार (Kinds of Forgetting)

विस्मृति दो प्रकार की होती है-

1. सक्रिय विस्मृति (Active Forgetting):- इस विस्मृति का कारण व्यक्ति है। वह स्वयं किसी बात को भूलने का प्रयत्न करके उसे भुला देता है। 

2. निष्क्रिय विस्मृति (Passive Forgetting):- इस विस्मृति का कारण व्यक्ति नहीं है। वह प्रयास न करने पर भी किसी बात को स्वयं भूल जाता है।

विस्मृति के कारण (Causes of Forgetting)

'विस्मृति' या 'विस्मरण' के कारणों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते है-

(अ) सैद्धान्तिक कारण (Theoretical Causes):- बाधा, दमन और अनभ्यास के सिद्धान्त।

(ब) सामान्य कारण (General Causes):- समय का प्रभाव, रुचि का अभाव, विषय की मात्रा इत्यादि।


1. बाधा का सिद्धान्त (Theory of Interference):- इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि हम एक पाठ को याद करने के बाद दूसरा पाठ याद करने लगते हैं, जो हमारे मस्तिष्क में पहले पाठ के स्मृति-चिन्हों (Memory Traces) में बाधा पड़ती है। फलस्वरूप वे निर्बल होते चले जाते हैं और हम पहले पाठ को भूल जाते हैं। 

2. दमन का सिद्धान्त (Theory of Repression):- इस सिद्धान्त के अनुसार, हम दुःखद और अपमानजनक घटनाओं को याद नहीं रखना चाहते हैं। अतः हम उनका दमन करते हैं। परिणामतः वे हमारे अचेतन मन में चली जाती हैं और हम उनको भूल जाते हैं। 

3. अनभ्यास का सिद्धान्त (Theory of Disuse)- थार्नडाइक एवं एबिंगहॉस (Thorndike and Ebbinghaus) ने विस्मृति का कारण अभ्यास का अभाव बताया है। यदि हम सीखी हुई बात का बार-बार अभ्यास करते हैं, तो हम उसको भूल जाते हैं। 

4. समय का प्रभाव (Effect of Time):- हैरिस (Harris) के अनुसार : सीखी हुई बात पर समय का प्रभाव पड़ता है। अधिक समय पहले सीखी हुई बात अधिक और कम समय पहले सीखी हुई बात कम भूलती है। 

5. रुचि, ध्यान व इच्छा का अभाव (Lack of Interest, Attention Will):- जिस कार्य को हम जितनी कम रुचि, ध्यान इच्छा से सीखते हैं, उतनी ही जल्दी हम उसको भूलते हैं। स्टाउट के अनुसार :- "जिन बातों के प्रति हमारा ध्यान रहता है, उन्हें हम स्मरण रखते हैं।" 

6. विषय का स्वरूप (Nature of Material):- हमें सरल, सार्थक और लाभप्रद बातें बहुत समय तक स्मरण रहती हैं। इसके विपरीत, हम कठिन, निरर्थक और हानिप्रद बातों को शीघ्र ही भूल जाते हैं। 

7. विषय की मात्रा (Amount of Material)- विस्मरण, विषय की मात्रा के कारण भी होता है। हम छोटे विषय को देर में और लम्बे विषय को जल्दी भूलते हैं। 

8. सीखने में कमी (Underlearning) - हम कम सीखी हुई बात को शीघ्र और भली प्रकार सीखी हुई बात को विलम्ब से भूलते हैं। 

9. सीखने की दोषपूर्ण विधि  (Defective Method of Learning) - यदि शिक्षक, बालकों को सीखने के लिए उचित विधियों का प्रयोग न करके दोषपूर्ण विधियों का प्रयोग करता है, तो वे उसको थोड़े समय में भूल जाते हैं। 

10. मानसिक आघात (Mental Injury) - सिर में आघात या चोट लगने से स्नायुकोष्ठ छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। अतः उन पर बने स्मृति-चिन्ह अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। फलस्वरूप, व्यक्ति स्मरण की हुई बातों को भूल जाता है। वह कम चोट लगने से कम और अधिक चोट लगने से अधिक भूलता है। 

11. मानसिक द्वन्द्व (Mental Conflict)- मानसिक द्वन्द्व के कारण मस्तिष्क में किसी-न-किसी प्रकार की परेशानी उत्पन्न हो जाती है। यह परेशानी, विस्मृति का कारण बनती है। 

