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July 15, 2023

प्रशासन एवं शैक्षिक प्रशासन

प्रशासन एवं शैक्षिक प्रशासन 

Administration and Educational Administration 


अवधारणा (concept)


"शैक्षिक प्रबन्ध एक ऐसी सेवा करने वाली गतिविधि है, जिसके माध्यम से शैक्षिक प्रक्रिया के लक्ष्य प्रभावकारी ढंग से प्राप्त किए जा सकते हैं।"(Educational Management is a Service activity through with the objective of educational process effectively realised.)


प्रशासन से अभिप्राय (Meaning of Administration)


'प्रशासन' मूल रूप में संस्कृत का शब्द है। यह 'प्र'  उपसर्ग शास् धातु से आप बना है। इसका अर्थ है प्रकृष्ट या उत्कृष्ट रीति से शासन करना। आजकल शासन का अभिप्राय 'सरकार' से समझा जाता है, किन्तु इसका वास्तविक पुराना अर्थ निर्दश  देना, पथ-प्रदर्शन करना, आदेश या आज्ञा देना है। वैदिक युग में प्रशासन का प्रयोग इसी अर्थ में होता था। उस समय सोमादि यज्ञों में मुख्य पुरोहित अन्य सहायक पुरोहितों को यक्ष को सामग्री तथा अन्य कार्यों के बारे में आवश्यक निर्देश एवं आदेश देने का कार्य किया करते थे, उसे प्रशास्ता कहा जाता था। बाद में यह शासन कार्य में निर्देश देने वाले संचालक और राजा के लिए प्रयुक्त होने लगा।


'प्रशासन' की भाँति इसके लिए अंग्रेजी में 'एडमिनिस्ट्रेशन' (Administration) शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह मूलतः 'एड' (Ad) उपसर्गपूर्वक सेवा करने का अर्थ देने वाली लेटिन की धातु 'Ministrere' से बना है। इसका मूल अभिप्राय एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के हित की दृष्टि से उसको सेवा का कोई कार्य करना है, जैसे पादरी द्वारा किसी व्यक्ति को धार्मिक लाभ पहुंचाने के लिए धार्मिक संस्कार करना, न्यायाधीश द्वारा न्याय करना, डॉक्टर द्वारा बीमार को दवाई देना।  शब्दकोष के अनुसार 'प्रशासन' शब्द का अर्थ है 'कार्यों का प्रबन्ध करना अथवा लोगों की देखभाल करना।' एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में प्रशासन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गयी है कि "यह कार्यों के प्रबन्ध अथवा उनको पूर्ण करने की एक क्रिया है।"

प्रशासन' का अर्थ प्रकृष्ट रीति से शासित अथवा अनुशासित करता है। इसका यह अभिप्राय है कि इस क्रिया में अनेक व्यक्तियों को विशिष्ट अनुशासन में रखते हुए उनसे एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य कराया जाता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रशासन एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सहयोगी ढंग से किया जाने वाला कार्य है। प्रशासन के लिए अनेक व्यक्तियों का सहयोग, संगठन और सामाजिक हित का उद्देश्य अवश्य होना चाहिए।


साइमन के अनुसार, "अपने व्यापक रूप से प्रशासन की व्याख्या उन समस्त सामूहिक क्रियाओं से की जा सकती है जो सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहयोगात्मक रूप में प्रस्तुत की जाती है।"


मार्क्स के अनुसार, “प्रशासन चैतन्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निश्चयात्मक क्रिया है। यह उन वस्तुओं के एक संगठित प्रयत्न तथा साधनों का निश्चित प्रयोग है जिसको कि हम कार्यान्वित करवाना चाहते हैं।"

ब्रिटेनिका ऐनसाइक्लोपीडिया (Britainica Encyclopedia) के अनुसार- "Administration = Ad+ Minister अर्थात् कार्यों का निष्पादन एवं प्रबंधन करना।"


सी०वी० गुड (C.V. Good) के शब्दों में- “प्रशासन का तात्पर्य उन सभी तकनीकों एवं प्रक्रियाओंसे है जो निर्धारित नीतियों के अनुरूप किसी वैज्ञानिक संगठन के संचालन में प्रयुक्त की जाती हैं।"


रायबर्न (Rayburn) के अनुसार — “प्रशासन केवल व्यवस्थाओं, समय-तालिकाओं, कार्य-योजना, भवन का प्रकार, अभिलेखों आदि से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि यह हमारे कार्य करने के दृष्टिकोण और बच्चों (जिनके साथ हम कार्य करते हैं) से सम्बन्धित है "


निगरों के अनुसार- "प्रशासन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य तथा सामग्री दोनों का संगठन है।"


व्हाइट के अनुसार, "प्रशासन किसी विशिष्ट उद्देश्य अथवा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत से व्यक्तियों के सम्बन्ध में निर्देश, नियन्त्रण तथा समन्वयीकरण की कला है। "

 लुथर गुलिक के अनुसार, "प्रशासन का सम्बन्ध कार्यों को सम्पन्न कराने से है जिससे कि निर्धारित लक्ष्य पूरा हो सके।"


शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Education Administration)


शैक्षिक प्रशासन का अर्थ- शैक्षिक (विद्यालय) प्रशासन एक मानवीय प्रक्रिया है। शिक्षा का समुचित प्रबन्ध करना ही विद्यालय प्रशासन या शैक्षिक प्रशासन कहलाता है।


शिक्षा प्रशासन का अभिप्राय शिक्षा के प्रशासन से ही है। आधुनिक युग में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक हो गया है। शिक्षा पर सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास का उत्तरदायित्व है। शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है और इसका सम्बन्ध मानव विकास के लिए किये जाने वाले मानवीय प्रयासों से होता है। अतः शिक्षा का प्रसार तथा उससे मिलने वाला लाभ शिक्षा प्रशासन के अभिकरणों को कुशलता तथा गतिशीलता पर निर्भर करता है। विश्व में प्रजातांत्रिक तथा एकतान्त्रिक शासन प्रचलित है। जैसी इन शासनों की प्रकृति है, वैसे ही शैक्षिक प्रशासन की प्रकृति भी होती है। शिक्षा के समस्त पक्ष ऐसे ही मूल आधारों से प्रभावित होते हैं। शैक्षिक प्रशासन को आज केवल शिक्षा की व्यवस्था करना ही नहीं समझा जाता अपितु शिक्षा के सम्बन्ध में योजना बनाना, संगठन पर ध्यान देना, निर्देशन तथा पर्यवेक्षण आदि अनेक कार्यों से गहरा सम्बन्ध है। वास्तव में शैक्षिक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति करना है।


शैक्षिक प्रशासन के अन्तर्गत विद्यालय के विधिवत संचालन के थे सभी कार्य समाविष्ट होते हैं जिनमें प्रबन्ध, नियन्त्रण, व्यवस्था, पर्यवेक्षण एवं निर्देशन आदि आते हैं। इसमें योजना बनाना, प्रशासकीय कार्यवाही को निश्चित करना, सम्बन्धित कार्यकर्त्ताओं तथा विद्यार्थियों को आवश्यक सुविधाएँ एवं प्रोत्साहित उपलब्ध कराना, आवश्यक अभिलेख रखना, विद्यार्थी स्वशासन का संचालन करना, योग्यता के अनुसार कार्य का विभाजन करना, उनके कार्य आदि का समायोजन करना, विद्यालय और समाज के मध्य सहयोगपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना आदि प्रवृत्तियों का समावेश होता है। अतः विद्यालय प्रशासन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-


"शैक्षिक प्रशासन यह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शैक्षिक कार्य में लगे कार्यकत्ताओं के प्रयासों में समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित किया जाता है। उपयुक्त साज-सज्जा का इस प्रकार उपयोग किया जाता है कि जिससे मानवोचित गुणों का प्रभावशाली ढंग से विकास हो सके, ताकि वे राष्ट्र की आकांक्षा एवं आशा के योग्य बन सकें।"

 शैक्षिक प्रशासन की या शिक्षा प्रशासन की परिभाषाएँ-

पाल आर मोर्ट- "शिक्षा प्रशासन वह प्रभाव है, जो वांछित लक्ष्यों के सन्दर्भ में छात्रों को प्रभावित करता है, इसमें वह अन्य मानव समुदाय का उपयोग करता है, और शिक्षक इस कार्य में अभिकर्ता होता है। तीसरे समूह यानि जनता के लिये वह विभिन्न लक्ष्यों की पूर्ति हेतु कार्य करता है।"


केन्डल के शब्दो मे -"मूल रूप से शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य यही है तथा छात्रों को ऐसी परिस्थिति में एक साथ लाया जाए जिससे अधिकतम रूप से सफलतापूर्वक शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।"


