July 15, 2023

नियन्त्रण (Controlling): अर्थ एवं परिभाषा,कार्य,नियन्त्रण में सावधानियाँ

 नियन्त्रण: अर्थ एवं परिभाषा


नियन्त्रण: अर्थ एवं परिभाषा (Controlling : Meaning and Definition)


नियन्त्रण से अभिप्राय उस शक्ति से है जो प्रशासन सम्बन्धी कार्य-प्रणालियों, गतिविधियों, कार्य तथा योजनाओं को अपने वश में रखती है।

प्रशासन यह जानने का प्रयत्न करता है कि संगठन का कार्य योजना के अनुसार हो रहा है या नहीं और यदि नहीं हो रहा है तो क्यों नहीं हो रहा है, इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? नियन्त्रण शक्ति के बिना सबका हित सम्भव नहीं है और कार्य सफलता भी संदिग्ध रहती है। नियन्त्रण है द्वारा ही कीमतें कम रहती हैं, उत्पादन में वृद्धि होती है, कार्यकर्त्ताओं का विकास होता है और गुणात्मकता को बनाए रखने में सफलता मिलती है। शैक्षिक क्षेत्र में मानवीय और भौतिक दोनों प्रकार के साधनों के नियन्त्रण के अभाव में शिक्षा दिशाहीन हो सकती है, लक्ष्यहीन हो सकती है। इस प्रकार किसी संस्था की गतिविधियाँ, उन्नति हेतु कार्य और कार्यकर्त्ताओं की कार्यक्षमता का मापन नियन्त्रण की प्रक्रिया द्वारा ही सम्भव है। नियन्त्रण द्वारा किसी भी व्यक्ति के अनुचित व्यवहार को रोका जा सकता है। नियन्त्रण को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है-


मैरी कशिंग नील्स (Marry Cushing Niles) के अनुसार- "नियन्त्रण संगठन की निर्देशित क्रियान्वयन, निश्चित उद्देश्यों अथवा एक समूह के प्रति एक सन्तुलन बनाना है।" Council is to make balance toward directed activities of the organization toward a definite aim or a group of them."

कुण्टज और ओ'डोनेल ( Koontz and O'Donell ) के अनुसार- "नियन्त्रण का प्रबन्धकीय कार्य कार्यकर्त्ताओं के निष्पादन का मापन और उसमें सुधार करना है और यह सुनिश्चित करना है कि लक्ष्य और योजना इसकी प्राप्ति में पूर्ण है।" "The managerial function of control is the measurement and correction of the performance of subordinates in order to make sure that the objective and plan devised to attain them are accomplished."

जे०बी० सीयर्स का मत है— कोई भी जब तक सम्बन्धित व्यक्तियों, वस्तुओं अथवा लक्ष्यों पर भली प्रकार नियन्त्रण न कर ले तब तक यह किसी क्रिया के सम्बन्ध में निर्देशन नहीं दे सकता।"


नियन्त्रण सम्बन्धी कार्य (Functions Related to Controlling)


नियन्त्रण प्रशासन का प्रमुख कार्य है। नियन्त्रण के अभाव में कार्ययोजना के अनुरूप कार्य नहीं चल पाता है, अनुशासनहीनता बढ़ जाती है, गुणात्मकता में कमी आ जाती है और उत्पादन का स्तर गिर जाता है। इस प्रकार संगठन के विभिन्न भागों, कार्यों एवं कर्मचारियों को नियन्त्रित करना आवश्यक है। प्रशासन के नियन्त्रण सम्बन्धी कार्यों को हम निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं-


अनुशासनात्मक कार्य- प्रगति का आधार अनुशासन है। अनुशासन ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जिसमें रहकर कार्यकर्त्ता उत्साहित होता है और उद्देश्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। अतः अनुशासन बनाए रखने के लिए नियन्त्रण आवश्यक है। किसी भी संस्था में अनुशासन सथापना हेतु नियन्त्रण की आवश्यकता होती है। नियन्त्रण से ईमानदारी को बढ़ावा मिलता है, बेईमानी में कमी आती है और अनुचित व्यवहार को रोका जा सकता है। 


(2) समन्वय सम्बन्धी कार्य - समन्वय का आधार नियन्त्रण है। नियन्त्रण से संगठन के विभिन्न कार्यों में विभिन्न क्रियाओं में समन्वय स्थापित होता है। समन्वय से प्रेम, सहयोग, निष्ठा और आपसी ताल-मेल में वृद्ध वृद्धि होती है और आपस में बढ़ने वाले हर प्रकार के तनाव को कम करके उत्पादन को एक नई दिशा मिलती है।


(3) उत्तरदायित्व वितरण का सही ज्ञान - संगठन में कार्य और उत्तरदायित्व का वितरण सही है अथवा न ही इसका ज्ञान नियन्त्रण द्वारा सुगमता से हो जाता है। अधिकृतियों द्वारा निर्धारित उत्तरदायित्व का भली प्रकार वितरण और प्रशासन (Execution) का उचित ज्ञान नियन्त्रण प्रक्रिया द्वारा सम्भव है। इसके साथ से कार्यकर्त्ता आपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किस प्रकार करता है, कितना करता है, कितनी निष्ठा से करता है, यह सब जानकारी सफल नियन्त्रण से सम्भव है। इस ज्ञान से कार्यकर्त्ता की कमी ही दूर करने में सहायता मिलती है और उसमें समय रहते सुधार किया जा सकता है।


(4) सन्तुलन सम्बन्धी कार्य- नियन्त्रण का कार्य सन्तुलन स्थापित करना है। यह सन्तुलन विभिन्न क्रिया-कलाप और उद्देश्यों के प्रति निश्चित करना होता है। मानवीय साधनों में संतुलन की स्थापना नियन्त्रण द्वारा सम्भव है और वह सन्तुलन उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रेरणास्रोत बनता है। अतः प्रत्येक कार्य को चैक (Check) करके जोखिम से सुरक्षा प्रदान करना नियन्त्रण का कार्य है।


(5) भावी योजना निर्माण सम्बन्धी कार्य - नियन्त्रण भविष्य के लिए बनने वाली योजनाओं के लिए आधार प्रदान करता है। संगठन की सूचनाएँ और तथ्यों के संग्रह में नियन्त्रण द्वारा सहायता मिलती है। इन सूचनाओं के आधार पर नई योजना का निर्माण, भविष्य के लिए लाभप्रद हो सकता है। अतः भावी योजना निर्माण में नियन्त्रण महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।


(6) निष्पादन मापन एवं उसमें सुधार सम्बन्धी कार्य - नियन्त्रण का महत्त्वपूर्ण कार्य कार्यकर्ताओं क निष्पादन (Achievement) का मापन करना है और उसमें आवश्यकता के अनुरूप सुधार भी करना है। नियन्त्रण के अभाव में कार्यकर्त्ता निष्ठापूर्वक कार्य सम्पादन नहीं करता है। फलस्वरूप उद्देश्य की प्राप्ति में कठिनाई आती है। अतः उद्देश्य प्राप्ति हेतु नियन्त्रण द्वारा उपलब्धि का माप किया जाता है और कमी होने पर उसे इस योग्य बनाया जाता है कि यह निष्ठापूर्वक कार्य कर सके।


(7) अपादन में वृद्धि सम्बन्धी कार्य - नियन्त्रण उत्पादन में वृद्धि में सहायता करता है। नियन्त्र को पक्रिया द्वारा कोई भी व्यक्ति गलत कार्य नहीं कर पाता है और किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं पनप पा है। फलस्वरूप कम कीमत पर अधिक उत्पादन सम्भव हो पाता है। नियन्त्रण कार्यकर्त्ताओं की कार्यक्षमता है और कीमतों को काबू में रखता है। अतः उत्पादन वृद्धि के साथ वस्तु की गुणात्मकता भी बनी रहती है।