12. मानसिक रोग  (Mental Disease) - कुछ मानसिक रोग ऐसे हैं, जो स्मरण शक्ति को निर्बल बना देते हैं, जिसके फलस्वरूप विस्मरण की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार का एक मानसिक रोग-दुःसाध्य उन्माद (Psychosis) है। 

13. मादक वस्तुओं का प्रयोग (Use of Intoxicants)- मादक वस्तुओं का प्रयोग मानसिक शक्ति को क्षीण कर देता है। अतः विस्मरण एक स्वाभाविक बात हो जाती है। 

14. स्मरण न करने की इच्छा (Lack of Desire to Remember) - यदि हम किसी बात को स्मरण नहीं रखना चाहते हैं, तो हम उसे अवश्य भूल जाते हैं। "We forget much that we do not want to remember.” -Sturt & Onkden

15. संवेगात्मक असन्तुलन  (Emotional Disturbance) - किसी संवेग के उत्तेजित होने पर व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक दशा में असाधारण परिवर्तन हो जाता है। उस दशा में उसे पिछली बातों का स्मरण करना कठिन हो जाता है। बालक, भय के कारण भली प्रकार याद पाठ को भी भूल जाता है।

विस्मृति कम करने के उपाय  (Ways of Minimising Forgetfulness)

 किसी बात की कम विस्मृति का अर्थ है- उसे अधिक समय तक स्मरण रखने या स्मृति में धारण रखने (Retention) की क्षमता न होना। अतः विस्मृति को कम करने या धारण-शक्ति में उन्नति करने के लिए निम्नांकित उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है। 

1. पाठ की विषय-वस्तु (Content Matter)- कोलेसनिक का मत है - पाठ की विषय-वस्तु अर्थपूर्ण, क्रमबद्ध और बालक की मानसिक योग्यता के अनुरूप होनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार की विषय-वस्तु की विस्मृति की गति और मात्रा बहुत कम होती है। इसके अतिरिक्त, पाठ में आवश्यकता से अधिक तथ्य, तिथियों और विस्तृत सूचनाएं नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इनकी विस्मृति की गति और मात्रा बहुत तीव्र होती है। 

2. पूरे पाठ का स्मरण  (Memorising the Whole Lesson) -- बालक को पूरा पाठ सोच-समझकर याद करना चाहिए। जब तक उसे पूरा पाठ याद न हो जाय, तब तक उसे स्मरण करने का कार्य स्थगित नहीं करना चाहिए। साथ ही, उसे पाठ को आंशिक रूप से स्मरण नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पाठ का भूल जाना आवश्यक है। 

3. पाठ का अधिक स्मरण (More Learning of the Lesson)- पाठ स्मरण हो जाने के बाद भी बालक को उसे कुछ समय तक और स्मरण करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए नन ने लिखा है :-"पाठ स्मरण हो जाने के बाद जितना अधिक स्मरण किया जाता है, उतना ही अधिक वह स्मृति में धारण रहता है।" 

4. बालक का स्मरण करने में ध्यान (Attention in Memorising)-पाठ को स्मरण करते समय बालक को अपना पूर्ण ध्यान उस पर केन्द्रित रखना चाहिए। वुडवर्क के शब्दों में इसका कारण यह है :- "सीखने वाला जितना अधिक ध्यान देता है, उतनी ही जल्दी वह सीखता है और बाद में उतनी ही अधिक देर में वह भूलता है।" 

5. अधिक समय तक स्मरण रखने का विचार (Decision for Long Retention) - बालक को पाठ यह विचार करके स्मरण करना चाहिए कि उसे उसको बहुत समय तक याद रखना है। तभी वह उसे शीघ्र भूलने की सम्भावना का अन्त कर सकता है। 

6. विचार- साहचर्य के नियमों का पालन (Use of Association Laws)- पाठ याद करते समय बालक को विचार-सहचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। उसे नवीन तथ्यों और घटनाओं का उन तथ्यों और घटनाओं से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए, जिनको वह जानता है। ऐसा करने से वह सम्भवतः पाठ का कभी विस्मरण नहीं करेगा। 

