अर्थ (Meaning) -
प्रकृतिवाद प्रकृति को मूल तत्त्व मानता है। यह अलौकिक और पारलौकिक को न मानकर प्रकृति को ही प्रमुख मानता है। इस दर्शन के अनुसार प्रत्येक वस्तु प्रकृति से जन्म लेती है और फिर उसी में विलीन हो जाती है। प्रकृतिवाद के अनुसार प्राकृतिक पदार्थ एवं क्रियाएँ ही सत्य हैं। प्रकृतिवादियों के अनुसार मनुष्य की अपनी एक प्रकृति होती है जो पूर्ण रूप से निर्मल होती है। इस प्रकृति के अनुकूल आचरण करने में उसे सुख तथा सन्तोष प्राप्त होता है तथा प्रतिकूल आचरण करने पर उसे दुःख और असन्तोष का अनुभव होता है। अतः उनके अनुसार मनुष्य को सदेव अपनी प्रकृति के अनुकूल ही आचरण करना चाहिये। दूसरे शब्दों में, प्रकृतिवादी मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल आचरण करने की स्वतन्त्रता देते हैं तथा वे उसे किन्हीं सामाजिक बन्धनों या नियमों में जकड़कर रखना नहीं चाहते। उनका मत है कि मनुष्य उन्हीं कार्यों को करेगा जिन्हें करने में उसे सुख की प्राप्ति होगी तथा जिन्हें करने से उसे दुःख अनुभव होगा, उन्हें वह नहीं करना चाहेगा। इस प्रकार प्रकृतिवादी नैतिकता के पक्षधर हैं।
प्रकृतिवाद के समर्थकों में अरस्तू, काम्टे, हॉब्स, डार्विन, हरबर्ट स्पेन्सर, हक्सले, बेकन, लैमार्क तथा रूसो आदि दार्शनिकों के नाम मुख्य हैं।
प्रकृतिवाद की मुख्य परिभाषाएँ निम्न हैं-
1. थॉमस तथा लैंग (Thomas and Lang) - "प्रकृतिवाद, आदर्शवाद के विपरीत मन को पदार्थ के अधीन मानता है तथा यह विश्वास करता है कि अन्तिम वास्तविकता भौतिक है, आध्यात्मिक नहीं।"
"Naturalism is opposed to Idealism, subordinates mind to matter and holds that ultimate reality is material and not spiritual."
2. मॉरले (Morley) — "प्रकृतिवाद का सिद्धान्त है— सबसे प्रेम करना, मानव प्रकृति में पूर्ण विश्वास करना, न्याय की इच्छा करना तथा संतोष के साथ काम करना ताकि दूसरों का उपकार हो सके।"
3. एनान (Anon) — "प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जो मनुष्य तथा जगत को भौतिक, यान्त्रिक तथा जैविक दृष्टि से देखती है, यौगिक अथवा आभास की दृष्टि से नहीं।"
"Naturalism is a system that views mom and universe as physical, mechanical and biological and not yogical or dehypnotical."
4. जॉयस (Joyce)- "प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिसकी प्रमुख विशेषता आध्यात्मिकता को अस्वीकार करना है अथवा प्रकृति एवं मनुष्य के दार्शनिक चिन्तन में उन बातों को स्थान देना है जो हमारे अनुभवों से परे नहीं है।
"Naturalism is a system whose salient characteristic is the exclusion of whatever is spiritual or indeed whatever is transcendental experience from our philosophy of nature and man."