इस प्रकार नियन्त्रण विविध कार्यों के माध्यम से संगठन को मजबूत बनाता है और संगठन में आने वाली कठिनाई को दूर करता है। नियन्त्रण से कार्यकर्ताओं का विकास होता है और यह पता चलता है कि निर्धारित उद्देश्यों और निर्धारित योजनानुसार कार्य सम्पन्न हो रहा है या नहीं। अतः नियन्त्रण प्रशासन का एक ऐसा शस्त्र है तो संगठन को व्यवस्थित रखता है, कार्यकर्त्ताओं पर नियन्त्रण रखता है और उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि करता है जिससे उत्पादन वृद्धि की ओर अग्रसर होता है।

नियन्त्रण में सावधानियाँ (Carefulness in Controlling)


नियन्त्रण प्रशासन का महत्त्वपूर्ण कार्य है, अतः नियन्त्रण करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना चाहिए-

 (i) शैक्षिक प्रशासन में प्रत्यक्ष नियन्त्रण हेतु कार्य-विधियों, कार्यकर्त्ताओं और वातावरण आदि पर निरन्तर निरीक्षण और पर्यवेक्षण करते रहना चाहिए।

(ii) मूल्यांकन विधियों में सुधार करके प्रशासन में अप्रत्यक्ष रूप से नियन्त्रण रखना चाहिए। 

(iii) प्रशासन में नियन्त्रण रखने के लिए पुरस्कार और दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए।

 (iv) शैक्षिक विकास को दृष्टिगत रखते हुए नियन्त्रण सम्बन्धी नियम, नीतियाँ, विधियाँ, रीतियाँ निर्धारित की जानी चाहिए।

(v) नियन्त्रण के लक्ष्य पूर्वनिर्धारित होने चाहिए और उनमें आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तन किए  जाने चाहिए।

(vi) योजना की क्रियान्विति के प्रारम्भ और अन्त में नियन्त्रण शक्ति का कठोरता से पालन होना चाहिए। 

(vii) योजना के पूर्ण होने तक किसी भी प्रकार का ढीलापन नहीं आना चाहिए।


इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रशासन के मूलभूत कार्य-नियोजन, संगठन, संचालन और नियन्त्रण हैं, इनमें योजना की सफलता उपलब्ध साधन स्रोतों का अधिकतम उपयोग है। संगठन विविध कार्यों द्वारा संसाधनों का उपयोग करता है, उनका समन्वय करता है और तकनीकी विकास का अधिकतम अधिकतम लाभ प्राप्त करता है, इससे नियन्त्रण में सुविधा रहती है। संचालन सम्पूर्ण तन्त्र को शक्ति देता है, गति देता है, अनुशासन देता है और उत्पादन देता है तथा बिना पूर्वग्रह के निष्ठापूर्वक कार्य किया जाता है। नियन्त्रण संगठन को मजबूत बनाता है, आने वाले बाधाओं को दूर करता है और निर्धारित समय पर कार्य सफलता की सूचना देता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रशासन अपने मूलभूत कार्यों के माध्यम से उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ वस्तु गुणात्मकता को भी बनाए रखता है।


संचालन (निर्देशन): अर्थ एवं परिभाषा (Direction : Meaning and Definition), कार्य (Functions), सावधानियाँ (Cautions)

संचालन ( निर्देशन) Direction 


 संचालन (निर्देशन): अर्थ एवं परिभाषा
(Direction : Meaning and Definition)


 संचालन (निर्देशन) का अर्थ है शक्ति का विभिन्न कार्यों में प्रयोग करना मुख्यतः दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराना संचालन है। यह संचालन वांछित दिशा में होना चाहिए। संगठन की सफलता संचालन पर निर्भर करतीै । यह कार्य करने की सूचना देता है, कार्य को किस प्रकार करना है, कब करना है, कब समाप्त करना है , यह सब संचालन पर निर्भर करता है। अतः संचालन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा योजना और व्यव संचालित होती है। साधन जुटाने के बाद विभिन्न कार्यों के सम्पादन में निर्देशन देना और उपलब्ध साधनों के कार्यान्वित करना निर्देशन का कार्य है। निर्देशन (संचालन) में प्रमुखतः तीन बातों को महत्त्व दिया जाता है प्रथम- निर्णय लेना, द्वितीय निर्णय की घोषण करना और तृतीय निर्णयों को व्यवहार में लाना। यह कार्य कराने की प्रणाली का ज्ञान श्रेष्ठ प्रशासक कराते हैं। निर्णय की सफलता ज्ञानी, योग्य, दूरदर्शी जी अनुभवी प्रशासक पर निर्भर करती है। क्योंकि विभिन्न प्रवृत्तियों और प्रकृति वाले व्यक्तियों की ठीक प्रका समझकर कार्यों का उचित विभाजन करना प्रशासक का कार्य है। अतः निर्देशन वातावरण पर कर्मचारी वर्ग पर साज-सज्जा, सम्मान, धन आदि पर निर्भर करता है और प्रशासक की इच्छा द्वारा नियन्त्रित होता एवं निर्देशित किया होता है।


मार्शल ई० डिमांक (Manshell E. Demock) के शब्दों में,

"निर्देशित प्रशासन कार्य का अंत है, जिसमें निश्चित आदेश एवं निर्देश शामिल हैं।"

"The heart of administration is the directing function which involves determining the course of giving orders and instructions providing the dynamic leadership"


कुण्ट्ज और ओडोनेल (Koontz and O'Donell) के निर्देशन को मिश्रित कार्य मानते हुए कहा "संचालन एक मिश्रित कार्य है, इसमें वे सब कार्य सम्मिलित हैं जो कार्यकर्ताओं को प्रभावपूर्ण और कुशलतापूर्वक कार्य करने हेतु उत्साहित करते हैं।"

"Direction is a complex function that includes all those action which are designed to encourage subordinates to work effectively and efficiently"


संचालन (निर्देशन) सम्बन्धी कार्य (Functions Related to Direction)


संचालन प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह निरीक्षण, पर्यवेक्षण और मूल्यांकन में सहायक है। यह एक सतत् प्रक्रिया है, इसका मुख्य उद्देश्य कार्यकर्ता को कार्य हेतु और प्रशासक को उत्तरदायित्व हेतु तैयार करना है। संचालन के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं – 

(1) अधीनस्थ कर्मचारियों से सम्बन्धित कार्य -

 प्रशासन अधीनस्थ कर्मचारियों को आदेश देता है, निर्देश देता है और उनके कार्यों का निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करता है। निरीक्षण और पर्यवेक्षण के द्वारा उनके अनुचित कार्यों पर नियन्त्रण रखता है। आदेश-निर्देश का अनुपालन करते हुए कर्मचारीगण निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं और वांछित विकास की गति प्रदान करते हैं।


(2) कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा उठाना –

 कुशल निर्देशन (संचालन) द्वारा प्रशासन कार्यकर्ताओं के मनोबल को ऊँचा रखता है, उन्हें प्रेरित करता है और यह भावना भरता है कि कम-से-कम व्यय में अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त किया जा सकता है। ऊँचा मनोबल ही उत्पादन वृद्धि में सहायक होता है और विकास की गति को तीव्र करता है।


(3) कार्यों के मध्य सामंजस्य (समन्वय) स्थापित करना - प्रशासन को मानवीय और भौतिक साधनों में समन्वय स्थापित करना होता है। समन्वय स्थापना से कार्य निर्वाध रूप से आगे बढ़ता रहता है और निरन्तर विकास की ओर गतिशील रहता है। विभिन्न कार्यों के मध्य समन्वय ही वह आधार है जो वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करता है।


(4) प्रशिक्षण से सम्बन्धित कार्य –

 समय-समय पर कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी होती है। इसके परिणामस्वरूप कार्यकर्त्ता की कुशलता में वृद्धि होती है। इस कुशलता का प्रभाव उत्पादन को प्रभावित करता है। अतः उचित निर्देशन द्वारा कार्यकर्ता उचित कार्य करने में सक्षम हो जाता है।