एडम्स बुक के अनुसार, " प्रशासन वह क्षमता है जो अनेक प्रकार की संघर्षमयो सामाजिक शक्ति को एक संगठन में इस प्रकार सुन्दर ढंग से व्यवस्थित करता है जिससे वह एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में क्रियाशील हो।"


ग्रेशम कैकूर के शब्दों में, "शिक्षा प्रशासन वह राजनीति सत्ता है जब दीर्घकालीन नीतियों तथा लक्ष्यों को निर्धारित कर दिये गये नीति नियमों के अनुकूल प्रशासन के मार्गदर्शन में दिन-प्रतिदिन लक्ष्य प्राप्ति हेतु समस्या को हल किया जाता है।"


ग्राहम वालफोर के अनुसार, "शिक्षा प्रशासन सही छात्रों को, सही शिक्षा, सही शिक्षकों से प्राप्त करने योग्य बनाता है। यह कार्य वह राज्य के साधनों की क्षमता के अनुसार करता है और छात्र इसका लाभ अपने प्रशिक्षण के दौरान उठाता है।"

जे. बी. सीयर्स के मतानुसार, "शिक्षा में प्रशासन शब्द सरकार से सम्बन्धित है। इससे सम्बन्धित शब्द अधीक्षक, पर्यवेक्षण, नियोजन, अनावधान, दिशा संगठन, नियन्त्रण, मार्गदर्शन एवं नियमन है।"


इन सभी परिभाषाओं से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा प्रशासन, शिक्षा संस्थाओं के कुशल संचालन का तंत्र है। इस तंत्र में नीति नियमों के अनुपालन द्वारा वांछित लक्ष्य प्राप्त किये जाते हैं। उक्त परिभाषाओं का निष्कर्ष इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-


(1) शिक्षा से सम्बन्धित सभी क्रियाओं एवं साधनों के सम्पूर्ण उपयोग, संगठन आदेश, जन सहयोग के द्वारा वांछित लक्ष्य प्राप्त करने में शिक्षा प्रशासन सहयोग देता है।

(2) शिक्षा विकास के पथ पर ले जाती है।

(3) शिक्षा प्रशासन, शिक्षा सम्बन्धी सभी प्रयासों एवं संस्थाओं को संगठित करने का प्रयास है। 

(4) शिक्षा प्रशासन का सम्बन्ध विभिन्न व्यक्तियों, शिक्षकों छात्रों, अभिभावकों, जनता के प्रयासों को समन्वित करने से है।

(5) शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में शिक्षा प्रशासन सहायक है।


शैक्षिक प्रशासन के लक्ष्य या उद्देश्य

(Aim of Education or Administration) 


उद्देश्य या लक्ष्य के विषय में लिखते हुए जॉन डीवी ने कहा है, कि "उद्देश्य के अन्तर्गत व्यवस्थापूर्ण गतिशीलता होती है, जिसे क्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसके लिये हम क्रियाशील होते हैं।"

 इस सम्बन्ध एनसर्ट ने कहा है, "उद्देश्य वह बिन्दु है, जिसकी दिशा में कार्य किया जाता है। लक्ष्य या उद्देश्य को क्रिया द्वारा प्राप्त व्यवस्थित परिवर्तन भी कहते हैं।"

 इस दृष्टि से उद्देश्यों को रचना इसलिये की जाती है- 

(1) कार्य के दिशा निर्धारण हेतु, 

(2) कार्य में निश्चितता तथा सार्थकता हेतु, 

(3) समयबद्धता हेतु, 

(4) संभाव्य कठिनाइयों के निवारण हेतु, 

(5) वांछित परिणाम हेतु ।

 शैक्षिक प्रशासन का मुख्य लक्ष्य उन उद्देश्यों का निर्माण एवं प्राप्ति के प्रयास करना है, जो अच्छे नागरिक होने के लिये आवश्यक है। प्रशासन के उद्देश्यों का निर्धारण किसी प्रयोजन के लिये किया जाता है।

(1) बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए उचित वातावरण तैयार करना—शैक्षिक प्रशासन शिक्षा सम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न कराता है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों की सहायता करता है। इन सब के साथ-साथ शैक्षिक प्रशासन बच्चों के लिए ऐसा वातावरण तैयार करता है, जिसमें बालक का सम्पूर्ण विकास सम्भव हो सके। इस सन्दर्भ में कॅण्डल (Kandal) महोदय का मत है- "मूलतः शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य यह है कि अध्यापकों तथा छात्रों को ऐसी परिस्थितियों में एक-साथ लाया जाए जिससे की शिक्षा के उद्देश्य अधिक सफलतापूर्वक प्राप्त हो सकें।" "Fundamentally the purpose of educational administration is to bring pupils and teachers under such conditions as will more successfully promote the end of education."इस प्रकार आवश्यक साधन और सामग्री एकत्र करके उचित वातावरण बनाना शैक्षिक प्रशासन का प्रमुख उद्देश्य है।


(2) शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य है कि शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को उनके उत्तरदायित्व का ज्ञान कराया जाए, बालक के व्यक्तित्व का विकास किया जाए और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुरूप कार्य करने के अवसर उपलब्ध कराए जाएं। इस दृष्टि से शैक्षिक प्रशासन प्रत्येक स्तर पर शैक्षिक कार्यक्रम, क्रियाकलाप और अन्य गतिविधियों का सुचारु रूप से संचालन करता है और कर्मचारियों की नियुक्ति, सेवा शर्ते तथा उनके प्रशिक्षण का निर्धारण करता है ताकि शिक्षा की सही दिशा में प्रगति हो सके। सही शिक्षा के सन्दर्भ में ग्राहम बैलफोर महोदय (Sir Graham Balfour) का मत है- "शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य सही बालकों को सही शिक्षकों द्वारा राज्य के सीमित साधनों के अन्तर्गत उपलब्ध व्यय से सही शिक्षा ले।


(3) शिक्षा को उत्पादन का साधन बनाना- शैक्षिक प्रशासन शिक्षा को उत्पादन का साधन बनाने में सहायता करता है। फलस्वरूप किसी संस्था के छात्रों की  संख्या में  वृद्धि होती है।

(4) शिक्षा को सुनिश्चित योजना और सुनियोजित रूप प्रदान करना—शैक्षिक प्रशासन शिक्षा को सुनियोजित रूप प्रदान करने में सहायता करता है। यह सुनिश्चित योजना का निर्माण करता है ताकि शिक्षा समाज के अनुरूप संचालित हो सके और राज्य एवं सरकार की शिक्षा नीतियों का क्रियान्वयन सही रूप में हो सके। सुनियोजन के सन्दर्भ में आर्थर वी० मोहिल्मन (Arthur B. Mohilman) का कथन है— "शिक्षा का कार्य निश्चित संगठन अथवा सुनिश्चित योजना, विधियों, व्यक्तियों तथा आर्थिक साधनों के माध्यम से चलना चाहिए।" "Education must function through a definite organization or structure of plans,procedures, personnel, material, plant and finance. "


(5) शिक्षा की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्णय लेना एवं शिक्षा सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण तथा क्रियान्वयन करना— शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य है कि  महोदय सीयर्स ( B. Seares) का कथन है- "प्रत्येक प्रशासनिक निर्णय तथा प्रत्येक कार्य शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप लेना अत्यन्त आवश्यक है।""

(6) प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण विकसित करना—शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य छात्रों एवं कर्मचारियों क में श्रेष्ठ नागरिकता, धर्म-निरपेक्षता एवं समानता की भावना का विकास करना है। यह भावना प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण का विकास करती है तथा शिक्षण संस्थाओं के व्यक्तियों में पारम्परिक सहयोग और स्वशासन क प्रशिक्षण प्रदान करती है। शिक्षा के नवीन उद्देश्यों, मूल्यों, मान्यताओं, सिद्धान्तों आदि के साथ सामंजस्य स्थापित की करती है। इस प्रकार यह दृष्टिकोण शिक्षा सम्बन्धी नवीन उत्तरदायित्वों को स्वीकार करना तथा उनका उचित निर्वाह करने के लिए तैयार करता है ताकि जनतन्त्रीय व्यवस्था सफल हो सके। प्रजातन्त्र के सन्दर्भ में के०जी० सैयदेन महोदय का मत है— आज के युग में विद्यालय को प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार चलाया जाना चाहिए। यदि यह सिद्धान्त ही ओझल हो गया तो प्रशासन तथा निरीक्षण का महत्त्व ही समाप्त हो जाता है।"