प्रकृतिवाद के रूप
(Forms of Naturalism)
प्रकृतिवाद के तीन प्रमुख रूप -
1. पदार्थवादी प्रकृतिवाद (Physical Naturalism) - इस वाद के अनुसार मानव प्रकृति द्वारा पूर्ण रूप से नियन्त्रित रहता है। इस वाद के अन्तर्गत भौतिक संसार तथा मानव के बाहरी वातावरण का अध्ययन किया जाता है। यह मानव अनुभवों की व्याख्या प्राकृतिक नियमों द्वारा करता है |
2. यन्त्रवादी प्रकृतिवाद (Mechanical Naturalism) — इस वाद के अनुसार सम्पूर्ण विश्व एक प्राण-विहीन तंत्र के समान है जिसका निर्माण पदार्थ तथा गति से हुआ है। यह वाद मनुष्य के चेतन तत्त्व की उपेक्षा करता है तथा मनुष्य को इस बड़े यन्त्र का एक पुर्जा मात्र मानता है।
3. जैविक प्रकृतिवाद (Biological Naturalism) - यह वाद डार्विन के विकासवादी सिद्धान्त पर आधारित है, जिसके अनुसार मानव का विकास पशुओं से हुआ है तथा यह इस विकास प्रक्रिया का सर्वोच्च रूप है। जीवन के लिये संघर्ष' तथा 'Survival of the Fittest' इसके दो प्रमुख सिद्धान्त है।
प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषतायें
(Its Characteristics)
प्रकृतिवादी शिक्षा की निम्नलिखित विशेषतायें है—
1. प्रकृति की ओर लौटो (Back to Nature ) — प्रकृतिवादियों का विश्वास है कि का स्वाभाविक विकास केवल प्राकृतिक वातावरण में ही हो सकता है न कि विद्यालय के कृत्रिम वातावरण में। उनके अनुसार प्रकृति ही बालक की महान शिक्षक है।
2. पुस्तकीय शिक्षा का विरोध (Opposition of Bookish Knowledge)- प्रकृतिवादियों ने पुस्तकीय शिक्षा का विरोध किया है। उनके अनुसार प्रचलित शिक्षा व्यवस्था में पुस्तकों को रट लेते हैं जिससे उनका समय नष्ट होता है, मस्तिष्क कुण्ठित हो जाता है तथा उनको जन्मजात शक्तियां स्वाभाविक रूप से विकसित नहीं हो पातीं। प्रकृतिवादियों के अनुसार मात्र पुस्तकें पढ़ा देना ही शिक्षा का कार्य नहीं है अपितु छात्र को स्वयं उसकी प्रकृति के अनुसार स्वयं विकसित होने के अवसर उपलब्ध कराये जाये।
3. निषेधात्मक शिक्षा (Negative Education)—निषेधात्मक शिक्षा का अर्थ गलतियों में बचाने वाली शिक्षा से है। यह शिक्षा प्रकृति ही प्रदान कर सकती है। गलती करने पर प्रकृति बालक को दण्ड देवी है जैसे—आग को छूने पर बालक का हाथ जल जाता है तथा यह फिर कभी आग को नहीं छूता।
4. बाल केन्द्रित शिक्षा (Child-centerd Education)-प्रकृतिवादीओ ने बालक को शिक्षा का केन्द्र बिन्दु माना। उन्होंने कहा कि बालक का अपना अस्तित्व होता है, उसकी प्रकृति साधु के समान होती है, उसकी इन्द्रियों का दमन नहीं किया जाना चाहिये। बालक की आयु के अनुसार ही उसकी शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिये। अन्ततः शिक्षा बालक के लिये है, बालक शिक्षा के लिये नहीं।
5. स्वतन्त्रता (Freedom)- प्रकृतिवादी बालक की स्वतन्त्रता पर बल देता है। बालक को अपना विकास करने के लिये अपने भावों एवं विचारों को व्यक्त करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिये। उसके समक्ष ऐसा स्वतन्त्र वातावरण प्रस्तुत किया जाना चाहिये ताकि उसका विकास स्वाभाविक रूप से हो सके। रूसो कहता है-मनुष्य पैदा तो स्वतन्त्र हुआ है लेकिन वह हमेशा दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहता है।
6. प्रगतिशीलता (Progressiveness) – प्रकृतिवादी बालक को एक गत्यात्मक प्राणी मानता है। यह प्राणी लगातार विकसित होता रहता है। शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा प्रोविस्था ये बालक के विकास की चार अवस्थायें हैं। बालक की शिक्षा की व्यवस्था इन्हीं चार अवस्थाओं के अनुसार की जानी चाहिये। उनके अनुसार बालक से मनुष्य जैसा आचरण करने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये। रूसो कहता है, "प्रकृति चाहती है कि बालक मनुष्य बनने से पूर्व बालक ही रहे। यदि हम इस क्रम को बदलेंगे तो अगेते फल उत्पन्न करेंगे जिनमें न तो पकावट ही होगी और न ही गन्ध।
7. बालक की इन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल (Training of Organs)- प्रकृतिवादी इन्द्रियों को ज्ञान का द्वार मानते हैं। ये कहते हैं कि ज्ञान को बेह्तर और प्रभावी बनाने के लिये बालक की इन्द्रियों का समुचित प्रशिक्षण आवश्यक है |
