शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता एवं महत्व
(Need and Importance of Educational Management)
शिक्षा का स्वरूप निर्धारण करने में किसी देश की शासन-प्रणाली की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है और यह सत्य है कि प्रचलित शैक्षिक व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था का आधार होती है। जनतन्त्र में शैक्षिक प्रणाली का सही रूप प्रस्तुत करने में शैक्षिक प्रबन्धन मुख्य होता है, इसके आधार पर ही जनतान्त्रिक मूल्यों का प्राप्त किया जा सकता है। इन तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए हम शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता एवं महत्व को निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं--
(1) शैक्षिक संस्था अथवा संगठन को सदृढ़ बनाना
आवश्यक संसाधनों की पूर्ति करके संगठन का विकास करने एवं वित्तीय स्रोतों की जानकारी प्राप्त कर निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता होती है। इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है।
(2) संस्था के हितों के अनुरूप मानवीय व भौतिक संसाधनों की व्यवस्था करना –
आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करने, साधनों का अधिकतम उपयोग करने और संसाधनों को अपव्यय से बचाने में शैक्षिक प्रबन्धन की भूमिका अति आवश्यक एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
(3) संस्था अथवा संगठन के कार्यों को आगे बढ़ाना– कर्मचारियों से अपनी नीतियों एवं रीतियों से अधिक कार्य कराने में तथा उनमें दृढ़ निश्चय, मनोबल, आत्मविश्वास एवं साहस बढ़ाने में शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता होती है। इस कार्य की पूर्ति में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
(4) शैक्षिक प्रक्रिया को व्यक्ति एवं समाज के लिए हितकारी बनाना —
बालक के व्यक्तित्व के विकास - (शरीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि) करने तथा शिक्षा पर नियन्त्रण रखने के लिए शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता है। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
(5) शिक्षा से सम्बन्धित योजना निर्माण कराना, उन्हें क्रियान्वित करके उनका मूल्यांकन करना –
शिक्षा के निर्धारित मूल्य, उद्देश्य एवं आदशों को प्राप्त करने तथा लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को बनाने के लिए शैक्षिक प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
(6) बदलती परिस्थितियों में शिक्षक, शिक्षार्थी और शिक्षा में समन्वय स्थापित करना –
सभी को समान रूप से शिक्षा उपलब्ध कराने तथा शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण अधिकारी एवं शिक्षकों, प्रचायों को उचित निर्देशन देने के लिए शैक्षिक प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अति महत्वपूर्ण है।
(7) विद्यालय में एक ऐसा वातावरण निर्मित करना जो मनोवैज्ञानिक हो –
वातावरण ताल-मेल को बढ़ावा देने वाला हो, कार्यों को सुगम और सरल बनाने वाला हो और शिक्षा के सभी स्त (प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक आदि) में समन्वय स्थापित करने वाला हो। अतः ऐसा प्रबन्धन जो की गुणवत्ता में वृद्धि करने और न्यूनतम साधनों से अधिकतम (श्रेष्ठतम परिणाम करने के लिए शैक्षिक प्रक की आवश्यकता है। इस दृष्टि से इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
अतः स्पष्ट है कि शैक्षिक प्रबन्धन के द्वारा पाठ्यक्रम को उचित रूप में संचालित किया जा सकता है। नवीन शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग सरलतापूर्वक किया जा सकता है, व्यक्तिगत भिन्नता के आधार उसकी क्षमता और योग्यता का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है तथा अन्य विविध शैक्षिक कार्यों के शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता है। इस दृष्टि से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
शैक्षिक प्रबन्धन के उद्देश्य
(Objectives of Educational Management)
शैक्षिक प्रबन्धन किसी संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करता है। वह इसके लिए ने प्रदान करता है, परामर्श देता है और निर्देशन प्रदान करता है। प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को वाल रूप में प्रबन्धन लागू करता है। प्रबन्धन एक बड़ी सामाजिक क्रिया है इसे संगठन के प्रभावशाली और अत्या नियोजन के लिए उत्तरदायी माना जाता है। इसकी क्रियाओं में निर्णय का आयोजन, उसे लागू करना और कर्मचारियों को निर्देशन देना है। शैक्षिक विकास को ध्यान में रखकर शैक्षिक प्रबन्धन के उद्देश्यों को हम निम्नलिखित रूप समझ सकते हैं-