(7) छात्रों की रुचियों एवं अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाना - शैक्षिक प्रशासन का कार्य केवल समय प विभाग चक्र बनाना ही नहीं है अपितु छात्रों की अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाना भी है। इस सन्दर्भ में पी०सी० रेन (P. C. Ren) महोदय का कथन है- "शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य छात्रों के लाभ हेतु विद्यालय बनाने, उनकी अन्तर्निहित है क्षमताओं को प्रशिक्षित करने, उनका मानसिक विकास एवं दृष्टिकोण व्यापक बनाना है। यह छात्रों को स्वयं के प्रति है समुदाय और राज्य के प्रति कर्तव्यपरायण बनाता है और वारित्रिक विकास कर स्वास्थ्य एवं शक्ति प्रदान करता है।"



March 30, 2023

Pavlov's Classical or Respondent Conditioning Theory (S-R Theories without Reinforcement)


 Pavlov's Classical or Respondent Conditioning Theory (S-R Theories without Reinforcement)


The theory of classical conditioning was developed by a Russian physiologist named Ivan P. Pavlov in the year 1904. It is defined as a process in which a neutral stimulus, by pairing with a natural stimulus, acquires all the characteristics of natural stimulus. It is called substitution learning because we substitute a neutral stimulus in place of a natural stimulus. This is also called as respondent conditioning because the subject has noting to do himself and becomes conditioned and does the things. To understand the nature of the process of conditioning, the experiments performed by Pavlov is given below:

Experiment

Pavlov kept a dog hungry for a few days and then placed it in a sound proof room which was fitted with certain mechanically controlled devices. The observer himself remained hidden from the dog but was able to view the experiment by means of a set of mirrors. Arrangement was made to give food to the dog through an automatic mechanism. But everytime before giving food a bell was rung. When the food was given and the bell was rung it was marked that there was a automatic secretion of saliva from the mouth of the dog This activity was repeated several times. After several trials the dog was given no food but the bell was rung. It was found that even the absence of food (the natural stimulus) the ringing of the bell (an artificial stimulus) caused the dog to secrete the saliva (natural response).




The above experiment thus, brings to light four essential elements of the conditioning process, i.e., unconditioned stimulus (US. natural stimulus) is food results in a natural response called the unconditioned response (UR). The conditioned stimulus (CS, artificial stimulus) elicit conditioned response (CR). It is given below.

1. UCS                     -                 UCR

   (Food)                                    (Saliva)

2. CS+ UCS             -                 UCR(Bell+ Food)                             (Saliva)

3. CS                        -                 CR   

 (Bell)                                 (Saliva)


Principles of Conditioning

1. Reinforcement: The salivary response to the bell was strengthened as a r

esult of the food being repeatedly presented just after the bell rang.

2. Extinction: If the bell was rung too many times without the food to reinforce, the response could have disappeared.

3. Generalisation: The dog tended to respond to any sound roughly similar to the ringing of the bell.

4. Discrimination: To teach the dog to distinguish the right sound and other sounds, selective reinforcement was used, that is, the dog was given food only after the sound of the bell, but never any other sound.


Educational Implications

(i) The formation of positive attitudes, fears, love. prejudices or hatred towards an object. phenomenon or event can be developed through conditioning. Thus classical conditioning can be used to develop favourable or unfavourable attitude towards learning. teacher and the school.

(ii) We should associate faults with punishment so that whenever a child feels like committing faults, he/ she anticipates the punishments. Thus rewards and punishments may be given right at the time of the act and not to be delayed.

(iii) Repetition and habit formation is to be strengthed in the process of learning.

(iv) Most of our learning is associated with the process of conditioning from the beginning. Thus the teacher is to develop the good reading habits through conditioning.

(v) The process of conditioning not only helps us in learning what is desirable but also helps in eliminating, avoiding or unlearning of undesirable habits, unhealthy attitudes, phobias through deconditioning.

March 26, 2023

Learning



Learning

Introduction


Learning occupies a very important place in our life. When the child is born, his/her mind is just like a clean slate. As soon as he/she comes in contact with his/her environment, he/she starts reacting and in this process of interaction of thehelp  individual within his/her environment, the
foundation of learning are laid down. It is only with the of the learning that the child learns many things and modifies his/her behaviour. Thus, experience, direct or indirect is found to play a dominant role in moulding and shaping the behaviour of the individual from the very beginning. The changes in behaviour brought about by experience are known as learning. The following are some of the definitions of learning.

Meaning and Definition of Learning 

There are some such tasks which a man learns in his natural and social environment, such as climbing up a tree, swimming in water, speaking a particular language, etc. These activities are called learned actions by psychologists. The process of learning these activities is called learning. Psychologist Woodworth, has defined it in this form. In his words:

The process of acquiring new knowledge and new responses is the process of learning.   
                                                                                                                              -Woodworth

Crow and Crow have taken it in a little wider form. In their words:                     

Learning is the acquisition of habits, knowledge and attitudes.                  -Crow and Crow

But most of the psychologists have defined learning as the process of behavioural change. In the words of Gates and others

Learning is the modification of behaviour through experience and training.
                                                                                                                 -Gates and others 

According to psychologist Charles E Skiner, man does not effect a change to his behaviour only for the sake of behavioural change, rather he also adjusts himself with the environment. He has defined learning on the basis of this fact. In his words:

Learning is a process of progressive behaviour adaptation.                    -C.E. Skiner

Hilgard has defined learning keeping these two factors before him. In his words: 

Learning is the process by which behaviour is originated or changed through practice or training.                         -Hilgard

According to Blair, Jones and Simpson, learning is neither behavioural change nor adjustment with the environment by behavioural change. According to them, learning should enable an individual to face the circumstances in the future, beside these two. In their words:

Any change of behaviour which is a result of experience and which causes people to face later situations differently, may be called learning.                      -Blair, Jones and Simpson

Some facts about the learning process:

1. Learning means acquisition of experience.

2. Learning means acquisition, retention and modification of experience. 

3. Learning is a change of behaviour.

4. Learning depends on practice and experience. 

5. Learning is acquisition of habit, skill and knowledge.

6. Learning is a process and not a product.

7. Learning is a continuous process and continues death.

8. Learning is purposive and goal directed.

9. Learning is a creative experience. 

10. Learning is Universal.

Nature of Learning

The nature and general characteristics of learning are as follows:

1. Learning is universal

Learning is not having any boundary. It is not restricted to any particular age, sex, race or cultures. It is applicable to all the living creatures, although, the degree of learning varies from creature to creature.

2. Learning is purposeful and goal directed

Learning is not an aimless activity. It provides clues and hints to the learner that there is something behind in learning and children learn with that hope and aspiration.

3. Learning is a continuous or never-ending process

Learning starts from birth and continues till death. It is a never ending process. At each stage the learner acquires new ideas and achieves something new, which is a continuous process.

4. Learning occurs both formal and informal situations

The child learns many things. He/She acquires new habits, skills and gains new information. Many things the child learns in a formal situation like that of a school. But a great many of these the child learns in informal situation in a family or with his/her friends when he/she is travelling, playing in an incidental manner.

5. Learning is the process of solving problems

In fact, all learning is problem solving. The child learns many thing during the course of time and try to apply all these to achieve a solution for a novel situation. Learning rules and principles help him/her to produce changes in his/her behaviour and abandonment of existing behaviour.

6. Learning is adjustment

Learning is the process of adjustment. The individual must learn to adjust himself/herself to the changes that take place around him/her. It prepares an individual for any adjustment and adaptation that may be necessary.

7. Learning Involves various dimensions of psychological and mental activities

For the effective learning both psychological, e.g.. motivation, Interest and ability and physiological bases, i.e.. nervous systems, brain, spinal cord, glands, etc., are essential. Therefore in schools children must be provided opportunity to learn by doing or learn by activity for effective learning.

8. Learning is more than academic mastery of subjects

In schools we generally think that learning is concerned with subjects and acquisition of information of facts. But learning is beyond to that and we learn different traits or characteristics, attitudes, values, interests, etc., rather than only mastery on academic subjects..

9. Learning is the function of practice

There is a saying that practice makes a man perfect. In this context practice does not mean repeating a response. It is repeated efforts of an individual to react to a situation effectively. Thus, practice help to drop out awkward, unhythmic and unnecessary responses and leads to improvement in learning.

10. Learning is a Process

Through learning modification of behaviour takes place. It constantly enlarges the child's understanding, leads to growth of abilities, perception and intellect. Though the entire learning situation is a very complex process yet the favourable environment can bring desirable and satisfactory growth on the part of the individual which is the ultimate goal of the learning.

11. Difference in learning is due to environment

12. Learning is a self-directed activity

13. Learning may be correct or incorrect

14 Learning is manifold in nature

15. Learning Involves perceptual operation and motor processes

Factors Affecting Influencing/Associated with Learning

The factors which are responsible for bringing about the betterment and improvement in learning or influence or associated with learning are given below :

(a) Maturation

Development of a child takes place because of two basic but complex processes-learning and maturation. Learning is possible only when a certain stage of maturation is reached. Psychologists have suggested that learning is effective if the activities or subject matter is at a rate commensurate with the development of the child.