(5) नीतियों को प्रभावपूर्ण बनाना-

निर्देशन प्रशासनिक नीतियों को प्रभावी बनाता है। प्रभावी नीतियाँ कार्यकर्ता को आगे बढ़ने, निष्ठापूर्वक कार्य करने की प्रेरणा देती है। निर्देशन के द्वारा यह पता चलता है कि कौन-सा कार्य कब करना है, कैसे करना है और कब समाप्त करना है। अतः निर्देशन नीतियों को प्रभावपूर्ण बनाकर कम लागत में अधिक उत्पादन को सम्भव बनाता है।

(6) नेतृत्व प्रदान करना एवं प्रोत्साहित करना-

निर्देशन का कार्य नेतृत्व प्रदान करना है और साथ ही कार्यकर्त्ता को प्रोत्साहित भी करना है। कुशल निर्देशन ही कुशल नेतृत्व प्रदान करता है और कुशल नेतृत्व उत्पादन वृद्धि में सहायक होता है। इस प्रकार कुशल निर्देशन से सहायकों पर नियन्त्रण रहता है और कार्यकर्ता वांछित देशों में विकास की ओर अग्रसर होता है।

(7) नियन्त्रण को प्रभावी बनाना – 

प्रशासन का प्रमुख कार्य निर्देशन है। निर्देशन के द्वारा संगठन पर नियन्त्रण से उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा अलाभकारी कार्यों में कमी आती है। अतः नियन्त्रण के प्रभाव में अनुशासनशीलता बढ़ती है।


अतः स्पष्ट है कि संचालन (निर्देशन) सम्पूर्ण तन्त्र को शक्ति देता है, गति देता है, अनुशासन देता है और उत्पादन देता है। व्यक्ति निष्ठापूर्वक कार्य करते हैं और बिना किसी पूर्वाग्रह के कार्यरत रहते हैं।


निर्देशन (संचालन) में सावधानियाँ

(Carefulness in Direction)


संचालन प्रक्रिया के अन्तर्गत हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-


(1) निर्देशन हेतु अनुभवी और लोकप्रिय प्रशासन नियुक्त करना चाहिए।


(2) मानवीय सम्बन्धों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।


(3) प्रजातान्त्रिक सम्बन्धों और सिद्धान्तों के आधार पर प्रशासन का संचालन करना चाहिए।


(4) पारस्परिक निर्णयों, विचारों, भावनाओं का सद्भावना के साथ सम्मान करना चाहिए।


(5) निर्देशन में गतिशीलता बनी रहनी चाहिए, उसमें किसी प्रकार की शिथिलता नहीं आनी चाहिए। जे० बी० सीयर्स का मत है "संचालन वह भाग है जो निर्णय को प्रभावित करता है, कार्य करने की सूचना देता है और यह संकेत देता है कि कार्य किस प्रकार करना है तथा कब प्रारम्भ या  समाप्त करना है।"


(6) संचालन की सफलता पास्परिक सम्बन्ध स्थापित करने में है।

(7) अच्छे और कुशल नेतृत्व के लिए अपने साथियों से परामर्श लेकर अपने विषय का निर्णय लेना चाहिए।



संगठन ( Organization): अर्थ एवं परिभाषा, कार्य (FUNCTIONS), सावधानियाँ (Cautions)

 संगठन ( Organization)

संगठन : अर्थ एवं परिभाषा
(Organization : Meaning and Definition)


संगठन से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जो प्रशासन द्वारा भौतिक और मानवीय साधनों को जुटाने के लिए की जाती है। संगठन प्रशासन का द्वितीय आधारभूत कार्य है। यह कार्य दो रूपों में किया जाता है, प्रथम ‐ मानवीय संगठन द्वितीय भौतिक संगठन। प्रथम मानवीय संगठन में शिक्षक, कर्मचारीगण, समितियाँ, छात्रगण तथा अन्य सम्बन्धित मानवीय तत्त्व सम्मिलित रहते हैं और द्वितीय भौतिक संगठन में भवन, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं खेल का मैदान तथा अन्य शैक्षिक सहायक सामग्री सम्मिलित हैं। संगठन इस प्रकार दोनों तत्त्वों में समन्वय स्थापित करता है और इन्हें इस प्रकार व्यवस्थित करता है कि उद्देश्य प्राप्ति में कोई असुविधा न हो। यह व्यवस्था औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूप में संभव है। औपचारिक व्यवस्था में कार्यकर्ताओं का एक पदानुक्रम होता है, इनमें कार्य वरिष्ठ अथवा अधीनस्थ के रूप में बॅटे होते है तथा इनमें संगठनात्मक सम्बन्ध आदेशों और सूचनाओं के आदान-प्रदान से होता है, जबकि अनौपचारिक व्यवस्था में सम्बन्ध व्यक्तिगत अभिवृत्ति, रुचि, विश्वास, मान्यता, विचार और कार्य के आधार बनते हैं। संगठन के दोनों रूपों में समन्वय के अभाव में लक्ष्य प्राप्ति असम्भव है। इसलिए संगठन एक यन्त्र के रूप में कार्य करता है। संगठन को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है—


1- मैफारलेण्ड के अनुसार, "मनुष्यों का एक पहचान समूह जो अपने प्रयत्नों को उद्देश्य प्राप्ति में लगता है संगठन कहलाता है।

 "An identifiable group of people contributing their effets towards the attainment of goals is called organization" - Mefarland

2- प्रो० एल०एच० हैनी के शब्दों में, "संगठन एक विशिष्ट भाग का सुसंगत समायोजन है जो कुछ सामान्य उद्देश्यों को सम्पादित करता है।"

"Organization is a harmonious adjustment of specialised part for the accomplishment of some common purpose or purposes"  -L. H. HANEY

3- डॉ० एस०एन० मुखर्जी (Dr. S. N. Mukherji) के अनुसार, संगठन कार्य करने की मशीन है।इसका मुख्य उद्देश्य व्यवस्था करने से सम्बन्धित है ताकि समग्र कार्यक्रम का संचालन किया जा सके।"

4- जॉन डब्ल्यू० वाल्टन (John. W. Waslten) के अनुसार, "संगठन कार्यरत व्यक्तियों का एक समूह है जो समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साथ-साथ मिलकर कार्य करते हैं।" 

 अतः स्पष्ट है कि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपलब्ध समस्त भौतिक एवं मानवीय तत्त्वों की समुचित व्यवस्था करना ही संगठन है और इसका सम्बन्ध संरचना और मानव सम्बन्ध दोनों से है और इसे संचालित करके लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है।


संगठन सम्बन्धी कार्य (FUNCTIONS RELATED TO ORGANIZATION)


प्रशासन का द्वितीय आधारभूत कार्य संगठन है। संगठन एक व्यवस्था है जिससे मानवीय और द्वितीय भौतिक संगठनभौतिक साधनों में समन्वय स्थापित किया जाता है। इस दृष्टि से प्रशासन के संगठन सम्बन्धी विविध कार्यों को हम निम्नलिखित रूप से समझ सकते हैं-


(1) कार्य को सरल और लाभप्रद बनाना- कुशल संगठन प्रशासनिक कार्यों को सरल बना देताहै। इसके फलस्वरूप प्रशासन और प्रबन्ध की क्षमता में वृद्धि होती है। इस प्रकार अच्छा संगठन कार्यकर्ताओं की योग्यता एवं अनुभव का लाभ उठाता है जबकि अयोग्य उद्देश्यपूर्ति में सहायक नहीं हो पाता है और उद्देश्यहीन कार्यों में समय की बर्बादी करता है।


(2) मूल्यवान, चरित्रवान कार्यकर्त्ता तैयार करना -  कुशल संगठन ईमानदार, परिश्रमी, समर्पित, उच्च मूल्य और नैतिक चरित्र से युक्त कार्यकर्ताओं का निर्माण करता है। संगठन की आवश्यकता के अनुसार व्यक्तियों को तैयार करता है। उनका नैतिक विकास करके भ्रष्टाचार को रोकता है। इस प्रकार अच्छा संगठन कार्यकर्ता को मूल्यों से युक्त करता है और उसमें विविध चारित्रिक मूल्यों का विकास करके संगठन को प्रभावशाली बनाता है।