7. पूर्ण व अन्तरयुक्त विधियों का प्रयोग (Use of Spaced and Non-spaced Methods) – बालक को पाठ याद करने के लिए पूर्ण (Whole) और अन्तरयुक्त (Spaced) विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इसका कारण यह है कि खण्ड (Part) और अन्तरहीन (Unspaced) विधियों की अपेक्षा इन विधियों से याद किए गए पाठ का विस्मरण कम होता है। 

8. सस्वर वाचन (Loud Reading) - बालक को पाठ बोल-बोलकर स्मरण करना  चाहिए। वुडवर्थ के शब्दों में इसका कारण यह है :- सक्रिय सस्वर वाचन के पश्चात् विस्मरण की गति धीमी होती है।" 

9. स्मरण के बाद विश्राम (Rest after Memorizing) - बालक को पाठ स्मरण के उपरान्त कुछ समय तक विश्राम अवश्य करना चाहिए, ताकि पाठ के स्मृति-चिन्ह उसके मस्तिष्क में स्पष्ट रूप से अंकित हो जायें।

10. पाठ की पुनरावृत्ति (Repetition)- पाठ को स्मरण करने के बाद बालक को उसे थोड़े-थोड़े समय के उपरान्त दोहराते रहना चाहिए। पाठ की जितनी ही अधिक पुनरावृत्ति की जाती है, उतनी ही अधिक देर से वह भूलता है "Relearning improves the memory traces and reduces forgetting."- Woodworth 

11. स्मरण करने के नियमों का प्रयोग (Use of Laws of Memory) - बालक को विस्मरण कम करने के लिए स्मरण करने की मितव्ययी विधियों का प्रयोग करना चाहिए। 

शिक्षा में विस्मृति का महत्त्व (Importance of Forgetting in Education)

कॉलिन्स व ड्रेवर ने लिखा है: "यह सत्य है कि विस्मरण, स्मरण के विपरीत है, पर व्यावहारिक दृष्टिकोण से विस्मरण लगभग उतना ही लाभप्रद है, जितना कि स्मरण।" "It is true that forgetting is the opposite of remembering, but from a practical point of view forgetting is almost as useful as remembering. "

1. क्षणिक महत्त्व की बातों को भुलाना

2. समान रूप से अनुपयोगी बातों का भुलाना 

3. अस्त-व्यस्तता से बचाव 

4. दुःखद अनुभवों को भूलना

5. भाषा शिक्षण में उपयोगी

6. सीमित क्षेत्र का उपयोग-बालक का स्मृति

7. पुरानी बातों को भूलकर नई बातों को सीखना 
 
 हम कह सकते हैं कि बालक की शिक्षा में विस्मरण का स्थान अति महत्त्वपूर्ण है। वह विस्मरण करके ही शिक्षा सम्बन्धी नई बातों को सीख सकता है। ठीक लिखा है : "स्मरण करने की एक शर्त यह है कि हमें विस्मरण करना चाहिए।" "One condition of remembering is that we should forget."-M. Ribot. शिक्षक को चाहिये कि वह छात्रों में नवीन चीजों को सीखने पर बल दे। उन्हें संतुलित रूप से सिखाये । संवेगात्मक संतुलन बनाये रखे।


शिक्षक को चाहिये कि वह छात्रों में नवीन चीजों को सीखने पर बल दे। उन्हें संतुलित रूप से सिखाये संवेगात्मक संतुलन बनाये रखे। 


Some important questions:

1. विस्मरण के कारणों का वर्णन कीजिए। बालकों में विस्मरण को कम करने के लिए किन उपायों का प्रयोग किया जाना चाहिए ?

Describe the causes of forgetting. What methods should be used to minimise forgetfulness in children?

 2. शिक्षा में विस्मरण के कार्य और महत्त्व पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

Write a short essay on the function and importance of forgetting in education.

3. कक्षा में सीखे गये पाठ को स्मृति में धारण करने में अधिक दक्षता प्राप्त करने की कौन-सी विधियाँ हैं ?
What are the methods of acquiring great perfection in retaining in memory the lesson learnt in the class.

4. विस्मृति के कौन-कौन-से कारण हैं? एक शिक्षार्थी को कौन-सी विधियाँ अपनानी चाहिए, जिनसे उसे अधिक अच्छा याद रह सके ? 
What are the causes of forgetting? What methods should a learner adopt in order to ensure better retention?

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