(b) Motivation

Motivation is the very heart of the learning process. Motivation sets the activity which results in learning or it is the art of stimulating interest in the pupil and gives the direction to learning. Thus the teacher should apply various devices in the class room to motivate the children.

(c) The Organism and Perception

All knowledge is based on some sense perception. The loss of or defects in any sense means that knowledge and learning are impoverished in proportion to the loss. Learning is dependent on the relative perfection of the senses and the general condition of the organism. If there will be organic defects (visual, auditory, focal Infections and adenoids, etc.), then learning will be affected.

(d) Intellectual Ability or Capacity

It is a fact that various species of animals have different capacities to learn. Man is known to have greater capacity to learn then other living things. We know that human beings differ in their abilities to learn. On the basis of the Terman and Merril Intellectual classification we classify them as feeble. minded, normal or in the genius class in terms of their ability to learn. 

(e) Psychological Safety

Learning is a process of interaction in which the learner actively participates in the learning situation. Thus, the learner should be provided psychological satisfaction or safe situation so that he/she can participate freely and safely in the learning process.

(f) Readiness

If a person is ready to learn, the learning process will be more active. Thus the teacher should stimulate and develop the mental readiness in the children for effective learning in addition to seating arrangement, ventilation, light facilities and excessive noise.

(g) Drawing of a Study Schedule

A schedule is often useful in setting up regular habits of study and thus enabling the learner to make maximum use of his/her time and energy. A schedule acts as a challenge, as well as a guide and monitor. Thus drawing of a study schedule makes the learner attentive and persistent in learning.

(h) Attacking the Assignment Vigorously

Learning is an active, effortful process. There is no more effective method of study than merely to read the words of a book passively, waiting for the material somehow to register itself on the "mind". If the learner attack the learning task vigorously he/she can be a successful person than the passive group.

(i) Family Background and Socio-economic Status

Research in the field of family background and socio-economic status proved that learning achievement, attitudes, values and ability of the students are different due to urban and rural environment and socio-economic conditions of the family.

(j) Effect of Age on Learning

Learning capacity varies with age. Age accompanies mental maturation. The teacher, while constructing curriculum should keep in mind the various stage of the development of the child and adopt various methods of instructional process according to the age and grade level of the students.

(k) Environment

The progress and process of learning is very much under the influence of the environment. Therefore, the teacher should see that environment of the institution is congenial and cheerful otherwise it may affect the learning process, if it is not healthy.

(l) Fatigue and Bad Working Conditions

Fatigue is the state in which the organism is exhausted and requires rest. In a state of fatigue, the output is diminished or lowered efficiency or the quality is impaired. Fatigue may be muscular, sensory or mental. This may be due to bad seating arrangement, unhealthy atmosphere, poor environment, poor light, noise and over crowdedness, etc., affects the learning capacity. Similarly, learning is hampered by bad working conditions or distraction both at home and school.

(m) Difficulty, Meaningfulness and Length of Material

It is a fact that more difficult the learning material, the poor is the learning. Therefore, experimental studies have clearly indicated that more meaningful the material, the rapid is the learning. Being meaningful means that the material conveys some sense and has some associations and previous experience with the learner. There is little learning without meaning.


July 23, 2022

स्मृति व स्मरण (Memory & Remembering)

Utkarsh Education

स्मृति व स्मरण
Memory & Remembering


"Individuals differ in memory as they do in other abilities."-Woodworth

स्मृति का अर्थ व परिभाषा  
Meaning & Definition of Memory 

स्मृति एक मानसिक क्रिया है, स्मृति का आधार अर्जित अनुभव है, इनका पुनरुत्पादन परिस्थिति के अनुसार होता है। हमारे बहुत से मानसिक संस्कार स्मृति के माध्यम से ही होते हैं।

स्टर्ट एवं ओकडन (Sturt & Oakden,) के अनुसार :- -'स्मृति', एक जटिल शारीरिक और मानसिक प्रक्रिया है, जिसे हम थोड़े से शब्दों में इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं। जब हम किसी वस्तु को छूते, देखते, सुनते या सूंघते हैं, तब हमारे 'ज्ञान-वाहक तन्तु' (Sensory Nerves) उस अनुभव को हमारे मस्तिष्क के 'ज्ञान-केन्द्र' (Sensory Center) में पहुँचा देते हैं। 'ज्ञान-केन्द्र' में उस अनुभव की 'प्रतिमा' बन जाती है, जिसे 'छाप' (Engram) कहते हैं। यह 'छाप' वास्तव में उस अनुभव का स्मृति चिन्ह (Memory Trace) होती है, जिसके कारण मानसिक रचना के रूप में कुछ परिवर्तन हो जाता है। यह अनुभव कुछ समय तक हमारे 'चेतन मन' में रहने के बाद 'अचेतन मन' (Unconscious Mind) में चला जाता है और हम उसको भूल जाते हैं। उस अनुभव को 'अचेतन मन' में संचित रखने और 'चेतन मन' में लाने की प्रक्रिया को 'स्मृति' कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पूर्व अनुभवों को अचेतन मन में संचित रखने और आवश्यकता पड़ने पर चेतन मन में लाने की शक्ति को स्मृति कहते हैं।

1. वुडवर्थ :- जो बात पहले सीखी जा चुकी उसे स्मरण रखना ही स्मृति हैं। "Memory consists in remembering what has previously been fearned"-Woodworth 

2. रायबर्न :- अपने अनुभवों को संचित रखने और उनको प्राप्त करने के कुछ समय बाद चेतना के क्षेत्र में पुनः लाने की जो शक्ति हममें होती है, उसी को स्मृति कहते हैं।" "The power that we have to store our experiences and to bring them into the field of consciousness some time after the experiences have occurred, is termed memory."-Reyburn  

3. जेम्स" स्मृति उस घटना या तथ्य का ज्ञान है, जिसके बारे में हमने कुछ समय तक नहीं सोचा है, पर जिसके बारे में हमको यह चेतना है कि हम उसका पहले विचार या अनुभव कर चुके हैं।" "Memory is the knowledge of an event, or fact, of which, meantime we have not been thinking, with the additional consciousness that we have thought or experienced it before."-James

इन परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि (1) स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है (2) यह सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है (3) इसमें अतीत में घटी घटनाओं की कल्पना द्वारा पहचान की जाती है। (4) अतीत के अनुभवों को पुनः चेतना में लाया जाता है।

स्मृतियों के प्रकार 
Kinds of Memories

स्मृति का मुख्य कार्य है—हमें किसी पूर्व अनुभव का स्मरण कराना। इसका अभिप्राय यह हुआ कि प्रत्येक अनुभव के लिए पृथक स्मृति होनी चाहिए। इतना ही नहीं, पर जैसा कि स्टाउट ने लिखा है :-"केवल नाम के लिए पृथक स्मृति नहीं होनी चाहिए, वरन् प्रत्येक विशिष्ट नाम के लिए भी पृथक स्मृति होनी चाहिए।  "There must not only by a separate memory for names, but separate memory for each particular name."-Stout 

1. व्यक्तिगत स्मृति : Personal Memory - इस स्मृति में हम अपने अतीत के व्यक्तिगत अनुभवों को स्मरण रखते हैं। हमें यह सदैव स्मरण रहता है कि संकट के समय हमारी सहायता किसने की थी। 

2. अव्यक्तिगत स्मृति : Impersonal Memory - इस स्मृति में हम बिना व्यक्तिगत अनुभव किए बहुत-सी पिछली बातों को याद रखते हैं। हम इन अनुभवों को साधारणतः पुस्तकों से प्राप्त करते हैं। अतः ये अनुभव सब व्यक्तियों में समान होते हैं। 

3. स्थायी स्मृति Permanent Memory - इस स्मृति में हम याद की हुई बात को कभी नहीं भूलते हैं। यह स्मृति, बालकों की अपेक्षा वयस्कों में अधिक होती है।

4. तात्कालिक स्मृति : Immediate Memory - इस स्मृति में हम याद की हुई बात को तत्काल सुना देते हैं, पर हम उसको साधारणतः कुछ समय के बाद भूल जाते हैं। यह स्मृति सब व्यक्तियों में एक-सी नहीं होती है, और बालकों की अपेक्षा वयस्कों में अधिक होती है।

5. सक्रिय स्मृति: Active Memory - इस स्मृति में हमें अपने पिछले अनुभवों का पुनः स्मरण करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। वर्णनात्मक निबन्ध लिखते समय छात्रों को उससे सम्बन्धित तथ्यों का स्मरण करने के लिए प्रयास करना पड़ता है।