(3) सृजनात्मकता का विकास करना- कुशल संगठन कार्य की महत्ता को स्वीकार करता है, उसे सद्ध करता है और संगठन की प्राथमिकता के आधार पर कार्य का विवरण और व्यवस्था करता है। इस प्रकार कार्य विभाजन से कार्यकर्त्ता में सृजनात्मकता का विकास होता है और यह कम समय और कम व्यय में अधिक और अच्छा उत्पादन सम्भव बनाता है।


(4) स्वाभाविक विकास को बढ़ावा देना- कुशल संगठन इस प्रकार का ढाँचा (Structure) तैयार करता है जिसमें विकास क्रम स्वाभाविक रूप से चलता रहता है। इसे स्वविकास तो होता ही है साथ ही क्रियाकलापों का विस्तार भी होता है। इस प्रकार इन विकसित क्रियाकलापों के द्वारा प्रगति  शीघ्रतापूर्वक होती है। 


(5) विभिन्न कार्यों एवं साधनों में समन्वय स्थापित करना - संगठन विशिष्टीकरण वर्गीकरण के कार्यों में समन्वय स्थापित करता है और मानवीय एवं भौतिक साधनों को इस प्रकार समन्वित करता है। ताकि कम-से-कम व्यय कर अधिक-से-अधिक सके इससे विकास की दर में तेजी आती है और प्रशासनिक विकास में सहायता मिलती है।


(6) संसाधनों का समुचित एवं तकनीकी का अधिकतम उपयोग करना - कुशल संगठन संसाधनों को इस प्रकार व्यवस्थित करता है, जिससे इन साधनों का समुचित उपयोग हो सके और साथ ही तकनीकी का अधिकतम उपयोग करके उत्पादन में वृद्धि की जा सके। इस प्रकार यह कम-से-कम प्रयत्न से अधिक उत्पाद सम्भव बनाता है।


(7) विकास की गति को तीव्रता प्रदान करना - कुशल संगठन कार्यकर्त्ताओं के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। प्रशिक्षित व्यक्तियों को प्रशासन में विभिन्न पदों पर नियुक्ति प्रदान करता है और उनकी कुशलता तथा योग्यता का अधिकतम लाभ प्राप्त कर संगठन के विकास को तीव्रगति प्रदान करता है।


संगठन की सावधानियाँ
(Carefulness in Organization)

संगठन का निर्धारण करते समय हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(i) निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न तत्त्वों को संगठित किया जाना चाहिए।

 (ii) मानवीय और भौतिक तत्वों के अतिरिक्त अन्य विचार, धारणाएँ, नियम, सिद्धान्त, आदर्श आदि का भी कार्य निर्धारण के समय ध्यान रखना चाहिए।

(iii) संगठन के नियम और निर्णय आदि सभी व्यक्तियों के लिये लाभकारी होने चाहिए।

(iv) संगठन का स्वरूप छोटा या बड़ा हो सकता है। यह शिक्षा योजना के अनुसार अल्पकालिक और पूर्णकालिक हो सकता है। किसी भी रूप में संगठन प्रशासनिक कार्य में असुविधा उत्पन्न करनेवाला नहीं होना चाहिए। 

(v) संगठन का आधार प्रजातान्त्रिक होना चाहिए, तभी शिक्षा कार्य सफल हो सकेगा।

(vi) संगठन को पक्षपात, राजनीति, जातिवाद तथा अन्य विरोधी एवं दूषित तत्वों से दूर रखना चाहिए 

(vii) संगठन का स्वरूप योजना के अनुरूप निर्धारित करना चाहिए और सम्प्रेषण की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।



नियोजन (Planning): अर्थ एवं परिभाषा, कार्य (Functions), सावधानियां (Cautions)

 नियोजन (Planning)

नियोजन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Planning)


नियोजन से अभिप्राय एक ऐसी सुनिश्चित योजना रूपरेखा बनाने से है, जिसके द्वारा उददेशयो की  प्राप्ति की जा सके, कार्यप्रणाली को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ाया जा सके, सहयोगी व्यक्तियों एवं परिस्थितियों का लाभ उठाया जा सके तथा सहायक सामग्री और उपलब्ध वस्तुओं का समुचित उपयोग किया जा सके। इस प्रकार योजना का अर्थ विभिन्न विकल्पों में से सबसे अच्छे को चुनना है। ये विकल्प उद्देश्य, प्रक्रिया, नीतियाँ  और कार्यक्रम आदि हो सकते हैं। यह प्रगतिशील प्रक्रिया है जो वर्तमान के साथ भविष्य को भी देखती है। भविष्य के वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास नई खोजें एवं सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तन को दृष्टिगत रखते हुए योजना का निर्माण लचीला होना चाहिए। नियोजन को विभिन्न विद्वानों ने परिभाषित किया है।

1- कुण्ट्ज और ओ'डोनेल – "नियोजन एक मानसिक क्रिया है। यह एक विशेष तरीके से कार्य करने का सचेतन निश्चयात्मक प्रयास है।" 

"Planning is a mental activity, it is a concious determination of doing work in particular way. - Koontz and O'Donnel 

2- जेम्स एल० लुण्डी – "नियोजन का अर्थ है कि क्या करना है, कहाँ करना है, कैसेकरना है, कौन करेगा और इसके परिणाम का मूल्यांकन कैसे होगा?"

"The meaning of planning is to determine what is to be done, where is to be done, how is to be done, who is to do it and how the results are to be evaluated" - James L Lundi

 3- जे० बी० सीयर्स –  "नियोजन में प्रशासन का सीधा- सादा अर्थ हैं किसी काम को करने के लिए या किसी समस्या को हल करने के लिए निर्णय लेने हेतु तैयार हो जाओ।"

अतः किसी भी कार्य को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिये सुनिश्चित योजना बनाना आवश्यक है। 


जॉन मिलर (John D. Miller) के शब्दों में, "नियोजन यानि किसी काम को करने के लिए बुद्धिपूर्वक तैयारी अर्थात् कार्य को कब और कैसे सम्पादित किया जाए।


नियोजन सम्बन्धी कार्य
(Functions Related to Planning)


नियोजन प्रशासन का प्रथम आधारभूत कार्य है। नियोजन के अभाव में उद्देश्य प्राप्ति कठिन कार्य है और उपलब्ध साधानों का अधिकतम उपयोग भी योजना निर्माण करके ही प्राप्त किया जा सकता है। अतः प्रशासन योजना निर्माण और उसकी क्रियान्वित के माध्यम से निम्नलिखित कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर सकता है---


(1) समन्वय स्थापित करना— योजना निर्माण करके प्रशासन विभिन्न कार्यों में समन्वय स्थापित सकता है और उन पर नियन्त्रण सुगमतापूर्वक कर सकता है। इससे प्रबन्धकीय कार्य क्षमता में वृद्धि होगी।


 (2) उद्देश्य प्राप्त करना— शैक्षिक नियोजन का निर्माण करके प्रशासन निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकता है और उपलब्ध साधन व सामग्री का अधिकतम उपयोग कर सकता है। इससे प्रत्येक कार्यकर्ता को उसकी योग्यता व क्षमता के अनुरूप कार्य मिलने से प्रशासन आसानी से कार्य कर सकेगा।


(3) आवश्यकता की पूर्ति करना — योजना छोटी हो या बड़ी इसके निर्माण से आवश्यकता और लक्ष्य दोनों की पूर्ति होती है। अतः प्रशासन को इसके निर्माण में वर्तमान, भूत और भविष्य का ध्यान रखना चाहिए ताकि छोटी योजना को भी आवश्यकतानुसार बड़ा बनाया जा सके।


(4) विभिन्न अनुभवों का ज्ञान – योजना निर्माण से प्रशासन को विभिन्न परिस्थितियों, कार्यो कार्य-विधियों, कार्यकर्ता और उसकी योग्यता एवं अनुभवों का पता चलता है। इसका उपयोग वह कुशलता पूर्व करके लाभान्वित हो सकता है। इससे प्रभावी नियन्त्रण की स्थापना सम्भव होगी।