प्रकृतिवाद एवं शिक्षा
(Naturalism and Education)
प्रकृतिवाद एवं शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)
प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. वातावरण से अनुकूलन (Adjustment to Environment ) - प्रकृतिवादियों के अनुसार बालक में कुछ ऐसी जन्मजात शक्तियाँ होती हैं जिनके आधार पर वह अपने वातावरण के साथ अनुकूलन कर सकता है। अतः शिक्षा का उद्देश्य बालक में ऐसी शक्तियों का विकास करना है जो उसे अपने वातावरण के साथ अनुकूलन करने के योग्य बना सके।
2. बालक को संघर्षशील बनाना (To Prepare for Struggle) - डार्विन के अनुसार इस संसार में अपने अस्तित्त्व की रक्षा के लिये प्रत्येक प्राणी को निरन्तर संघर्ष करना पड़ता है, जो इसमें समर्थ होता है, उसी को विजय प्राप्त होती है। अतः शिक्षा का उद्देश्य बालक को संघर्षमय परिस्थितियों का सामना करने के योग्य बनाया जाना चाहिये।
3. बालक के जीवन को सुखी बनाना (To make the child Happy ) - प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक में इस प्रकार की योग्यता एवं क्षमता का विकास करना है ताकि अपने वर्तमान जीवन को सुख एवं आनन्द के साथ व्यतीत कर सके। प्रकृतिवादी केवल वर्तमान की चिन्ता करते हैं, भविष्य की नहीं।
4. व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना (All round Development )- प्रकृतिवाद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में कुछ रुचियाँ, योग्यताएं एवं क्षमतायें होती हैं। ये सभी शक्ति होती हैं। शिक्षा का उद्देश्य इन क्षमताओं को ठीक से विकसित करना है। दूसरे शब्दों में हम कहते हैं कि शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है।
5. मूल प्रवृत्तियों का शोधन (Sublimation of Instincts ) - प्रकृतिवादियों के अनुसार व्यक्ति बाल्यावस्था में अपनी मूल प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर कार्य करता है। इसी क्रिया के फल व्यक्ति सुख एवं दुःख का अनुभव करता है। दुःखदायक क्रिया को यह पुनः नहीं करता। अतः शिक्षा उद्देश्य बालक की मूल प्रवृत्तियों में सुधार लाकर उन्हें समाजोपयोगी बनाना है।
6. मानव एक कुशल यन्त्र (Man as a Machine )—प्रकृतिवादियों के अनुसार विश्व विराट यन्त्र है तथा मानव इसका एक भाग है। इन प्रकृतिवादियों का मानना है कि शिक्षा का मानव व्यवहार को इस प्रकार विकसित करना है ताकि वह एक कुशल यन्त्र की भाँति कार्य कर साथ ही, प्रकृतिवादी यह भी मानते हैं कि प्राणी स्वयं में पूर्ण भी है।
7. सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करना (To Preserve Cultural Heritage) - प्रकृतिवादियों के अनुसार एक जाति द्वारा अर्जित की गई सभ्यता एवं संस्कृति वंशगत होती रहती है। शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार विकसित की गई सभ्यता एवं संस्कृति में निरन्तर विकास करना है।
प्रकृतिवाद एवं पाठ्यक्रम (Curriculum ) -
प्रकृतिवाद के अनुसार पाठ्यक्रम निम्नलिखि सिद्धान्तों पर आधारित होना चाहिये -
1. पाठ्यक्रम में विषयों का चयन बालक की प्रकृति, योग्यता, क्षमता एवं मूल प्रवृत्तियों में रखकर किया जाना चाहिये।
2. ऐसे विषयों को स्थान दिया जाये जो व्यावहारिक जीवन के लिये उपयोगी हों।
3. धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले किसी भी विषय को पाठ्यक्रम में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिये।
प्रकृतिवाद एवं शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods ) —
प्रकृतिवादियों ने निम्न शिक्षण विधियों को अपनाने की सलाह दी है— करके सीखना (Learning by Doing), अनुभव द्वारा सीखना (Learning by Experience), खेल द्वारा सीखना (Learing by Play), प्रत्यक्ष विधि, डि विधि, पर्यटन, डाल्टन प्रणाली, निरीक्षण विधि, मॉण्टेसरी पद्धति आदि ।
प्रकृतिवाद एवं बालक (Naturalism and Child ) -