6. निष्क्रिय स्मृति Passive Memory- इस स्मृति में हमें अपने पिछले अनुभवो का पुनः स्मरण करने में किसी प्रकार का प्रयास नहीं करना पड़ता है। पढ़ी हुई कहानी को सुनते समय छात्रों को उसकी घटनाएँ स्वतः याद आ जाती हैं। 

7. तार्किक स्मृति : Logical Memory - इस स्मृति में हम किसी बात को भली भाँति सोच-समझकर और तर्क करके स्मरण करते हैं। इस प्रकार प्राप्त किया जाने वाला ज्ञान वास्तविक होता है।

8. यान्त्रिक (रटन्स) स्मृति Rote Memory - इस स्मृति में हम किसी तथ्य को किसी प्रश्न के उत्तर को बिना सोचे समझे रटकर स्मरण करते हैं। पहाड़ों को याद करने और रटने की साधारण विधि यही है। है

9. आदत स्मृति : Habit Memory - इस स्मृति में हम किसी कार्य को बार-बार दोहरा कर और उसे आदत का रूप देकर स्मरण करते हैं। हम उसे जितनी अधिक बार दोहराते हैं, उतनी ही अधिक उसकी स्मृति हो जाती है।

10. शारीरिक स्मृति : Physiological Memory - इस स्मृति में हम अपने शरीर के किसी अंग या अंगों द्वारा किए जाने वाले कार्य को स्मरण रखते हैं। हमें उँगलियों से टाइप करना और हारमोनियम बजाना स्मरण रहता है। 
11. इन्द्रिय अनुभव Sense Impression Memory - इस स्मृति में हम इन्द्रियों का प्रयोग करके अतीत के अनुभवों को फिर स्मरण कर सकते हैं। हम बन्द आँखों से उन वस्तुओं को छूकर, चखकर या सूंघकर बता सकते हैं, जिनको हम जानते हैं। 

12. सच्ची या शुद्ध स्मृति True or Pure Memory - इस स्मृति में हम याद किये हुए तथ्यों का स्वतंत्र रूप से वास्तविक पुनः स्मरण कर सकते हैं। हम जो कुछ याद करते हैं, उसका हमें क्रमबद्ध ज्ञान रहता है। इसीलिए, इस स्मृति को सर्वोत्तम माना जाता है।

स्मृति के अंग
Factors of Memory

स्मृति एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है। वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार, स्मृति या स्मरण को पूर्ण क्रिया के निम्नलिखित 4 अंग, पद या खंड होते हैं : -

(1) सीखना: Learning - स्मृति का पहला अंग है— सीखना। हम जिस बात को याद रखना चाहते हैं, उसको हमें सबसे पहले सीखना पड़ता है।

(2) धारण Retention - स्मृति का दूसरा अंग है-धारण। इसका है— सीखी हुई बात को मस्तिष्क में संचित रखना। हम जो बात सीखते हैं, वह कुछ समय के बा हमारे अवेतन में चली जाती है। वहाँ वह निष्क्रिय दशा में रहती है। इस दशा में वह कितने समय तक साचत रह सकती है, यह व्यक्ति की धारण शक्ति पर विशेष निर्भर रहता है। 


(3) पुनः स्मरण Recall - स्मृति का तीसरा अंग है-पुनः स्मरण इसका अर्थ है-सीखी हुई बात को अचेतन मन से चेतन मन में लाना। जो बात जितनी अच्छी तरह धारण की गई है, उतनी ही सरलता से उसका पुनः स्मरण होता है। पर ऐसा सदैव नहीं होता है। भय, चिन्ता, शीघ्रता, परेशानी आदि पुनः स्मरण में बाधा उपस्थित करते हैं। बालक भय के कारण भली-भांति स्मरण पाठ को अच्छी तरह नहीं सुना पाता है। हम जल्दी में बहुत से काम करना भूल जाते हैं।

(4) पहिचान: Recognition स्मृति का चौथा अंग है—पहिचान। इसका अर्थ - है-फिर याद आने वाली बात में किसी प्रकार की गलती न करना। उदाहरणार्थ- हम पाँच वर्ष पूर्व मोहनलाल नामक व्यक्ति से दिल्ली में मिले थे। जब हम उससे फिर मिलते हैं, तब उसके सम्बन्ध में सब बातों का ठीक-ठीक पुनःस्मरण हो जाता है। हम यह जानने में किसी प्रकार की गलती नहीं करते हैं कि वह कौन है, उसका क्या नाम है, हम उससे कब, कहाँ और क्यों मिले थे ? आदि 


अच्छी स्मृति के लक्षण 

Marks of Good Memory


जीवन में वही व्यक्ति सफलता के शिखर पर शीघ्र पहुँचता है जिसकी स्मृति अच्छी होती है। ऐसा व्यक्ति भूतकाल की घटनाओं का स्मरण कर, वर्तमान में उसका लाभ उठाकर,

भविष्य को अच्छा बनाता है। स्टाउट (Stout) के अनुसार, अच्छी स्मृति में निम्नलिखित गुण, लक्षण या विशेषताएँ होती हैं

1. शीघ्र अधिगम Quick Learning- अच्छी स्मृति का पहला गुण है-जल्दी •सीखना या याद होना। जो व्यक्ति किसी बात को शीघ्र सीख लेता है, उसकी स्मृति अच्छी समझी जाती है। 

2. उत्तम धारण-शक्ति Good Retention अच्छी स्मृति का दूसरा गुण है— सीखी हुई बात को बिना दोहराए हुए देर तक स्मरण रखना। जो व्यक्ति एक बात को जितने अधिक समय तक मस्तिष्क में धारण' रख सकता है, उसकी स्मृति उतनी ही अधिक अच्छी होती है। 

3. शीघ्र पुनः स्मरण Quick Recall अच्छी स्मृति का तीसरा गुण है— सीखी हुई बात का शीघ्र याद आना। जिस व्यक्ति को सीखी हुई बात जितनी जल्दी याद आती है, उसकी स्मृति उतनी ही अधिक अच्छी होती है।

4. शीघ्र पहचान Quick Recognition- अच्छी स्मृति का चौथा गुण है— शीघ्र पहचान। किसी बात का शीघ्र पुनःस्मरण ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि आप शीघ्र ही यह जान जायें कि आप जिस बात को स्मरण करना चाहते हैं, वही बात आपको याद आई है।

5. अनावश्यक बातों की विस्मृति : Forgetting Useless Things अच्छी स्मृति का पांचवां गुण है-अनावश्यक या व्यर्थ की बातों को भूल जाना। यदि ऐसा नहीं है, तो मस्तिष्क को व्यर्थ में बहुत-सी ऐसी बातें स्मरण रखनी पड़ती हैं, जिनकी भविष्य में कभी आवश्यकता नहीं पड़ती है। वकील मुकदमे के समय उससे सम्बन्धित सब बातों को याद रखता है, पर उसके समाप्त हो जाने पर उसमें से अनावश्यक बातों को भूल जाता है।

6. उपयोगिता Serviceableness अच्छी स्मृति का अन्तिम गुण है उपयोगिता इसका अभिप्राय यह है कि वही स्मृति अच्छी होती है, जो अवसर आने पर उपयोगी सिद्ध होती है। यदि परीक्षा देते समय बालक स्मरण की हुई सब बातों को लिखने में सफल हो जाता है, तो उसकी स्मृति उपयोगी है, अन्यथा नहीं।

स्मृति के नियम
Laws of Memory

बी. एन. झा. का मत है : "स्मृति के नियम वे दशाएँ हैं जो अनुभव के पुनःस्मरण में सहायता देती हैं।"

"Laws of memory are conditions which facilitate revival of past experience."-Jha 

झा (Jha) के इस कथन का अभिप्राय है कि हम स्मृति के नियमों को 'स्मरण में सहायता देने वाले नियम' कह सकते हैं। झा (Jha) के अनुसार, ये नियम 3 हैं; यथा :

1. आदत का नियम Law of Habit - इस नियम के अनुसार, जब हम किसी - विचार को बार-बार दोहराते हैं, तब हमारे मस्तिष्क में उसकी छाप इतनी गहरी हो जाती है कि हम में बिना विचारे उसको व्यक्त करने की आदत पड़ जाती है। उदाहरणार्थ, बहुत से लोगों को अद्धे, पौने, ढइये आदि के पहाड़े रटे रहते हैं। इनको बोलते समय उनको अपनी विचार-शक्ति का प्रयोग नहीं करना पड़ता है। बी. एन. झा (B. N. Jha, p. 282) के शब्दों में : "इस नियम को लागू करने के लिए केवल मौखिक पुनरावृत्ति बहुत काफी है। इसका सम्बन्ध यांत्रिक स्मृति (Rote Memory) से है।"