(5) जोखिम कम करना – योजना निर्माण से प्रशासन उस अनिश्चितता और जोखिम को ककम रता है, जो उसके निर्माण के बिना होती है। बिना योजना के कार्य अस्पष्टता बनी रहती है।


(6) प्रशासन को प्रेरित करना – योजना निर्माण प्रशासन के उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रेरित कर है। यह भविष्य की सम्भावनाओं को बल प्रदान करता है और अधिकरियों को अपने कर्तव्य व उत्तरदायित्व का ज्ञान भी कराता है।


(7) अतार्किक निर्णय पर रोक – योजना निर्माण में उन निर्णयों पर रोक लगती है जो अतार्किक,  अलाभप्रद और अत्यधिक खर्चीले हैं। अत यह कार्य को निश्चितता प्रदान करती है, उचित दिशा प्रदान करती है और उद्देश्यों का सही ज्ञान देकर समन्वय और समानता की ओर अग्रसर करती है।


नियोजन में सावधानियां (Carefulness in Planning)


नियोजन करते समय प्रशासन को कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। 

 (i) योजना का निर्माण प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों पर होना चाहिए। सभी को अपने विचार रखने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए और सभी को समान रूप से भाग लेने की छूट होनी चाहिए। 

(ii) शिक्षा के लक्ष्य प्रत्येक स्तर पर स्थिर और निश्चित होने चाहिए योजना का उद्देश्य कम-से-कम समय और कम-से-कम व्यय में उत्तम कार्य होना चाहिए।

(iii) योजना का निर्माण शैक्षिक उन्नति के लिए होना चाहिए और इनमें वस्तुनिष्ठता तथा निष्पक्षता होनी चाहिए। 

(iv) कार्यकर्ताओं को प्रत्येक स्तर पर उनकी क्षमता एवं योग्यता के अनुसार कार्य का विभाजन होना चाहिए और इन योजनाओं का सम्बन्ध वर्तमान तथा भविष्य की योजनाओं से होना चाहिए।

(v) योजना की क्रियान्वित सफलतापूर्वक होनी चाहिए और इसके लिए सम्बन्धित कार्य-प्रणाली, विधि-विधान, सभी साधन स्रोतों का निर्धारण एवं योगदान होना चाहिए।

 (vi) योजना निर्माण के समय ध्यान रखना चाहिए कि सभी व्यक्तियों का सहयोग सक्रिय रूप से मिले।

 (vii) योजना में स्वाभाविक रूप से लचीलापन होना चाहिए ताकि समय और आवश्यकतानुसार उसने परिवर्तन और परिवर्द्धन किया जा सके।


अतः स्पष्ट है कि प्रशासन के आधारभूत कार्यों में प्रथम नियोजन अर्थात् योजना निर्माण एवं उसका क्रियान्वयन महत्त्वपूर्ण कार्य है। योजना की सफलता उपलब्ध साधन स्रोतों का अधिकतम उपयोग है। इस सन्दर्भ में इलियट एवं मॉसियर का मत है, "योजना निर्माण के समय शैक्षिक आवश्यकताओं और उपलब्ध सपनों के सन्दर्भ में उद्देश्यों का निर्धारण होना चाहिए और समुदाय विशेष की अपेक्षाओं तथा शिक्षों के आवश्यकता को ध्यान में रखकर विशिष्ट कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन करने हेतु कार्य इकाइयों का निर्माण किया जाना चाहिए।"



प्रशासन एवं शैक्षिक प्रशासन

प्रशासन एवं शैक्षिक प्रशासन 

Administration and Educational Administration 


अवधारणा (concept)


"शैक्षिक प्रबन्ध एक ऐसी सेवा करने वाली गतिविधि है, जिसके माध्यम से शैक्षिक प्रक्रिया के लक्ष्य प्रभावकारी ढंग से प्राप्त किए जा सकते हैं।"(Educational Management is a Service activity through with the objective of educational process effectively realised.)


प्रशासन से अभिप्राय (Meaning of Administration)


'प्रशासन' मूल रूप में संस्कृत का शब्द है। यह 'प्र'  उपसर्ग शास् धातु से आप बना है। इसका अर्थ है प्रकृष्ट या उत्कृष्ट रीति से शासन करना। आजकल शासन का अभिप्राय 'सरकार' से समझा जाता है, किन्तु इसका वास्तविक पुराना अर्थ निर्दश  देना, पथ-प्रदर्शन करना, आदेश या आज्ञा देना है। वैदिक युग में प्रशासन का प्रयोग इसी अर्थ में होता था। उस समय सोमादि यज्ञों में मुख्य पुरोहित अन्य सहायक पुरोहितों को यक्ष को सामग्री तथा अन्य कार्यों के बारे में आवश्यक निर्देश एवं आदेश देने का कार्य किया करते थे, उसे प्रशास्ता कहा जाता था। बाद में यह शासन कार्य में निर्देश देने वाले संचालक और राजा के लिए प्रयुक्त होने लगा।


'प्रशासन' की भाँति इसके लिए अंग्रेजी में 'एडमिनिस्ट्रेशन' (Administration) शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह मूलतः 'एड' (Ad) उपसर्गपूर्वक सेवा करने का अर्थ देने वाली लेटिन की धातु 'Ministrere' से बना है। इसका मूल अभिप्राय एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के हित की दृष्टि से उसको सेवा का कोई कार्य करना है, जैसे पादरी द्वारा किसी व्यक्ति को धार्मिक लाभ पहुंचाने के लिए धार्मिक संस्कार करना, न्यायाधीश द्वारा न्याय करना, डॉक्टर द्वारा बीमार को दवाई देना।  शब्दकोष के अनुसार 'प्रशासन' शब्द का अर्थ है 'कार्यों का प्रबन्ध करना अथवा लोगों की देखभाल करना।' एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में प्रशासन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गयी है कि "यह कार्यों के प्रबन्ध अथवा उनको पूर्ण करने की एक क्रिया है।"

प्रशासन' का अर्थ प्रकृष्ट रीति से शासित अथवा अनुशासित करता है। इसका यह अभिप्राय है कि इस क्रिया में अनेक व्यक्तियों को विशिष्ट अनुशासन में रखते हुए उनसे एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य कराया जाता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रशासन एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सहयोगी ढंग से किया जाने वाला कार्य है। प्रशासन के लिए अनेक व्यक्तियों का सहयोग, संगठन और सामाजिक हित का उद्देश्य अवश्य होना चाहिए।


साइमन के अनुसार, "अपने व्यापक रूप से प्रशासन की व्याख्या उन समस्त सामूहिक क्रियाओं से की जा सकती है जो सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहयोगात्मक रूप में प्रस्तुत की जाती है।"


मार्क्स के अनुसार, “प्रशासन चैतन्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निश्चयात्मक क्रिया है। यह उन वस्तुओं के एक संगठित प्रयत्न तथा साधनों का निश्चित प्रयोग है जिसको कि हम कार्यान्वित करवाना चाहते हैं।"

ब्रिटेनिका ऐनसाइक्लोपीडिया (Britainica Encyclopedia) के अनुसार- "Administration = Ad+ Minister अर्थात् कार्यों का निष्पादन एवं प्रबंधन करना।"


सी०वी० गुड (C.V. Good) के शब्दों में- “प्रशासन का तात्पर्य उन सभी तकनीकों एवं प्रक्रियाओंसे है जो निर्धारित नीतियों के अनुरूप किसी वैज्ञानिक संगठन के संचालन में प्रयुक्त की जाती हैं।"


रायबर्न (Rayburn) के अनुसार — “प्रशासन केवल व्यवस्थाओं, समय-तालिकाओं, कार्य-योजना, भवन का प्रकार, अभिलेखों आदि से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि यह हमारे कार्य करने के दृष्टिकोण और बच्चों (जिनके साथ हम कार्य करते हैं) से सम्बन्धित है "


निगरों के अनुसार- "प्रशासन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य तथा सामग्री दोनों का संगठन है।"