(1) योग्य एवं कुशल नागरिक तैयार करना
(2) बालक में निहित विभिन्न शक्तियों का विकास करना
(3) शैक्षिक कार्यक्रमों एवं अन्य गतिविधियों का संचालन करना
(4) कर्मचारियों की सेवाएँ एवं प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था करना
(5) शैक्षिक संस्थाओं का निरीक्षण, पर्यवेक्षण कराना एवं निर्देशन देना
(6) वित्त की व्यवस्था करना
(7) शैक्षिक नीतियों और योजनाओं तथा शिक्षा की प्रगति से अवगत कराना
अतः स्पष्ट है कि शैक्षिक प्रबन्धन के उद्देश्य छात्र, शिक्षक, अभिभावक, समाज और सम्बन्धित कार्मिक उस को संस्था के विकास की दृष्टि से आवश्यकतानुसार उपयुक्त सामग्री एवं सुविधाएँ उपलब्ध करके कम-से-कम पर अधिकतम लाभ प्राप्त करना है। अतः शैक्षिक प्रबन्धन द्वारा लक्ष्यों को स्पष्ट करना चाहिए, निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को स्पष्ट करना चाहिए और उनके समाधान का भी स्पष्ट संकेत होना चाहिए। प्रबन्धन प्रक्रिया में विचार-विमर्श को भी स्थान होना चाहिए। उद्देश्य की दृष्टि से माध्यमिक शिक्षा आयोग (Secondary Education Commission 1952-53) का मत है- "भारत ने राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने बाद अपने को गणतन्त्र घोषित किया है, इसलिए भारत की शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे इस प्रकार चरित्र निर्माण हो सके तथा ऐसा व्यवहार विकसित हो सके कि प्रत्येक नागरिक अपने उत्तरदायित्व को निभा सके।"
शैक्षिक प्रबन्धन की प्रकृति
(Nature of Educational Management)
शैक्षिक प्रबन्धन की प्रकृति के विषय में हम निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं-
(i) शैक्षिक प्रबन्धन की प्रकृति को दोनों रूपों में स्वीकार किया जाता है। यह कला भी है, विज्ञान भी है, यह न केवल कला है न केवल विज्ञान है अपितु यह कला और विज्ञान दोनों है।
(ii) शैक्षिक प्रबन्धन एक प्रक्रिया है; उदाहरणार्थ- बच्चों की रुचि पुस्तकालय के प्रति बढ़ानी है सबसे पहले ऐसा वातावरण तैयार करना होगा उसके बाद छात्रों को नियमित अध्ययन के लिए प्रेरित करना होगा और फिर निर्देशित करने की प्रक्रिया पूर्ण करनी होगी ।
(iii) शैक्षिक प्रबन्धन को जन्मजात प्रतिभा माना जाता है, किन्तु आज इसे विद्वान अर्जित प्रतिमा रूप में स्वीकार करते हैं।
(iv) शैक्षिक प्रबन्धन को एक सामाजिक उत्तरदायित्व माना जाता है। इसका समाज के प्रति उत्तरदायित्व है, उसे पूरा करने के पश्चात् ही इसकी उपयोगिता सिद्ध होती है।
(v) शैक्षिक प्रबन्धन को व्यावहारिक विज्ञान के रूप में माना जाता है। वर्तमान में यह एक व्यवसाय के रूप में विकसित हुआ है।
(vi) शैक्षिक प्रबन्धन एक प्रणाली के रूप में विकसित हुआ है। अतः यह प्रणाली के अंग-अदा, प्रक्रिय और प्रदा के रूप में विकास कर रहा है। यह स्वतंत्र अनुशासन के रूप में विकसित हुआ है।
(vii) शैक्षिक प्रबन्धन सार्वभौम है अर्थात् इसकी व्यापकता किसी एक (Secondary Education Commission 1952-53) का मत है- "भारत ने राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने बाद अपने को गणतन्त्र घोषित किया है, इसलिए भारत की शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे इस प्रकार चरित्र निर्माण हो सके तथा ऐसा व्यवहार विकसित हो सके कि प्रत्येक नागरिक अपने उत्तरदायित्व को निभा सके।
शैक्षिक प्रबन्धन की विशेषताएँ
(Characteristics of Educational Management)
शैक्षिक प्रबन्धन की विशेषताओं को हम निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं-
(i) शैक्षिक प्रबन्धन एक सामाजिक प्रक्रिया है। समाज के अभाव में प्रक्रिया की सफलता अपन कठिन कार्य है।
(ii) शैक्षिक प्रबन्धन उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य की पूर्णता इससे सफल बनाती है।
(iii) शैक्षिक प्रबन्धन संगठन की आवश्यकता है। इसके अभाव में संगठन को सफलता संदिग्ध रहती है
(iv) शैक्षिक प्रबन्धन किसी एक व्यक्ति का प्रयास नहीं है यह तो सामूहिक प्रयासों का प्रतिफल होता है
(v) शैक्षिक प्रबन्धन की आवश्यकता किसी एक स्तर पर ही नहीं होती बल्कि यह तो प्रत्येक पर आवश्यक होती है।
(vi) शैक्षिक प्रबन्धन न केवल कला है, न केवल विज्ञान है अपितु यह कला एवं विज्ञान दोनों है।
(vii) शैक्षिक प्रबन्धन एक विशिष्ट प्रक्रिया है। इसके द्वारा मानवीय एवं भौतिक साधनों में समन्त स्थापित करके कम-से-कम व्यय में अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करना ही इसकी विशेषता है