प्रकृतिवादी मानते हैं कि बालक स्वयं में एक पूर्ण इकाई है। वह योग्यता, रुचि आदि में अन्य बालकों से भिन्न होता है। अतः शिक्षा बालक की इन सभी योग्यताओं का विकास किया जाना चाहिये। प्रकृतिवाद बालक में श्रेष्ठता का दर्शन करता है तथा उसी का विकास करना चाहता है।
प्रकृतिवाद एवं शिक्षक (Naturalism and Teacher ) -
प्रकृतिवाद में प्रकृति को ही बालक का वास्तविक गुरु माना गया है। शिक्षक को इसमें गौड़़ स्थान प्रदान किया गया है। प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षक का कार्य बालक के विकास के लिये समुचित परिस्थितियों का निर्माण करना है। अध्यापक की भूमिका स्टेज के समान एक डायरेक्टर की सी होती है , जो पर्दे के पीछे से ही अपनी भूमिका निभाता है।
प्रकृतिवाद एवं अनुशासन (Naturalism and Discipline):
रूसो के अनुसार बालक को कभी दण्ड नहीं दिया जाना चाहिये। गलती करने पर प्रकृति स्वयं उसे दण्ड देगी। जब बालक को किसी कार्य को करने से कष्ट अथवा दुःख महसूस होगा तो वह स्वयं ही उस कार्य को नहीं करेगा।
प्रकृतिवाद एवं विद्यालय (Naturalism and School ) —
वैसे तो प्रकृतिवादियों के अनुसार प्रकृति की गोद ही बालक का स्कूल है, फिर भी, यदि हमें सामाजिक विद्यालयों की स्थापना करनी ही पड़े तो ये विद्यालय प्राकृतिक नियमों पर आधारित होने चाहिये। भवन निर्माण ऐसा होना चाहिये कि इनमें प्राकृतिक वायु, प्रकाश आदि की समुचित व्यवस्था हो। साथ ही, विद्यालय का समय-विभाग-चक्र (Time Table) लचीला हो।
प्रकृतिवाद का शिक्षा में योगदान
(Contribution of Naturalism in Educaion)
प्रकृतिवादी शिक्षा-सिद्धान्तों से शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं एवं शिक्षाको दिशा मिली है, जो इस प्रकार है-
1. बाल मनोविज्ञान का विकास (Development of Child Psychology)-प्रकृति ने बालक की प्रकृति के अनुसार शिक्षा की बात कहकर शिक्षा को मनोविज्ञान आधारित बना दिया।
2. अनुभव-प्रधान पाठ्यक्रम पर बल (Experience based Curriculum)—प्रकृतिवाद अनुभव-प्रधान पाठ्यक्रम का समर्थन करता है जिसके अनुसार पाठ्यक्रम में बालक के अनुभवों को सम्मिलित किया जाता है तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं पर विशेष बल दिया जाता है।
3. शिक्षण पद्धतियों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण देन (Contriution to Teaching Methods)—प्रकृतिवाद ने बालक को उसकी प्रकृति के अनुसार विकसित करने पर बल दिया जिनके परिणामस्वरूप शिक्षण पद्धतियों के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। विभिन्न शिक्षण पद्धतियाँ; जैसे—यूरिस्टिक पद्धति, डाल्टन पद्धति, निरीक्षण पद्धति, खेल पद्धति तथा मॉण्टेसरी पद्धति प्रकृतिवाद की ही देन हैं।
4. अनुशासन के क्षेत्र में दमन का निषेध (No to Harsh Punishment )—प्रकृतिवाद ने विद्यालयों में बालकों को दिये जाने वाले शारीरिक दण्ड का विरोध कर, बालक के लिए स्वाभाविक वातावरण में शिक्षा का प्रावधान कर शिक्षा को आनन्ददायक बनाया जिससे बालक उत्साहपूर्वक अधिकाधिक सीख सकें।
5. वैज्ञानिकता को शिक्षा में प्रधानता (Emphasis to Science ) - प्रकृतिवादियों ने ज्ञान का प्रमुख स्रोत विज्ञान को माना। परिणामतः विज्ञान के विषयों को पाठ्यक्रम में प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण स्थान मिला। इस तरह शिक्षा को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने में सहायता मिली।
6. विषय के स्थान पर बालक को प्रमुखता या बाल केन्द्रित शिक्षा (Child Centred Education)—परम्परागत शिक्षा-प्रणाली में विषय-प्रधान शिक्षा होने के कारण बालक उपेक्षित रह जाता था। उसका सम्यक संतुलित विकास नहीं हो पाता था। अतः बालक केन्द्रित शिक्षा के प्रवर्तन से शिक्षा-क्षेत्र में सभी दृष्टियों से बहुत लाभ हुआ है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रकृतिवाद बाल-केन्द्रित शिक्षा (Child-centred) पर अधिक बल देता है न कि पाठ्य-वस्तु केन्द्रित (Teacher-centred) अय्या अध्यापक केन्द्रित शिक्षा (Teacher centred) अर्थात्, हमारी सम्पूर्ण शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु छात्र होना चाहिये न कि कोई और।