व्हाइट के अनुसार, "प्रशासन किसी विशिष्ट उद्देश्य अथवा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत से व्यक्तियों के सम्बन्ध में निर्देश, नियन्त्रण तथा समन्वयीकरण की कला है। "

 लुथर गुलिक के अनुसार, "प्रशासन का सम्बन्ध कार्यों को सम्पन्न कराने से है जिससे कि निर्धारित लक्ष्य पूरा हो सके।"


शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Education Administration)


शैक्षिक प्रशासन का अर्थ- शैक्षिक (विद्यालय) प्रशासन एक मानवीय प्रक्रिया है। शिक्षा का समुचित प्रबन्ध करना ही विद्यालय प्रशासन या शैक्षिक प्रशासन कहलाता है।


शिक्षा प्रशासन का अभिप्राय शिक्षा के प्रशासन से ही है। आधुनिक युग में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक हो गया है। शिक्षा पर सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास का उत्तरदायित्व है। शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है और इसका सम्बन्ध मानव विकास के लिए किये जाने वाले मानवीय प्रयासों से होता है। अतः शिक्षा का प्रसार तथा उससे मिलने वाला लाभ शिक्षा प्रशासन के अभिकरणों को कुशलता तथा गतिशीलता पर निर्भर करता है। विश्व में प्रजातांत्रिक तथा एकतान्त्रिक शासन प्रचलित है। जैसी इन शासनों की प्रकृति है, वैसे ही शैक्षिक प्रशासन की प्रकृति भी होती है। शिक्षा के समस्त पक्ष ऐसे ही मूल आधारों से प्रभावित होते हैं। शैक्षिक प्रशासन को आज केवल शिक्षा की व्यवस्था करना ही नहीं समझा जाता अपितु शिक्षा के सम्बन्ध में योजना बनाना, संगठन पर ध्यान देना, निर्देशन तथा पर्यवेक्षण आदि अनेक कार्यों से गहरा सम्बन्ध है। वास्तव में शैक्षिक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति करना है।


शैक्षिक प्रशासन के अन्तर्गत विद्यालय के विधिवत संचालन के थे सभी कार्य समाविष्ट होते हैं जिनमें प्रबन्ध, नियन्त्रण, व्यवस्था, पर्यवेक्षण एवं निर्देशन आदि आते हैं। इसमें योजना बनाना, प्रशासकीय कार्यवाही को निश्चित करना, सम्बन्धित कार्यकर्त्ताओं तथा विद्यार्थियों को आवश्यक सुविधाएँ एवं प्रोत्साहित उपलब्ध कराना, आवश्यक अभिलेख रखना, विद्यार्थी स्वशासन का संचालन करना, योग्यता के अनुसार कार्य का विभाजन करना, उनके कार्य आदि का समायोजन करना, विद्यालय और समाज के मध्य सहयोगपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना आदि प्रवृत्तियों का समावेश होता है। अतः विद्यालय प्रशासन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-


"शैक्षिक प्रशासन यह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शैक्षिक कार्य में लगे कार्यकत्ताओं के प्रयासों में समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित किया जाता है। उपयुक्त साज-सज्जा का इस प्रकार उपयोग किया जाता है कि जिससे मानवोचित गुणों का प्रभावशाली ढंग से विकास हो सके, ताकि वे राष्ट्र की आकांक्षा एवं आशा के योग्य बन सकें।"

 शैक्षिक प्रशासन की या शिक्षा प्रशासन की परिभाषाएँ-

पाल आर मोर्ट- "शिक्षा प्रशासन वह प्रभाव है, जो वांछित लक्ष्यों के सन्दर्भ में छात्रों को प्रभावित करता है, इसमें वह अन्य मानव समुदाय का उपयोग करता है, और शिक्षक इस कार्य में अभिकर्ता होता है। तीसरे समूह यानि जनता के लिये वह विभिन्न लक्ष्यों की पूर्ति हेतु कार्य करता है।"


केन्डल के शब्दो मे -"मूल रूप से शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य यही है तथा छात्रों को ऐसी परिस्थिति में एक साथ लाया जाए जिससे अधिकतम रूप से सफलतापूर्वक शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।"


एडम्स बुक के अनुसार, " प्रशासन वह क्षमता है जो अनेक प्रकार की संघर्षमयो सामाजिक शक्ति को एक संगठन में इस प्रकार सुन्दर ढंग से व्यवस्थित करता है जिससे वह एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में क्रियाशील हो।"


ग्रेशम कैकूर के शब्दों में, "शिक्षा प्रशासन वह राजनीति सत्ता है जब दीर्घकालीन नीतियों तथा लक्ष्यों को निर्धारित कर दिये गये नीति नियमों के अनुकूल प्रशासन के मार्गदर्शन में दिन-प्रतिदिन लक्ष्य प्राप्ति हेतु समस्या को हल किया जाता है।"


ग्राहम वालफोर के अनुसार, "शिक्षा प्रशासन सही छात्रों को, सही शिक्षा, सही शिक्षकों से प्राप्त करने योग्य बनाता है। यह कार्य वह राज्य के साधनों की क्षमता के अनुसार करता है और छात्र इसका लाभ अपने प्रशिक्षण के दौरान उठाता है।"

जे. बी. सीयर्स के मतानुसार, "शिक्षा में प्रशासन शब्द सरकार से सम्बन्धित है। इससे सम्बन्धित शब्द अधीक्षक, पर्यवेक्षण, नियोजन, अनावधान, दिशा संगठन, नियन्त्रण, मार्गदर्शन एवं नियमन है।"


इन सभी परिभाषाओं से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा प्रशासन, शिक्षा संस्थाओं के कुशल संचालन का तंत्र है। इस तंत्र में नीति नियमों के अनुपालन द्वारा वांछित लक्ष्य प्राप्त किये जाते हैं। उक्त परिभाषाओं का निष्कर्ष इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-


(1) शिक्षा से सम्बन्धित सभी क्रियाओं एवं साधनों के सम्पूर्ण उपयोग, संगठन आदेश, जन सहयोग के द्वारा वांछित लक्ष्य प्राप्त करने में शिक्षा प्रशासन सहयोग देता है।

(2) शिक्षा विकास के पथ पर ले जाती है।

(3) शिक्षा प्रशासन, शिक्षा सम्बन्धी सभी प्रयासों एवं संस्थाओं को संगठित करने का प्रयास है। 

(4) शिक्षा प्रशासन का सम्बन्ध विभिन्न व्यक्तियों, शिक्षकों छात्रों, अभिभावकों, जनता के प्रयासों को समन्वित करने से है।

(5) शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में शिक्षा प्रशासन सहायक है।


शैक्षिक प्रशासन के लक्ष्य या उद्देश्य

(Aim of Education or Administration) 


उद्देश्य या लक्ष्य के विषय में लिखते हुए जॉन डीवी ने कहा है, कि "उद्देश्य के अन्तर्गत व्यवस्थापूर्ण गतिशीलता होती है, जिसे क्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसके लिये हम क्रियाशील होते हैं।"

 इस सम्बन्ध एनसर्ट ने कहा है, "उद्देश्य वह बिन्दु है, जिसकी दिशा में कार्य किया जाता है। लक्ष्य या उद्देश्य को क्रिया द्वारा प्राप्त व्यवस्थित परिवर्तन भी कहते हैं।"

 इस दृष्टि से उद्देश्यों को रचना इसलिये की जाती है- 

(1) कार्य के दिशा निर्धारण हेतु, 

(2) कार्य में निश्चितता तथा सार्थकता हेतु, 

(3) समयबद्धता हेतु, 

(4) संभाव्य कठिनाइयों के निवारण हेतु, 

(5) वांछित परिणाम हेतु ।

 शैक्षिक प्रशासन का मुख्य लक्ष्य उन उद्देश्यों का निर्माण एवं प्राप्ति के प्रयास करना है, जो अच्छे नागरिक होने के लिये आवश्यक है। प्रशासन के उद्देश्यों का निर्धारण किसी प्रयोजन के लिये किया जाता है।