2. निरन्तरता का नियम Law of Perseveration - इस नियम के अनुसार, सीखने की प्रक्रिया में जो अनुभव विशेष रूप से स्पष्ट होते हैं, वे हमारे मस्तिष्क में कुछ समय तक निरन्तर आते रहते हैं। अतः हमें उनको स्मरण रखने के लिए किसी प्रकार का प्रयत्न नहीं करना पड़ता है। उदाहरणार्थ, किसी मधुर संगीत को सुनने या किसी दर्दनाक घटना को देखने के बाद हम लाख प्रयत्न करने पर भी उसको भूल नहीं पाते हैं। कालिन्स व ड्रेवर के शब्दों में :- "निरन्तरता का नियम तात्कालिक स्मृति में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।"

3. परस्पर सम्बन्ध का नियम : Law of Association- इस नियम को 'साहचर्य का नियम' भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार, जब हम एक अनुभव को दूसरे अनुभव से सम्बन्धित कर देते हैं तब उनमें से किसी एक का स्मरण होने पर हमें दूसरे का स्वयं ही स्मरण हो जाता है; उदाहरणार्थ, जो बालक गांधीजी के जीवन से परिचित हैं, उनको सत्याग्रह के सिद्धान्तों या 'भारत छोड़ो' आंदोलन से सरलतापूर्वक परिचित कराया जा सकता है। गाँधीजी के जीवन से इन घटनाओं का सम्बन्ध होने के कारण बालकों को एक घटना का स्मरण होने पर दूसरी घटना अपने आप याद आ जाती है। स्टर्ट एवं ओकडन (Sturt & Oakden,) के अनुसार :-"एक तथ्य और दूसरे तथ्यों में जितने अधिक सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं, उतनी ही अधिक सरलता से उस तथ्य का स्मरण होता है।"के बाद हम लाख प्रयत्न करने पर भी उसको भूल नहीं पाते हैं। कालिन्स व ड्रेवर के शब्दों में :- "निरन्तरता का नियम तात्कालिक स्मृति में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।"

4. विचार - साहचर्य का सिद्धान्त : Principle of Association of Ideas - विचार- साहचर्य' का सिद्धान्त अति प्रसिद्ध है। इसका अर्थ है-दो या अधिक विचारों का इस प्रकार सम्बन्ध कि उनमें से एक की याद आने पर दूसरे की स्वयं याद आना। उदाहरणार्थ, दूध फैल जाने पर बालक रोता है। वह पहले कभी दूध फैला चुका है जिसकी वजह से उस पर डाँट पड़ चुकी है और वह रो चुका है। अतः जब दुबारा दूध फैलता है, तब उसे डाँट पड़ने की अपने-आप याद आ जाती है और वह रोने लगता है। इस सिद्धान्त का स्पष्टीकरण करते हुए भाटिया ने लिखा है :-"विचार-साहचर्य एक प्रसिद्ध सिद्धान्त है, जिसके अनुसार एक विचार किसी दूसरे विचार या विचारों का, जिनका हम पहले अनुभव कर चुके हैं, स्मरण दिलाता है।"

स्मरण करने की विधियाँ
Methods of Memorizing 

मनोवैज्ञानिकों ने स्मरण करने की ऐसी अनेक विधियों की खोज की है, जिनका प्रयोग करने से समय की बचत होती है। इनमें से अधिक महत्त्वपूर्ण निम्नांकित है :

1. पूर्ण विधि : Whole Method - इस विधि में याद किए जाने वाले पूरे पाठ को आरम्भ से अन्त तक बार-बार पढ़ा जाता है। यह विधि केवल छोटे और सरल पाठों या कविताओं के ही लिए उपयुक्त है।

2. खण्ड विधि : Part Method - इस विधि में याद किए जाने वाले पाठ को कई खण्डों या भागों में बाँट दिया जाता है। इसके बाद उन खण्डों को एक-एक करके याद किया जाता है। इस विधि का दोष यह है कि आगे के खण्ड याद होते जाते हैं और पीछे के भूलते जाते हैं। 

3. मिश्रित विधि : Mixed Method - इस विधि में पूर्ण और खण्ड विधियों का साथ-साथ प्रयोग किया जाता है। इसमें पहले पूरे पाठ को आरम्भ से अन्त तक पढ़ा जाता है। फिर उसे खण्डों में बाँटकर, उनको याद किया जाता है। अन्त में, पूरे पाठ को आरम्भ से अन्त तक फिर पढ़ा जाता है। यह विधि कुछ सीमा तक पूर्ण और खंड विधियों से अच्छी है।

4. प्रगतिशील विधि : Progressive Method - इस विधि में पाठ को अनेक खण्डों में विभाजित कर लिया जाता है। सर्वप्रथम, पहले खण्ड को याद किया जाता है, उसके बाद पहले और दूसरे खण्ड को साथ-साथ याद किया जाता है। फिर पहले, दूसरे और तीसरे खण्ड को याद किया जाता है। इसी प्रकार, जैसे-जैसे स्मरण करने के कार्य में प्रगति होती जाती है, वैसे-वैसे एक नया खण्ड जोड़ दिया जाता है। इस विधि का दोष यह है कि इसमें पहला खण्ड सबसे अधिक स्मरण किया जाता है और उसके बाद के क्रमशः कम ।

5. अन्तरयुक्त विधि : Spaced Method - इस विधि में पाठ को थोड़े-थोड़े अन्तर या अनय के बाद याद किया जाता है। यह अन्तर एक मिनट का भी हो सकता है और चौबीस घण्टे का भी। यह विधि 'स्थायी स्मृति' (Permanent Memory) के लिए अति उत्तम है। वुडवर्थ का मत है : अन्तरयुक्त विधि से स्मरण करने में सर्वोनम परिणाम होता है ।

6. अन्तरहीन विधि :  Unspaced Method - इस विधि में पाठ को स्मरण करने के के लिए समय में अन्तर नहीं किया जाता है। यह विधि 'अन्तरयुक्त विधि' की उल्टी है और उससे अधिक प्रभावशाली है।

7. सक्रिय विधि : Active Method - इस विधि में स्मरण किये जाने वाले पाठ को बोल-बोलकर याद किया जाता है। यह विधि छोटे बच्चों के लिए अच्छी है, क्योंकि इससे हैं उनका उच्चारण ठीक हो जाता है।

8. निष्क्रिय विधि : Passive Method - यह विधि, 'सक्रिय विधि' की उल्टी है। इसमें स्मरण किए जाने वाले पाठ को बिना बोले मन-ही-मन याद किया जाता है। यह विधि अधिक आयु वाले बालकों के लिए अच्छी है।

9. स्वर विधि : Recitation Method - इस विधि में याद किए जाने वाले पाठ को लय से पढ़ा जाता है। यह विधि छोटे बच्चों के लिए उपयोगी है, क्योंकि उनको गा-गाकर पढ़ने में आनन्द आता है।

10. रटने की विधि : Method of Cramming - इस विधि में पूरे पाठ को रट लिया जाता है। इस विधि का दोष बताते हुए जेम्स ने लिखा है :- इस विधि से जो बातें स्मरण कर ली जाती हैं, वे अधिकांश रूप में शीघ्र ही विस्मृत हो जाती हैं।"

11. निरीक्षण विधि : Method of Observing - इस विधि में याद किए जाने वाले पाठ का पहले भली प्रकार निरीक्षण या अवलोकन कर लिया जाता है। यदि बालक को संख्याओं की कोई सूची याद करनी है, तो वह पहले इस बात का निरीक्षण कर ले कि ये निश्चित क्रम में हैं। इस विधि के उचित प्रयोग के विषय में वुडवर्थ  ने लिखा है :- "पाठ को एक बार पढ़ने के बाद उसकी रूपरेखा को और दूसरी कर उसकी विषय-वस्तु को विस्तार से याद करना चाहिए।"

12. क्रिया-विधि : Method of Learning by Doing- इस विधि में स्मरण की जाने वाली बात को साथ-साथ किया भी जाता है। यह विधि बालक की अनेक ज्ञानेन्द्रियों कोएक साथ सक्रिय रखती है। अतः उसे पाठ सरलता और शीघ्रता से स्मरण हो जाता है।

13. विचार- साहचर्य की विधि : Method of Association of Ideas - इस विधि में स्मरण की जाने वाली बातों का ज्ञात बातों से भिन्न प्रकार से सम्बन्ध स्थापित कर लिया जाता है। ऐसा करने से स्मरण शीघ्रता से होता है और स्मरण की हुई बात बहुत समय तक याद रहती है। जेम्स  का मत है :-"विचार, साहचर्य उत्तम चितर द्वारा उत्तम स्मरण की विधि है।"

14. साभिप्राय स्मरण विधि : Method of Intentional Memorizing - पाठ को याद करने के लिए चाहे जिस विधि का प्रयोग किया जाये, पर यदि बालक उसको याद करने संकल्प या निश्चय नहीं करता है, तो उसको पूर्ण सफलता नहीं मिलती है। वुडवर्थ ने ठीक है लिखा है :-"यदि कोई भी बात याद की जानी है, तो याद करने का निश्वय आवश्यक है। The will to learn is necessary, if any learning is to accomplished."--Woodworth 

June 13, 2022

Intelligence




Intelligence

Introduction

Psychologists agreed that they do not know what intelligence is? They can only observe how it work in terms of behaviours. The assumption is that behaviour reflects intelligence. The present basis of study has yielded such important and usable information about man's behaviour as to be extremely helpful to teachers. Intelligence is nothing but intelligent behaviour. Intelligence is nothing but intelligent behaviours.