(1) बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए उचित वातावरण तैयार करना—शैक्षिक प्रशासन शिक्षा सम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न कराता है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों की सहायता करता है। इन सब के साथ-साथ शैक्षिक प्रशासन बच्चों के लिए ऐसा वातावरण तैयार करता है, जिसमें बालक का सम्पूर्ण विकास सम्भव हो सके। इस सन्दर्भ में कॅण्डल (Kandal) महोदय का मत है- "मूलतः शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य यह है कि अध्यापकों तथा छात्रों को ऐसी परिस्थितियों में एक-साथ लाया जाए जिससे की शिक्षा के उद्देश्य अधिक सफलतापूर्वक प्राप्त हो सकें।" "Fundamentally the purpose of educational administration is to bring pupils and teachers under such conditions as will more successfully promote the end of education."इस प्रकार आवश्यक साधन और सामग्री एकत्र करके उचित वातावरण बनाना शैक्षिक प्रशासन का प्रमुख उद्देश्य है।


(2) शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य है कि शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को उनके उत्तरदायित्व का ज्ञान कराया जाए, बालक के व्यक्तित्व का विकास किया जाए और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुरूप कार्य करने के अवसर उपलब्ध कराए जाएं। इस दृष्टि से शैक्षिक प्रशासन प्रत्येक स्तर पर शैक्षिक कार्यक्रम, क्रियाकलाप और अन्य गतिविधियों का सुचारु रूप से संचालन करता है और कर्मचारियों की नियुक्ति, सेवा शर्ते तथा उनके प्रशिक्षण का निर्धारण करता है ताकि शिक्षा की सही दिशा में प्रगति हो सके। सही शिक्षा के सन्दर्भ में ग्राहम बैलफोर महोदय (Sir Graham Balfour) का मत है- "शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य सही बालकों को सही शिक्षकों द्वारा राज्य के सीमित साधनों के अन्तर्गत उपलब्ध व्यय से सही शिक्षा ले।


(3) शिक्षा को उत्पादन का साधन बनाना- शैक्षिक प्रशासन शिक्षा को उत्पादन का साधन बनाने में सहायता करता है। फलस्वरूप किसी संस्था के छात्रों की  संख्या में  वृद्धि होती है।

(4) शिक्षा को सुनिश्चित योजना और सुनियोजित रूप प्रदान करना—शैक्षिक प्रशासन शिक्षा को सुनियोजित रूप प्रदान करने में सहायता करता है। यह सुनिश्चित योजना का निर्माण करता है ताकि शिक्षा समाज के अनुरूप संचालित हो सके और राज्य एवं सरकार की शिक्षा नीतियों का क्रियान्वयन सही रूप में हो सके। सुनियोजन के सन्दर्भ में आर्थर वी० मोहिल्मन (Arthur B. Mohilman) का कथन है— "शिक्षा का कार्य निश्चित संगठन अथवा सुनिश्चित योजना, विधियों, व्यक्तियों तथा आर्थिक साधनों के माध्यम से चलना चाहिए।" "Education must function through a definite organization or structure of plans,procedures, personnel, material, plant and finance. "


(5) शिक्षा की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्णय लेना एवं शिक्षा सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण तथा क्रियान्वयन करना— शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य है कि  महोदय सीयर्स ( B. Seares) का कथन है- "प्रत्येक प्रशासनिक निर्णय तथा प्रत्येक कार्य शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप लेना अत्यन्त आवश्यक है।""

(6) प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण विकसित करना—शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य छात्रों एवं कर्मचारियों क में श्रेष्ठ नागरिकता, धर्म-निरपेक्षता एवं समानता की भावना का विकास करना है। यह भावना प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण का विकास करती है तथा शिक्षण संस्थाओं के व्यक्तियों में पारम्परिक सहयोग और स्वशासन क प्रशिक्षण प्रदान करती है। शिक्षा के नवीन उद्देश्यों, मूल्यों, मान्यताओं, सिद्धान्तों आदि के साथ सामंजस्य स्थापित की करती है। इस प्रकार यह दृष्टिकोण शिक्षा सम्बन्धी नवीन उत्तरदायित्वों को स्वीकार करना तथा उनका उचित निर्वाह करने के लिए तैयार करता है ताकि जनतन्त्रीय व्यवस्था सफल हो सके। प्रजातन्त्र के सन्दर्भ में के०जी० सैयदेन महोदय का मत है— आज के युग में विद्यालय को प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार चलाया जाना चाहिए। यदि यह सिद्धान्त ही ओझल हो गया तो प्रशासन तथा निरीक्षण का महत्त्व ही समाप्त हो जाता है।"


(7) छात्रों की रुचियों एवं अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाना - शैक्षिक प्रशासन का कार्य केवल समय प विभाग चक्र बनाना ही नहीं है अपितु छात्रों की अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाना भी है। इस सन्दर्भ में पी०सी० रेन (P. C. Ren) महोदय का कथन है- "शैक्षिक प्रशासन का उद्देश्य छात्रों के लाभ हेतु विद्यालय बनाने, उनकी अन्तर्निहित है क्षमताओं को प्रशिक्षित करने, उनका मानसिक विकास एवं दृष्टिकोण व्यापक बनाना है। यह छात्रों को स्वयं के प्रति है समुदाय और राज्य के प्रति कर्तव्यपरायण बनाता है और वारित्रिक विकास कर स्वास्थ्य एवं शक्ति प्रदान करता है।"



July 12, 2023

Maxims of English Teaching

Maxims of English Teaching


Maxims of Teaching


Maxims of teaching are of great importance and useful to get the positive out-comes of teaching-learning process. Maxims of teachings are the formulas and general rules of Teaching drawn from experiences of teachers and educationists and psychologists. The main maxims of Teaching English are given below:

1. From Indefinite to Definite

An English teacher should provide the opportunity for a new experiences. Because, in the beginning, there exists an ambiguity, uncertainty and doubtfulness in the concepts of a child he gets the clarity in his conceptions and thoughts when he gets experiences from the society. He verifies his unmatured concepts on the testimony of experience.

2. From Whole to Part

The knowledge of a thing should not be given in part first but it should be given as a whole. The full concept of a thing should understood by the learners and then the knowledge of its parts should be given.

3. From Known to Unknown

The English teacher should proceed his teaching of English language from unknown. He should impart new knowledge of language based on the previous knowledge of the students which is known to them.

4. From Psychological to Logical

The formation of curriculum syllabus, text-books and selection and gradation of language materials teaching techniques and audio-visual-aids should be based on child psychology. The logical base of teaching language comes later on.

5. From Particular to General 

A teacher should proceed his teaching with particular examples and illustrations in the beginning and then he should give general illustration and examples in his teaching.

6. From Real to Unreal 

In teaching-learning process a teacher should use the real object in his teaching in the beginning. After that he may use the unreal of representative objects in later stage.

7. From Empirical to Rational 

First of all our beginners should be introduced with the empirical principles and direct truth. After that the rational thinking should be developed. The rational thinking is a logical thinking or reasoning based on empirical truths and principles testified by experiments.

8. From Simple to Complex 

The teacher of English language should impart the knowledge of simple matter and content first and then difficult matter should be dealt with later on.

9. From Concrete to Abstract 

The abstract thoughts are imaginative, doubtful and difficult to understand for the beginners. Therefore, the learners should be given the knowledge of concrete object because they are familiar with these concrete objects.

10. From Analysis to Synthesis 

In analysis, we divided the topic into so many parts and do the part-wise analysis of the topic of the content. In synthesis, we join the parts into the whole. In analysis, the learner understands part-wise concept in a better way. Analysis is a difficult process to understand.

11. From Inductive to Deductive

There are two teaching techniques to make the English lesson a success

(i) Inductive Technique

(ii) Deductive Technique


Both the techniques are used in the direct method of Teaching English language.


In the Inductive technique of teaching, the learners get themselves associated with the concept revealed and clarified by the English teacher giving practical examples and illustration. We proceed from examples to generalization. When a concept is developed about the knowledge through these examples. We reach to the generalization of the rule of the content.


Therefore, we proceed from examples and illustration to generalization in Inductive technique of teaching. Inductive technique of teaching very useful for the technique of beginners. They do not understand the rules. technique They understand these rules through simple and practical examples and illustrations related to their lives. So this method or approach or is the best one for our beginners to make them understand the language items in an easier way.


Deductive technique of teaching is useful for the senior classes. In Inductive technique, we try to discover new knowledge on our teaching through illustrations, examples and experiments, Whereas, in deductive method, we prove the rules and principles of a particular part of knowledge of the subject by doing experiments and giving examples and illustrations.


We proceed from generalization to examples. It means the teacher tells the generalization of the rule of the content matter first and then he proves the generalized rule by giving examples and illustrations during his teaching language.

July 10, 2023

Aims of Education in Contemporary Indian Society


Aims of Education in Contemporary Indian Society


Indian education has the following aims at present :


(1) Physical development.

(2) Mental development.

(3) Individual and social development and leadership education.

(4) Development of cultural tolerance. 

(5) Moral and character development.

(6) Vocational development.

(7) Education for democracy and democratic citizenship. 

(8) Population education, environmental education, modernisation of the country, national integration and international understanding, and

(9) Development of religious tolerance.


We shall now present the four aims of education which are democracy, socialism, secularism and national values:


1. Education of Democracy: At one time, there was monarchy in the world. In 1789, a revolution occurred in France against the than prevalent government system and in favour of the demand for freedom, equality and brotherhood. This revolution gave forth a new system of governance called democracy. Generally, by democracy is meant that system in which the administration of the state is run by their elected representatives, and not run by a particular individual. At present, there is so much of variation in the democratic system of different countries that it becomes difficult define it in a uniform statement. However, there also exists a similarity, and that remember the fact that it is based on three principles of freedom, equality and brotherhood the Indian democracy, three more principles have been added which are socialism, secularism and justice. Therefore, Indian democracy can be defined as follows:  Indian democracy is that political system in which the government is run by the people elected by the people, and which is based on the six principles of freedom, equality, brotherhood, socialism, secularism and justice.

Now, the moot point is how should children be educated in democracy For it, it becomes incumbent that right from the beginning, the following should be realized :

(1) The entire environment and working system of the schools should be democratic.

(2) There should be freedom of thought and freedom of expression for children in the schools, though without causing interference to others freedom. 

(3) The individuality of all children should be respected in schools, they should not be discriminated on grounds of caste, religion, economic status or sex all of them should be meted out equal treatment.

(4) There should prevail the spirit of "we' among managers, principals, teachers and other staff members of the schools, they should all behave themselves with others with love, sympathy and cooperation; and all of them should endeavour for the progress of the schools.

(5) Children of all castes, religions and economic statuses should be admitted in the schools; and all of them should be given opportunities for progress and advancement.

(6) Children should not be discriminated on grounds of religion in schools, they should not be forced for education of a particular religion, and religious tolerance should be cultivated in them.

(7) All rules formed in the schools should be founded on the basic spirit of democracy, they should be same for all, and the children should be treated as per these rules.


2. Development of Socialistic Viewpoint: Socailism is one of the six principles of our democracy. In India, socialism has a different connotation. At present, socialism is the democratic system of governance in the country. Our democracy is opposed to any class distinction on grounds of caste, religion and sex etc. It is also opposed to the class distinction between the rich and the poor, however, it does not support any violent struggle for eradication of capitalism. It supports the principle of Sarvodaya as propounded by Gandhiji, and believes in eradication of class distinction through peaceful means. 

Thus Indian socialism is that socialism based on democratic principles and Gandhiji's Sarvodaya philosophy which does not distinguish between individual and individual on grounds of caste, religion and economic status etc., and supports peaceful means to remove economic disparity in place of using power and violent activity.

Now, the moot point is how to achieve this aim of education, and how socialist viewpoint can be cultivated in children. For this, the following become essential:


(1) The entire form of schools should be democratic. 

(2) Individuality of children should be respected in schools.

(3) No discrimination should be practised against children on any grounds of caste, religion, economic status or sex etc., all should be treated equally. 

(4) All children in schools should be provided with equal opportunities for their development.

(5) Students should not be exploited in schools, in any way at any level and under any circumstances.

(6) There should be a specific dress for students in schools.

(7) In schools, at least in primary and upper primary schools, all students should have midday meals together. 


3. Cultivation of Spirit of Secularism:  At present, we have a democratic system of government in our country. Democracy does not discriminate between man and man on grounds of caste, religion, sex etc., in its essence, it is unbiased so far as caste, culture, religion and sex are concerned. However, in order to eradicate the disputes arising in the name of religion, the 42nd Constitutional Amendment in 1976 added the word 'secularism' to the preamble of the Constitution of India in order to further explain the spirit of secularism. Under the Constitution, the Parliament does not have the right to make any particular religion as the state religion, nor can it force any religion on people, nor can it take a religion as the basis for making a national law. This fact has been repeated in several articles of the Constitution in diverse ways. 

Thus Secularism, in Indian context, means that the state will not be based on any religion directly or indirectly, and it will not discriminate people on grounds of religion: people will have freedom to profess and propagate their religions without interfering in other religions. 

The moot point is how this aim of education can be achieved, how the spint of secularism can be inculcated in children. For this, the following become essential :


(1) The schools should not be based on any particular religion; education of any particular religion should not be forced on the students in the schools.

(2) No discrimination should be exercised in schools in the name of religion. 

(3) The Government of India speaks of religion-less education in the name of secularism, yet in our view, the life stories of the chief proponents of the main religions should be included in the language textbooks at the upper primary level, as Mahavir, Buddha, Christ, Muhammad and Swami Dayananda. This will help develop religious tolerance and secularis.

(4) The government prohibits religious education in schools in the name of secularism, yet in our view, there should be a provision for instruction of basic principles of all chief religions of the world, especially those of India, but it should not be forced. This will help develop religious tolerance and secularism. 

(5) The school galleries should be decorated with the proponents of chief religions of the world. This will help cultivate religious tolerance and secularism.


4. Cultivation of National Values: By value is meant utility, desirability. importance. Generally, the ideals and principles that are accepted in a society are called the values of that society. However, in reality, the sense of value is somewhat different from this. We are aware that each society has its own culture as well as its own beliefs, ideals, principles, moral laws and behaviour norms, and people of the society attach importance to them according to their likes and dislikes, and they determine their behaviour on the basis of these. Thus, the beliefs, ideals, moral laws and behaviour norms are not values by themselves, rather when people of a society start to attach importance to them, and behave themselves according to them, they become the values of the society. 

In other words : The beliefs, ideals, principles, moral laws and behaviour norms of any society which are attached importance by the people and by which their behaviour is directed and controlled, are the values of that society and/or its people.

Now let us consider national values in place of social values. At present, we have the democratic system of government, and it is based on six basic principles: freedom, equality, fraternity, socialism, secularism and justice. Our nation believes in these principles, and determines its behaviour on the basis of these principles, and each individual of the nation is expected to behave himself on the bases of these principles.

The basic principles of the nation: freedom, equality, fraternity, socialism, secularism and justice by which the behaviour of the citizens is guided and controlled are our national values.

This signifies the following :

(1) Children should be given freedom to think and express themselves in schools. 

(2) All children should be considered equal in the schools, they should be treated equally. 

(3) All children should be treated with love, sympathy and cooperation in school attachment should be displayed for all. 

(4) In schools, children should not be discriminated on the basis of caste, religion economic status, sex etc., and they should be respected and treated equally 

(5) There should be a uniform dress and rules for all children in schools, and should be mandatory for all to abide by them. 

(6) No religious education should be imparted in schools by force.

(7) When children start to behave themselves according to national value knowingly or unknowingly, they should be given clear knowledge of nation values and the same should be linked with their sentiments, and they should be trained to determine and display their behaviour on the bases of these value This work can be undertaken at the secondary level; it is the time when children possess logic and power to distinguish between right and wrong.

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