"An intelligent behaviour is that which is above the norms of a particular group." It is above the average behaviour. 

A child of two years old behaves above his age group children, he is known as intelligent boy. The intelligence is an inferred phenomenon from behaviour. This meaning of intelligence should be accepted and preserved at least until we have a better construct or more definite knowledge.



Definition/Meaning of Intelligence

The term intelligence means 'Intellect' and 'under standing'. Generally speaking. 'alertness' with regards to the actual situation of life is an index of intelligence. From the layman point of view intelligence means common sense or application part of knowledge. Intelligence is generally guessed from the way a person appears to understand a fact or a group of facts, and the manner in which he/she responds to those facts. But in ancient India our great rishis called it viveka or 'Vivekatmaka Budhl'.

As far as possible the definitions of intelligence is grouped under the following categories. These are as follows:

1. Intelligence Means Ability to Adjust

The following psychologists are strong supporters of this category of definition.

(a) Stern: Intelligence is the general capacity of an individual consciously to adjust his thinking to new requirements. It is the general mental adaptability to new problems and conditions of life or the ability to adjust oneself to a new situation.


(b) Ross: Intelligence means conscious adaptation to new situation.


(c) Burt: Intelligence is the capacity of flexible adjustment.


(d)Colvin: Intelligence as ability to adjust to environment.


II. Intelligence Means Ability to Learn

The second group of psychologists emphasise on ability to learn. The following are the psychologists who support the above definitions:

(a) Woodworth has defined Intelligence 'as intellect put to use'. It is the use of intellectual abilities for handling a situation or accomplishing any task. It is the capacity to acquire capacity or it is an indicator of the ability to cope successfully with novel situations.

(b) Thorndike has defined Intelligence as the power of making good responses from the point of view of truth and fact or it may be defined as the ability to make profitable use of past experiences or Intelligence is the ability of learning. 


Intelligence Means Ability to Carry on Abstract Thinking

The following are the psychologists who strongly advocated the meaning of intelligence as follows:

(a) Terman: He defined Intelligence as the ability to carry on abstract thinking or the ability to think abstractly. 

(b) Binet: Intelligence is a capacity to think well, to judge well and to be self-critical. 


Comprehensive and Modern Definition of Intelligence

In view of the lacunae in the various definitions, the following psychologists have suggested the comprehensive and global ideas on intelligence,

(a) David Wechsler defined Intelligence as the aggregate or global capacity of an individual to act purposefully. to think rationally and to deal effectively with his environment. In his definition he has given emphasis on three aspects, i.e., purposeful activities, rational thinking and effective dealings of an individual to consider intelligence.

(b) Stoddard defined Intelligence is the ability to undertake activities that are characterized by difficulty, complexity, abstractness, economy, adaptiveness to a goal, social value, emergence of originals and to maintain such activities under the condition that demand a concentration of energy, and a resistance to emotional forces. If we analyse the attributes of intelligence given by Stoddard the nature of intelligence will be very clear.


Characteristics of Intelligence 

On the basis of above definitions, the following characteristics can be enumerated.

1. It is an ability of abstract thinking

2. It is a capacity to adjust in new situation. 

3. It is a general mental adaptability

4. It is an ability to relate diverse situations. 

5. It is the capacity to acquire capacities and originds.

6. It is the innate disposition and flexibility of mind. 

7. It is a concentration of energy and global capacity.

8. It is a resistance to emotional forces.

9. It is a power of self-criticism or auto-criticism. 

10. It is an inborn capacity to perceive the right thing at the right place and maintain definite direction. 

11. It is an ability to reduce relationship.

12. It is an ability to learn from experience. 

13. It is an ability to carry on higher process of thoughts.

14. It is an ability of verbal and numbers reasoning. 

15. It involves inductive and deductive reasoning or thinking.

Types of Intelligence

Basically the term intelligence has been classified into three groups. They are as follows:

(a) The Abstract Intelligence

Abstract intelligence refers to the ability to understand and deal with symbols-words, numbers, formulas and diagrams. It means the capacity to solve problems presented in the above form. This type of intelligence can be predicted by testing level of aspiration, capacity to do various types of work and his special interest and speed of work. Generally the lawyers, physicians, literary men, students, statesmen, businessmen and professionals possess abstract intelligence on high degree.

(b) The Concrete/Mechanical/Motor Intelligence

This intelligence refers to the ability to deal readily and effectively with Machines and Mechanical contrivances or the ability of an individual to concrete situations and to react to them adequately. The motor intelligence is more related to physical education, i.e., the activities of games and sports. Thus the person who is engaged in the work of engineering, highly trained persons of mechanic and industry belong to this group of intellectuals.

(c) The Social Intelligence

The person who is able to deal effectively with the people and maintain good social situations possess more social intelligence. These people make friendship easily and understand human relations. The people like salesman, diplomat and politician, etc., belong to this category.

Though there is no specific demarcation of distributing intelligence yet it can be said that some may be more in abstract and others may be mechanical and social intelligence. If a person is very good in abstract intelligence may not be equally fruitful in mechanical work but may be better than average and vice versa.

May 22, 2022

Developmental Tasks and Need of Guidance and Counseling in Adolescence { Part 5 }

 



Developmental Tasks of Adolescents


The concept of developmental task was developed by an American Psychologist, Robert Havinghurst on the basis of his extensive researches and proposed a list of development tasks right from infancy to old age. He defined "a developmental task is a task which arises at or about a certain period in the life of the individual, successful achievement of which leads to happiness and success with later tasks while failure leads to unhappiness in the individual, disapproval by the society and difficulty with later tasks". Thus it can be said that in each stage of development there are certain tasks or activities, skills, understanding and attitudes that must be met before a person can move on to a higher level of development.


The developmental tasks of adolescence are given below:

I. Achieving new and more mature relationships with age-mates of both sexes

When a child enters adolescence, the society expects that he should be able to establish healthy relationship with the members of both the sexes. But generally, we do not permit free mixing of adolescent boys and girls in our society. Therefore it can be suggested that one should not always think negatively rather an adolescent should be allowed to communicate freely the quality of social life and occupational choice with his/her peer group for better social dealings.

II. Achieving a masculine or feminine role

During this transitional period, adolescents should be provided guidance and counselling as regards to their sex role in the society which they are going to perform as man or woman.

III. Accepting one's physique and using the body effectively

During adolescence, physical and physiological changes occur at a very rapid speed. Thus he/she must be guided properly so that they can make proper use of their physical strength for the benefits of the society.

IV. Achieving emotional Independence of parents and other adults

Sometimes it is noticed that parents treat their adolescent son and daughter as child and behave accordingly. But due to mature development, adolescents rebel against the rigid attitude of parents. So, it is suggested that they may be guided properly and parents should understand their problems and difficulties sympathetically.

V. Preparing for family and marriage life

During this period an adolescent needs proper education regarding the preparation for family and marriage life otherwise successful achievement of life may be hindered.

VI. Preparation for an economic career

During adolescence organization and planning of future life can be strengthened in such a way that one can enter a career of his/her own choice and can justify it. Thus guidance must be provided in the educational institution so that development of courage and confidence can be strengthened among the adolescents.

VII. Acquiring a set of values and an ethical system as a guide to behaviour

What should be the values and ethical system (religion) that one will eventually adopt in life depends upon the society and the system where he/she lives in. Therefore, varieties of values and beliefs of the society must be put forth before the adolescent to facilitate to draw conclusions according to the demands of the society.

VII. Desire to achieve socially responsible behaviour

The main objective of this task is to include the development of social ideology which allows the adolescent to be a responsible participant in the development and progress of his/her community and country. Therefore it is said that to be a responsible adult and a responsible citizen demands that one takes into account of the values of society in one's personal behaviour.

・ Role of the Teacher and Educational Importance of the Adolescence Period

(1) Adolescents worry a great deal about the physiological changes that occur in them. Thus honest replies to their queries could help to eliminate much of the fear and anxiety that the adolescent experiences.

(2) It is a known fact that teenaged boys and girls are growing into adult men and women. Therefore, school library and work rooms must be adequately equipped in order to cater to the needs of the adolescent.

(3) Adolescence is a critical period. They feel happy if they are asked to help or to give their ideas and resent adult attempts to impose views on them. Hence parents should discuss the matter with them and leave them free to accept or reject the view.

(4) Adolescents demand independence. Hence the teacher must provide opportunities for self-study and freedom to select their and hobbies in their day-to-day life. 

(5) Teachers must be patient and tactful in all their dealings with adolescents. Sincerity and a friendly attitude help the adolescent from destructive tendencies in them.

(6) Teachers should not adopt double standards while dealing with adolescents. They should set a good example of good conduct and display his/her own emotional stability. 

(7) The teacher should make a thorough understanding of the general characteristics of the period of adolescence, its stress and strains, urges, charges and problems so that proper information about sex and vocational guidance can be provided.

(8) If the parents and teachers expect respect and trust from the adolescent they must first give it on the basis of clear and correct information to them.

(9) Teacher should redirect the energies of the adolescents into fruitful channels through games, sports and other creative recreational activities. Even some programme of moral and religious teaching should be organised in the school.

(10) Adolescents try to establish link with their peer groups to maintain social relationship. Hence the adolescent can be given scope in this direction by allowing them to participate and take leadership in different activities organised in the school.

(11) Since the adolescent is attaining intellectual maturity the school curriculum must be varied to meet his intellectual curiosity. Hence suitable books on adventures, travels and biography must be provided to them so that good reading habits and noble ideas can be developed in them.

(12) Parent-teacher associations should be strengthened and joint effc. ts should be made to understand the problems of an adolescent and necessary remedies should be provided.

Guidance and Counselling of Adolescents 

・  Meaning and Definition of Guidance

By guidance is commonly meant to tell another person the correct method of doing something; such as parental guidance to children on how to do a task. But in the field of psychology, this term has its own technical meaning. By guidance in psychology means to make a man aware of his ability and capability to solve his problem and thus to prepare him to solve his problem himself.

 In the words of Honarins:

Guiding means helping John to see through himself in order that he may see himself through. 

We can define it more clearly in the following way :

Guidance is that process by which a person is acquainted with his ability and capability related to his problem by a specialist and is assisted in solving that problem by his ability and capability himself and to adjust with himself, others and his circumstances in proper manner.

・  Meaning and Definition of Counselling

In guidance a person is acquainted with his psychophysical ability and capability in order to enable him to solve his problem and in counseling, the counsellor assists an individual to use his ability and capability. Thus, counselling is held after guidance. Another distinction between the two is that guidance can be given individually as well as collectively, but counselling is always individual. At present, counselling is given after guidance, so now these two terms are used together as guidance and counselling.

・  Need of Guidance and Counselling to Adolescents 

Though guidance and counselling are needed by everybody, yet it is especially needed by adolescents. During adolescence, adolescents undergo rapid physical, mental, emotional and social changes, due to which many problems are confronted by them, and if these problems are not resolved immediately, they may create many mental illnesses and their conduct may become otherwise. This is the stage of formation and deformation. So guidance is much needed during this stage. are possibilities of adolescents treading a bad path in the absence o proper guidance. We have already talked at different places of giving proper nutrition, sports and exercise facilities, participation in literary and cultural activities, sex education, and treating them respectfully and meeting their needs so as to satisfy them. But all this cannot solve all their problems properly, they still require proper guidance and counselling.

The problems before adolescents pertaining to their education are some of them do not like to study, some of them are not interested in studying a particular subject, and some of them face a specific problem in understanding a particular subject, etc. This is the stage when they complete their general education and enter the field of specific education. Now the problem before them is whether to take admission in art. science, commerce or vocational stream, and to select which subjects, activities and vocations in that stream. Guidance is needed for the solution of all these problems.

The third gravest problem before adolescents is about their profession. In the vocational stream, problems relating to the selection of vocation are specific. Each adolescent wants to select such a vocation which is considered to be prestigious in the society and which has good earning Guidance helps them to select a suitable vocation according to their psychophysical ability and capability. Thus, adolescents are in utmost need of guidance and counselling. Guidance and Counselling of Adolescents

The field of guidance and counselling of adolescents can be divided into three parts general, educational and vocational. We shall discuss in brief the scope and working system of these three types of guidance and counselling.

1. General Guidance and Counselling: In the field of general guidance and counselling are included the problems of adolescents related to their physical health, sex, mental health, emotional condition, adjustment, selection of values, etc. These problems are individual, so the guidance provided for resolution of these problems is called individual guidance also. The following steps are followed in providing this type of guidance and counselling:

(i) Understanding the Problem: At first the guide understands the particular problem of the adolescent and determines how far he has to assist him in solving of the problem.

(ii) Understanding the Causes of the Problem: After having given a certain form to the problem, he finds out the causes of the problem. For this, he makes use of interview, data collection and psychological tests etc. as may be needed.

(iii) Understanding the Potentialities and Abilities: Having understood the causes of the problem, the guide finds out the psychophysical potentialities and abilities of the adolescent. For it, he makes use of intelligence test, aptitude test and interest test.

(iv) Guidance: Now the guide ask the adolescent to solve his problem with this help of his psychophysical potentiality and ability; the adolescent follows this advice to solve the problem himself.

(v) Counselling: Counselling is provided after guidance if the particular adolescent is assisted in solving his problem.

(vi) Follow Up Programme : This is the final step of guidance. On this step, the guide ascertains how far has the adolescent solved the problem on the basis of the guidance and counselling. If he has not solved his problem properly, then its causes are analyzed and the whole process is repeated again.

2. Educational Guidance and Counselling: In the field of educational guidance and counselling, problems related to education are included, such as disinterest in studies, difficulty in understanding a subject, selection of a particular stream for further studies, selection of subjects in a particular stream, etc. The steps of educational guidance and counselling are the same which are those of general guidance, but there is a difference in their form. Educational guidance is given individually and collectively, both. Counselling can be given only individually, so it is given individually.

(i) Understanding the Educational Problem: At first the guide understands the particular problem of the adolescent or adolescent-group and provides him/it a definite form and decides its scope.

(ii) Understanding the Causes of the Problem: When educational guidance is given before the problem has not manifested itself, then there is no need to find out its causes, but when solution is given after the problem has arisen, then its causes are found out. A guide uses interview method, data collection method and psychological tests to find out the causes, as may be needed.

(iii) Understanding the Potentialities and Abilities : Before giving any type of guidance, it is necessary to understand the psychophysical potentialities and abilities of the adolescent or adolescent-group. Guidance is given on that basis. For it, a guide uses psychological tests intelligence test, interest test and aptitude test, etc. 

(iv) Guidance: The solution to the problem is told depending form of the problem and psychophysical potentialities and abilities of the adolescent or adolescent-group. This task is performed by the guide very carefully.

(v) Counselling: After guidance, the adolescents are assisted individually. The counsellor assists an individual to do his work himself needed.

(vi) Follow Up Programme: After guidance, a guide sees how much an adolescent is taking advantage of the guidance. Re-guidance is arranged on the basis of this evaluation of needed.

3. Vocational Guidance and Counselling: The scope of vocational guidance includes the problems of adolescents relating to their vocation. The first problem of adolescents pertaining to vocation is - selection of a vocation for study and training. Having selected a vocation, the problems pertaining to its study and training are faced. These problems are of different types-difficulty in understanding the theoretical aspect, difficulty in practical training, difficulty in the training institution, anxiety relating to future placement, etc. This guidance is also given individually and collectively both and is given before a problem arises or after it has manifested itself. The steps of guidance are the same, but their form is a little different:

(i) Understanding the Problem: At first the guide understands the particular problem of the adolescent or adolescent-group as pertaining to the vocation, and then ascertains its form and determines its scope.

(ii) Understanding the Causes of the Problem: When vocational = guidance is given before the problem has arisen, then only its fundamental factors are considered, and when a solution is given after the problem has manifested itself, then its causes are found out. A guide uses observation method, interview method, data collection method, =psychological tests, etc. in order to find out the causes. Intelligence tests. aptitude tests, interest tests, attitude tests are important psychological tests, and the most important among them are the aptitude tests.

(iii) Understanding the Potentialities and Abilities: Whether guidance is given before the problem has arisen or after it, it is given on the basis of psychophysical potentialities and abilities of the adolescent or adolescent-group, so they are measured first. For it, a guide makes use of psychological tests intelligence tests, aptitude tests, interest tests =of and attitude tests.

(iv) Guidance: The solution to the problem is told to the adolescent or adolescent-group depending on the form of the problem and their psychophysical potentialities and abilities. This task can be performed only by specialists.

(v) Counselling: A counsellor assists the adolescent or an individual in order to eliminate any difficulties arising in the way of problem-solving. This assistance is given individually.

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